डेस्क। वास्तु एवं तकनीक का बेजोड़ नमूना है डीग का जल महल, इसको 250 साल पहले तैयार किया गया था। बिना बिजली के कृत्रिम रूप से सावन की झड़ी, बादलों की गरज का इफेक्ट देने वाला अद्भुत सिस्टम इसको एकदम अकल्पनीय बना देता है।
भरतपुर जिले से करीब 38 किलोमीटर दूर स्थित डीग को 18वीं शताब्दी के मजबूत जाट साम्राज्य का गवाह भी माना जाता है। भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग के संस्थापक महाराजा सूरजमल ने डीग में वास्तु और स्थापत्य कला के बेजोड़ उदाहरण के रूप में जल महलों का निर्माण भी कराया। हालांकि इस महल की नींव महाराजा सूरजमल के पिता महाराजा बदन सिंह ने रखी थी, पर इसको मूर्त रूप प्रदान किया महाराजा सूरजमल ने।
डीग के जल महल की सुंदरता, इसकी बनावट, महल में पानी के इस्तेमाल से गर्मी में भी बरसात जैसा मिलने वाला एहसास दिलाने की तकनीक की वजह से ही डीग को भरतपुर की ग्रीष्मकालीन आवास व राजधानी के रूप में भी जाना जाता था।
करीब 250 से 300 वर्ष पूर्व इस जल महल में महाराजा सूरजमल ने बिना बिजली के ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया था, जिससे जल महल परिसर में 2 हजार से अधिक फव्वारे चलते हैं और इतना ही नहीं गर्मी में भी मानसून का एहसास होता था। तो आइये आपको वास्तु, स्थापत्य और तकनीक के बेजोड़ नमूने डीग के जल महल के रोचक इतिहास से भी रूबरू कराते हैं।
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने यह बताया है कि महाराजा बदन सिंह ने डीग की स्थापना की थी और साथ ही डीग के महल की नींव रखकर उनका निर्माण भी शुरू कराया है। डीग के जलमहल को असली सुंदरता महाराजा सूरजमल और महाराजा जवाहर सिंह के समय में मिली।
महाराजा सूरजमल ने वास्तु और स्थापत्य कला के जानकार कारीगरों से जल महलों का निर्माण करवाया और
बड़े उद्यान महल को बनाते हैं खासः इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया है कि रूप सागर और गोपाल सागर दो जलाशयों के मध्य में स्थित डीग के जल महल के भवनों में मुगल चारबाग पद्धति और चापाकर पद्धति का इस्तेमाल भी किया गया है।
संतुलित रूपरेखा, सुव्यवस्थित फव्वारे और नहरें, बड़े बड़े उद्यान इन महलों को खास बनाते हैं और महल परिसर में अलग-अलग भवनों का भी निर्माण कराया गया है जिनमें गोपाल भवन, सूरज भवन, किसन भवन, नंद भवन, केशव भवन और हरदेव भवन भी शामिल हैं। इन सभी भवनों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं।