Supreme Court Decision : जहां एक ओर पिछले कुछ समय से शेयर बाजार और अन्य निवेशों में उतार-चढ़ाव का माहौल बना हुआ था, वहीं अब देश के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने एक ऐसा महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला (Historic Supreme Court Decision) सुनाया है जिसका सीधा असर भारतीय समाज में संपत्ति के बंटवारे (Property Distribution) और खासकर हिंदू महिलाओं के अधिकारों (Hindu Women’s Rights) पर पड़ने वाला है। यह फैसला उन बेटियों के लिए एक बड़ी राहत और जीत है, जिन्हें अक्सर संपत्ति के अधिकार (Property Rights) से वंचित कर दिया जाता था या उन्हें कमतर आंका जाता था।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में फैसला सुनाया है कि यदि किसी हिंदू पुरुष (Hindu Male) की मृत्यु बिना किसी वसीयत (Without Will) छोड़े हो जाती है, तो उसकी स्वअर्जित (Self-acquired Property) और अन्य संपत्तियों (Other Assets) पर उनकी बेटियों को बेटों के समान ही नहीं, बल्कि कुछ स्थितियों में प्राथमिकता (Priority) भी मिलेगी। इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि बेटियों को पिता के भाइयों (Father’s Brothers) के बच्चों (जैसे चचेरे भाई-बहन) की तुलना में संपत्ति में स्पष्ट वरीयता (Preference in Property) दी जाएगी। यह पुरानी कानूनी उलझनों और सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देता है जहां अक्सर बेटों और उनके बच्चों को ही संपत्ति का स्वाभाविक वारिस (Natural Heir) माना जाता था।
न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर (Justice S. Abdul Nazeer) और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी (Justice Krishna Murari) की पीठ ने अपने 51 पृष्ठों के विस्तृत फैसले में इस बात को बिल्कुल साफ कर दिया है। यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Act) की व्याख्या के संबंध में एक मील का पत्थर माना जा रहा है। इसके तहत, यदि कोई हिंदू व्यक्ति बिना वसीयत के मर जाता है, तो उसकी स्वअर्जित या पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में बेटियों को बेटों के बिल्कुल समान हिस्सेदारी मिलेगी। यह फैसला न केवल बेटियों, बल्कि हिंदू विधवाओं (Hindu Widows) के संपत्ति अधिकारों को भी मजबूत करता है, जिससे उन्हें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा (Social and Economic Security) मिलती है।
इस सवाल का भी हुआ निपटारा: क्या बेटी का हक बना रहता है?
न्यायालय ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अक्सर पूछे जाने वाले सवाल का भी निपटारा कर दिया। पीठ ने स्पष्ट किया कि पिता की स्वअर्जित या पारिवारिक संपत्ति में बेटी का अधिकार पिता की मृत्यु पर या किसी अन्य पुरुष कानूनी उत्तराधिकारी (Male Legal Heir) की अनुपस्थिति में भी बना रहता है। इसका मतलब है कि भले ही पिता का कोई बेटा न हो और उसके भाई का बेटा (भतीजा) जीवित हो, तब भी पिता की संपत्ति पर उसकी बेटी का अधिकार पहले होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पारंपरिक हिंदू कानूनों (Traditional Hindu Laws) और विभिन्न पिछले न्यायिक निर्णयों (Judicial Precedents) का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि विधवा या बेटी का हक हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है और इसे बरकरार रखा जाना चाहिए, भले ही परिवार में पिता के भाई का बेटा (Nephew) मौजूद हो। यह व्याख्या सदियों पुरानी परंपराओं और कानूनी मान्यताओं को एक आधुनिक परिप्रेक्ष्य देती है जो लैंगिक समानता (Gender Equality) पर आधारित है।
बगैर वसीयत मृत हिंदू महिला की संपत्ति पर किसका हक? कोर्ट ने यह भी साफ किया
सुप्रीम कोर्ट ने केवल हिंदू पुरुष की संपत्ति ही नहीं, बल्कि बिना वसीयत मर चुकी एक हिंदू महिला (Hindu Woman’s Property) की संपत्ति के बंटवारे को लेकर भी महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया है। पीठ ने कहा कि यदि किसी हिंदू महिला की बगैर वसीयत किए मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति का बंटवारा इस बात पर निर्भर करेगा कि वह संपत्ति उसे कहां से मिली थी।
जो संपत्ति उसे अपने पिता या माता (Property inherited from Parents) से विरासत में मिली थी, वह उसकी मृत्यु के बाद उसके पिता के वारिसों (Father’s Heirs) को वापस मिलेगी, यानी उसके सगे भाई-बहन (Siblings) और अन्य संबंधित व्यक्तियों को। वहीं, जो संपत्ति उसे अपने पति (Husband) या ससुर (Father-in-law) से मिली थी, वह उसके पति के वारिसों (Husband’s Heirs) को मिलेगी, जिसमें सबसे पहले उसके अपने बच्चे (Children) और फिर अन्य शामिल होंगे।
पीठ ने अपने फैसले में यह भी बताया कि हिंदू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Law) की धारा 15 (2) (Section 15(2)) को जोड़ने का मूल मकसद यही था। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि कोई निसंतान (Childless) हिंदू महिला बिना वसीयत किए मर जाती है, तो उसकी संपत्ति वापस उसी मूल स्रोत (Original Source) में चली जाए जहां से उसे वह संपत्ति मिली थी। यह प्रावधान संपत्ति को परिवार से बाहर जाने से रोकने और उसे मूल familial lineage में बनाए रखने के लिए बनाया गया है।
मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को पलटा: बेटी के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का रुख
इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के एक फैसले को पलटते हुए यह अहम व्यवस्था दी है। मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में बेटी के संपत्ति के दावे को खारिज कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को गलत ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि अगर पिता की संपत्ति स्व-अर्जित (Self-acquired property) है, और उसकी मृत्यु के समय उसकी एकमात्र जीवित संतान बेटी है, तो कानूनी रूप से वह संपत्ति उसी बेटी को विरासत में मिलेगी। यह बताता है कि उच्च न्यायालयों के फैसलों में भी इस मुद्दे पर भिन्नता थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अब स्पष्ट और अंतिम रूप दे दिया है।
यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानूनों के तहत बेटियों और महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को और मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें पुरुषों के समान ही अधिकार मिलें, खासकर पिता की स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में जहां पहले अक्सर जटिलताएं आती थीं और पैतृक संपत्ति की तरह स्पष्टता नहीं थी। यह भारतीय न्यायपालिका द्वारा लैंगिक न्याय (Gender Justice) की दिशा में उठाया गया एक और महत्वपूर्ण कदम है।