Daughter’s Property Right : शादी के बाद भी बेटी है बाप की प्रॉपर्टी की हकदार? सुप्रीम कोर्ट ने दिया चौंकाने वाला जवाब

Published On: June 10, 2025
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शादी के बाद भी बेटी है बाप की प्रॉपर्टी की हकदार? सुप्रीम कोर्ट ने दिया चौंकाने वाला जवाब
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Daughter’s Property Right : अपनी बेटी के संपत्ति अधिकारों (Daughter’s Property Rights) को लेकर आज भी हमारे समाज में कई तरह के भ्रम और भ्रांतियां मौजूद हैं। बहुत से लोग आज भी पुराने नियमों को ही सच मानते हैं, खासकर जब बात बेटी की शादी के बाद उसके अधिकारों (Daughter’s Rights After Marriage) की आती है। हालांकि, भारत में कानून अब काफी स्पष्ट है और समानता पर ज़ोर देता है, फिर भी हर नागरिक के लिए, खासकर माता-पिता और बेटियों के लिए, इन महत्वपूर्ण कानूनी बिंदुओं (Legal Points) को जानना और समझना बेहद ज़रूरी है।

भारत का संविधान हर नागरिक को संपत्ति का अधिकार (Right to Property) देता है। देश के कानून (Indian Law) में संपत्ति के अधिकारों (Property Rights) को विस्तार से समझाया गया है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि किसी के साथ अन्याय न हो। कानून की नज़र में, बेटे और बेटी दोनों को अपने माता-पिता की संपत्ति (Parents’ Property) पर समान अधिकार (Equal Rights) प्राप्त हैं। इसके बावजूद, संपत्ति के अधिकार (Property Rights) को लेकर परिवारों में और समाज में मतभेद (Property Disputes) बने रहते हैं। एक आम सवाल जो अक्सर पूछा जाता है, वह यह है कि शादी के कितने साल बाद तक बेटी संपत्ति पर अधिकार पाएगी? या शादी के बाद क्या बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार खत्म हो जाता है? आइए जानते हैं इस पर कानून क्या कहता है।

संपत्ति के बंटवारे का कानून (Property Division Law): हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम

भारत में सभी समुदायों के लिए संपत्ति के बंटवारे (Property Distribution) और उत्तराधिकार (Inheritance) के अपने-अपने नियम हैं। हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए संपत्ति के अधिकार (Property Rights), उत्तराधिकार (Succession) और विरासत (Inheritance) को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) है। यह कानून भारत में संपत्ति के बंटवारे के नियमों (Rules of Property Division) को लागू करता है।

2005 से पहले बेटियों को संपत्ति का अधिकार (Daughter’s Property Rights) नहीं था?

यह सच है कि कानून सब पर समान रूप से लागू होते हैं और हर नागरिक को समान अधिकार (Equal Rights) दिए गए हैं, लेकिन ऐतिहासिक रूप से, हिंदू कानून के तहत बेटियों (Daughters) को अपने पिता की पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में बेटों के बराबर हिस्सा (Equal Share) नहीं मिलता था। वे केवल कुछ सीमित अधिकार रखती थीं। हालांकि, समय के साथ कानून में बदलाव की ज़रूरत महसूस हुई ताकि लैंगिक समानता (Gender Equality) को बढ़ावा दिया जा सके।

इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए साल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में एक बड़ा और ऐतिहासिक संशोधन (Amendment in Hindu Succession Act 2005) किया गया। इस संशोधन ने बेटियों की स्थिति में क्रांति ला दी। इस बदलाव से, बेटियों को भी बेटों के समान अपने पिता की पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में ‘जन्मसिद्ध अधिकार’ (Right by Birth) प्राप्त हो गया। उन्हें भी अब ‘सहदायिक’ (Coparcener) माना जाने लगा, ठीक वैसे ही जैसे पहले केवल बेटों को माना जाता था। इस संशोधन का उद्देश्य बेटियों को बेटों के बिल्कुल बराबर लाना था, खासकर अविभाजित हिंदू परिवार (Hindu Undivided Family – HUF) की संपत्ति के मामले में।

शादी के बाद भी संपत्ति पर अधिकार (Daughter’s Rights After Marriage) – कानून क्या कहता है?

हिंदू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Act) में 2005 में किए गए संशोधन (Amendment 2005) का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसने शादी के बाद भी बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार (Equal Rights in Property) देने का उद्देश्य रखा। पुराने कानून (Old Law) के तहत, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) में केवल अविवाहित बेटियों (Unmarried Daughters) को ही सहदायिक (Coparcener) माना जाता था। नियम यह था कि बेटी की शादी (Daughter’s Marriage) के बाद उसे हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) का सदस्य नहीं माना जाता था और इस तरह पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में उसका सीधा अधिकार समाप्त हो जाता था (हालांकि, पिता की स्वअर्जित संपत्ति में उसका अधिकार बना रहता था यदि पिता बिना वसीयत के मर जाए)।

लेकिन 2005 के संशोधन (2005 Amendment) ने इस भेदभाव को खत्म कर दिया। कानून अब बहुत स्पष्ट है: शादी (Marriage) का बेटी के अपने पिता की पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) या पिता की स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) में कानूनी अधिकार (Legal Rights) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। शादी के बाद भी बेटी अपने पिता की संपत्ति (Father’s Property) में उतनी ही हकदार है जितना कि बेटा।

कितने दिन तक संपत्ति पर अधिकार रहेगा? (How long does daughter’s right last?)

यह एक और आम गलतफहमी है। अक्सर लोग सोचते हैं कि शादी के कुछ सालों बाद बेटी का अपने मायके की संपत्ति (Maternal Property) पर अधिकार खत्म हो जाता है। लेकिन यह बिल्कुल गलत है। कानून इस बारे में कोई समय सीमा (Time Limit) तय नहीं करता है कि शादी के कितने साल बाद तक बेटी को संपत्ति पर अधिकार मिलेगा। बेटी का अपनी पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) और पिता की स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) में अधिकार तब तक बना रहता है जब तक वह जीवित रहती है। उसका यह अधिकार उसकी शादी से अप्रभावित रहता है।

बेटी केवल किस प्रकार की संपत्ति की हकदार है? पैतृक बनाम स्वअर्जित

यह समझना बहुत ज़रूरी है कि कानून के तहत संपत्ति (Property) को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में बांटा गया है:

  1. पैतृक संपत्ति (Ancestral Property): यह वह संपत्ति है जो पिता, दादा, परदादा (पुरुष वंश की चार पीढ़ियों तक) से विरासत में मिली हो। इस प्रकार की संपत्ति पर बेटे और 2005 के संशोधन के बाद बेटियों, दोनों का जन्म से ही अधिकार (Right by Birth) होता है। इस संपत्ति में हर सहदायिक (Coparcener) का हिस्सा होता है और उसे कोई छीन नहीं सकता, जब तक कि कानूनी रूप से बंटवारा न हो जाए।
  2. स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property): यह वह संपत्ति है जिसे व्यक्ति ने अपनी मेहनत, कमाई, या अपने संसाधनों से खुद खरीदा या बनाया हो। इसमें पिता द्वारा अपनी कमाई से खरीदी गई जमीन, मकान, या अन्य संपत्ति आती है। स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) के मामले में, उस संपत्ति के मालिक (पिता) का पूर्ण अधिकार (Absolute Right) होता है। वह जिसे चाहे अपनी स्वअर्जित संपत्ति वसीयत (Will) के माध्यम से दे सकता है, चाहे वह बेटा हो, बेटी हो, पत्नी हो या कोई और। वह अपनी स्वअर्जित संपत्ति से किसी भी बच्चे (बेटे या बेटी) को बेदखल (Disinherit) करने का कानूनी अधिकार रखता है।

बंटवारे से पहले पिता की मृत्यु होने पर क्या होता है?

यदि पिता अपनी स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) का बंटवारा (Property Division) किए बिना या कोई वसीयत (Will) बनाए बिना ही स्वर्ग सिधार जाते हैं (यानी, उनकी मृत्यु ‘निर्वसीयत’ – Intestate होती है), तो ऐसे में उनकी सारी संपत्ति (स्वअर्जित और पैतृक हिस्सेदारी) पर उनके सभी कानूनी वारिसों (Legal Heirs) का समान अधिकार होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, क्लास I के कानूनी वारिसों (Class I Legal Heirs) में बेटा, बेटी, पत्नी, मां आदि शामिल होते हैं। इस स्थिति में, बेटा और बेटी दोनों पिता की स्वअर्जित संपत्ति (Father’s Self-Acquired Property) और उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी, दोनों के कानूनी वारिस (Legal Heir) होंगे और दोनों को बराबर का हिस्सा मिलेगा।

इसलिए, यह स्पष्ट है कि कानून बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार (Equal Property Rights) देता है, खासकर 2005 के संशोधन के बाद। शादी उनके इस अधिकार को खत्म नहीं करती। हालांकि, स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) के मामले में पिता की वसीयत (Father’s Will) अंतिम होती है। सभी प्रॉपर्टी मालिकों (Property Owners) और उनके बच्चों के लिए इन नियमों की सही जानकारी रखना और ज़रूरत पड़ने पर कानूनी सलाह (Legal Advice) लेना बेहद महत्वपूर्ण है ताकि भविष्य में संपत्ति विवादों (Property Disputes) से बचा जा सके।

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