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Join NowMaha Avatar Narsimha: भारतीय सिनेमाघरों में 25 जुलाई को रिलीज हुई पौराणिक एक्शन-ड्रामा फिल्म ‘महा अवतार नरसिम्हा’ धूम मचा रही है। निर्देशक अश्विन कुमार द्वारा निर्देशित यह फिल्म न केवल बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है, बल्कि दर्शकों को उस प्राचीन और शक्तिशाली कथा की ओर भी ले जा रही है जो हर हिंदू के दिल में बसती है। फिल्म में भगवान विष्णु के चौथे अवतार, भगवान नरसिम्हा, के उस खूंखार और रौद्र स्वरूप को दिखाया गया है, जिसे देख अधर्म कांप उठता है। साथ ही, यह फिल्म भगवान विष्णु के प्रति उनके परम भक्त प्रह्लाद की उस असीम और अटूट भक्ति को भी दर्शाती है, जिसने स्वयं भगवान को धरती पर अवतरित होने के लिए विवश कर दिया था।

फिल्म की कहानी भले ही आज के आधुनिक VFX और एनिमेशन के साथ पर्दे पर उतारी गई हो, लेकिन इसकी जड़ें हमारे प्राचीन पुराणों, विशेष रूप से विष्णु पुराण में बहुत गहरी हैं। आइए, जानते हैं भगवान नरसिम्हा के अवतार की वह संपूर्ण और असली कथा, जिसके कारण वे आज भी धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के सबसे शक्तिशाली प्रतीक माने जाते हैं।

कौन हैं भगवान नरसिम्हा और क्यों लेना पड़ा उन्हें अवतार?
पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु को इस चराचर जगत का पालनहार और जगद्गुरु कहा जाता है। जब-जब धरती पर अधर्म और पाप बढ़ता है, तब-तब वे धर्म की स्थापना के लिए किसी न किसी रूप में अवतार लेते हैं। भगवान नरसिम्हा, भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चौथे और सबसे उग्र अवतार माने जाते हैं।

वे आधे सिंह (नर+सिंह = नरसिंह) और आधे मानव के अद्भुत और भयावह स्वरूप में प्रकट हुए थे। उनका यह अवतार किसी और के लिए नहीं, बल्कि अपने प्रिय और नन्हे भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने और अहंकारी राक्षस राजा हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए हुआ था।
हिरण्यकश्यप का वो वरदान जो बन गया मौत का कारण
कहानी की शुरुआत होती है एक शक्तिशाली असुर हिरण्यकश्यप से। उसने अजर-अमर होने की इच्छा से वर्षों तक कठोर तपस्या करके सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। उसने ब्रह्मा जी से एक ऐसा विचित्र और जटिल वरदान मांगा, जिससे उसकी मृत्यु लगभग असंभव हो गई।

हिरण्यकश्यप का वरदान:
- “मेरी मृत्यु न दिन में हो, न रात में।”
- “न कोई मानव मुझे मार सके, न कोई पशु।”
- “न मैं किसी अस्त्र से मरूँ, न किसी शस्त्र से।”
- “न मैं घर के अंदर मरूँ, न घर के बाहर।”
- “न मैं आकाश में मरूँ, और न ही पृथ्वी पर।”
कैसे अवतरित हुए भगवान नरसिम्हा?

यह अभूतपूर्व वरदान पाकर हिरण्यकश्यप अत्यंत अहंकारी और क्रूर हो गया। वह स्वयं को अजेय और अमर समझने लगा और तीनों लोकों में देवताओं, ऋषियों और मनुष्यों पर भयंकर अत्याचार करने लगा। उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और सभी को अपनी पूजा करने का आदेश दिया।
लेकिन विधाता की लीला देखिए, उसी क्रूर राक्षस के घर में उसके पुत्र प्रह्लाद ने जन्म लिया, जो बचपन से ही भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। वह अपने पिता के अधर्मी स्वभाव के विपरीत, धर्म का पालन करता था और हर समय “नमो नारायण” का जाप करते हुए भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था।

यह बात जब हिरण्यकश्यप को पता चली, तो वह आग-बबूला हो गया। उसने अपने ही पुत्र प्रह्लाद को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए मजबूर किया और उसे अकल्पनीय यातनाएं दीं। उसे ऊंचे पहाड़ों से फिंकवाया, जलती हुई आग में बिठाया, विषैले सांपों के बीच छोड़ा, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।
अंत में, क्रोध और हताशा में एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी राजसभा में प्रह्लाद से गरजते हुए पूछा, “कहाँ है तेरा विष्णु? क्या वह इस खंभे में भी है?”

अटूट विश्वास से भरे प्रह्लाद ने शांत भाव से उत्तर दिया, “हाँ पिताजी! मेरे विष्णु तो कण-कण में हैं, वे इस खंभे में भी हैं।”
यह सुनकर हिरण्यकश्यप का अहंकार चरम पर पहुँच गया और उसने अपनी गदा से उस खंभे पर जोरदार प्रहार किया। जैसे ही खंभा टूटा, उसमें से एक भयंकर गर्जना हुई और भगवान विष्णु, नरसिम्हा के रौद्र रूप में प्रकट हुए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का था। वे न पूरी तरह से मानव थे, न पशु।
इसके बाद, भगवान नरसिम्हा ने हिरण्यकश्यप के वरदान की हर शर्त का मान रखते हुए उसका अंत किया:
- वे संध्या के समय (न दिन, न रात) उसे लेकर महल की देहरी (चौखट) पर गए (न अंदर, न बाहर)।
- उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी जांघों पर रखा (न आकाश, न पृथ्वी)।
- और फिर अपने तेज नाखूनों (न अस्त्र, न शस्त्र) से उसका सीना फाड़कर उसे मार डाला।
इस प्रकार, भगवान नरसिम्हा ने धर्म की स्थापना की, अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और पूरे संसार को यह संदेश दिया कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। फिल्म ‘महा अवतार नरसिम्हा’ इसी शक्तिशाली और प्रेरणादायक कथा का एक भव्य सिनेमाई रूपांतरण है।