Property Rights : क्या पति अपनी पत्नी को घर या संपत्ति से बेदखल कर सकता है? जानें आपके अधिकार

Published On: June 4, 2025
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Property Rights : क्या पति अपनी पत्नी को घर या संपत्ति से बेदखल कर सकता है? जानें आपके अधिकार
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Property Rights : आमतौर पर, हमारे समाज में प्रॉपर्टी और संपत्ति से जुड़े नियम और कानूनों को लेकर लोगों के बीच अक्सर जानकारी का अभाव होता है। यह जानकारी की कमी ही कई बार परिवार के भीतर या रिश्तेदारों के बीच संपत्ति विवादों का कारण बनती है। इसी वजह से छोटे-छोटे मसले भी बड़े कानूनी उलझनों में बदल जाते हैं। खासकर, जब बात पारिवारिक संपत्ति (Family Property) या पति-पत्नी के साझा घर की आती है, तो इसमें अधिकारों को लेकर उलझनें और बढ़ जाती हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको एक बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील सवाल का जवाब देने जा रहे हैं: क्या एक पति अपनी पत्नी को उसकी मर्जी के खिलाफ प्रॉपर्टी या घर से बेदखल (Evict) कर सकता है? आइए, इस खबर में भारत में संपत्ति कानून (Property Law in India) से जुड़े इस अहम कानूनी प्रावधान (Legal Provision) और पत्नियों के अधिकारों (Wife’s Rights) को विस्तार से समझते हैं।

आपने अपने आसपास, परिवार, दोस्तों या रिश्तेदारों में संपत्ति को लेकर झगड़ों (Property Disputes) के बारे में ज़रूर सुना होगा। इन विवादों की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन जमीन-जायदाद (Land and Property) या घर से जुड़े मसले सबसे आम और कड़वे साबित होते हैं। ये विवाद कभी-कभी इतने बढ़ जाते हैं कि रिश्तों में सुलह की कोई गुंजाइश नहीं बचती। भाई-भाई के बीच बंटवारे का झगड़ा हो, बेटे-बाप के बीच मालिकाना हक का मसला, या फिर पति-पत्नी के बीच प्रॉपर्टी के अधिकार – ये सभी भारतीय समाज में आम हैं।

ऐसे में, संपत्ति संबंधी कानूनी जानकारी (Legal Information on Property) होना बेहद ज़रूरी है ताकि आप अपने कानूनी अधिकारों (Legal Rights) को समझ सकें, किसी भी विवाद की स्थिति में सही कानूनी कदम (Legal Steps) उठा सकें, और ज़रूरत पड़ने पर अपना बचाव कर सकें। यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भारत में कानून (Indian Law) संपत्ति के हक (Right to Property) और उसमें परिवार के सदस्यों, विशेषकर महिलाओं के अधिकारों (Women’s Rights) को लेकर क्या कहता है।

क्या पत्नी को पति या पति को पत्नी घर से बेदखल कर सकते हैं?

यह सवाल पति-पत्नी के बीच प्रॉपर्टी राइट्स (Property Rights) से जुड़ा एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अक्सर सामने आने वाला मुद्दा है। हाल ही में, मुंबई की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने घरेलू विवाद (Domestic Dispute) के एक मामले में इस पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पति को संयुक्त रूप से खरीदी गई प्रॉपर्टी (Jointly Owned Property) या घर से तब तक नहीं निकाला जा सकता, जब तक उस पर उसका कानूनी अधिकार (Legal Right) है। यानी, अगर घर पति-पत्नी दोनों के नाम पर है या पति का उसमें मालिकाना हक है, तो केवल पत्नी उसे बेदखल (Evict) नहीं कर सकती।

हालांकि, अदालत ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण मानवीय पहलू पर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पति का यह नैतिक कर्तव्य (Moral Duty) है कि वह अपनी पत्नी और बेटियों के साथ उसी घर में रहे, खासकर जब वे वर्तमान में अलग रह रहे हों, ताकि उनकी देखभाल कर सके। कोर्ट ने पति को अगस्त 2021 से ₹17,000 प्रति माह रखरखाव भत्ता (Maintenance Allowance) देने का आदेश भी दिया, जो यह दर्शाता है कि अदालतें केवल संपत्ति के कानूनी अधिकार ही नहीं, बल्कि पति की अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति भरण-पोषण (Maintenance) की जिम्मेदारी को भी गंभीरता से लेती हैं। यह फैसला बताता है कि साझा या वैवाहिक घर (Matrimonial Home) के मामले में स्थिति जटिल हो सकती है।

भारत में कानून क्या कहता है पत्नी के संपत्ति अधिकारों पर?

भारत में कानून (Indian Law) के अनुसार, पत्नी का पति की प्रॉपर्टी (Property) पर कुछ विशेष अधिकार (Rights) होते हैं, हालांकि यह हमेशा सीधे मालिकाना हक (Ownership) के रूप में नहीं होता। शादी के बाद अगर पति-पत्नी के रिश्ते में कड़वाहट आती है या वे अलग होने का फैसला लेते हैं, तो महिलाएं विभिन्न कानूनी प्रावधानों (Legal Provisions) के तहत अपने पति से भरण-पोषण (Maintenance) और आवास का अधिकार (Right) मांग सकती हैं।

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955): इस अधिनियम की धारा 24 (Section 24) के तहत, कोई भी पति या पत्नी, जिसके पास आय का कोई स्वतंत्र पर्याप्त स्रोत नहीं है, तलाक या न्यायिक पृथक्करण की कार्यवाही के दौरान या बाद में, दूसरे पति/पत्नी से मुकदमे का खर्च और भरण-पोषण (Maintenance) मांग सकता है।

  • घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005): यह अधिनियम पत्नियों और महिला लिव-इन पार्टनर्स को घरेलू हिंसा (Domestic Violence) से सुरक्षा प्रदान करता है और इसमें महिलाओं को उनके वैवाहिक घर (Matrimonial Home) या साझा घर (Shared Household) में रहने का स्पष्ट अधिकार (Right to Reside) भी शामिल है। साझा घर वह है जहां महिला घरेलू संबंध में रहती है या रह चुकी है। इस अधिनियम के तहत, किसी भी महिला को साझा घर (Shared Household) से बेदखल (Evict) नहीं किया जा सकता, भले ही वह घर पूरी तरह से पति या किसी अन्य रिश्तेदार के नाम पर हो। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार है जो पत्नियों को आवास सुरक्षा प्रदान करता है।

  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 (Section 125 CrPC): यह धारा परित्यक्त पत्नियों, नाबालिग बच्चों और वृद्ध माता-पिता को भरण-पोषण (Maintenance) मांगने का अधिकार देती है। इसके तहत, यदि पति अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने में सक्षम है लेकिन उचित कारण के बिना ऐसा करने से इनकार करता है, तो अदालत पति को पत्नी को मासिक गुजारा भत्ता (Alimony) देने का आदेश दे सकती है। यह अधिकार पत्नी को जीवन भर मिल सकता है, जब तक वह पुनर्विवाह न करे और अपना भरण-पोषण स्वयं करने में सक्षम न हो जाए।

हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (Hindu Adoptions and Maintenance Act, 1956): इस अधिनियम के तहत, एक हिंदू पत्नी को अपने ससुराल के घर (Matrimonial Home) में रहने का स्पष्ट अधिकार (Right) है, भले ही घर उसके पति के स्वामित्व में न हो। यह अधिकार तब भी लागू होता है जब घर पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) हो, संयुक्त पारिवारिक संपत्ति (Joint Family Property) हो, पति की स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) हो, या किराये का घर (Rented House) हो। पत्नी का यह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक वह अपने पति के साथ वैवाहिक संबंध (Marital Relationship) में है और उसके साथ रह रही है। यदि वह पति से अलग रहने लगती है, तो वह भरण-पोषण (Maintenance) का दावा कर सकती है, लेकिन साझा घर में रहने का अधिकार परिस्थितियों पर निर्भर कर सकता है, खासकर यदि पति उसके लिए अलग उचित आवास प्रदान करता है।

व्यक्ति की स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) के अधिकार:

यह समझना भी आवश्यक है कि एक व्यक्ति की अपनी कमाई, कौशल या प्रयासों से अर्जित की गई संपत्ति (Property) (जैसे जमीन, मकान, फ्लैट, पैसे, गहने, शेयर या अन्य निवेश) पर पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ उसी व्यक्ति का कानूनी अधिकार (Legal Right) होता है जिसने उसे अर्जित किया है। इसे स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) कहते हैं। वह व्यक्ति अपनी इस स्वअर्जित संपत्ति को बेचने (Sell), गिरवी रखने (Mortgage), किसी को दान देने (Donate) या अपनी वसीयत (Will) के माध्यम से किसी को भी देने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है। इससे जुड़े सभी कानूनी अधिकार उसके पास सुरक्षित होते हैं। हालांकि, यदि इस स्वअर्जित संपत्ति को पति-पत्नी द्वारा वैवाहिक घर (Matrimonial Home) या साझा घर (Shared Household) के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, तो ऊपर बताए गए कानूनों (विशेषकर घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत) के तहत पत्नी का उसमें रहने का अधिकार (Right to Reside) बन सकता है, भले ही वह उसकी मालकिन न हो।

संक्षेप में, जबकि पति की स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) पर पत्नी का सीधा मालिकाना हक शादी के आधार पर स्वतः नहीं आ जाता, भारत में कानून (Indian Law) पत्नियों को वैवाहिक घर (Matrimonial Home) में रहने, घरेलू हिंसा (Domestic Violence) से सुरक्षा और पति से भरण-पोषण (Maintenance) प्राप्त करने जैसे महत्वपूर्ण अधिकार (Rights) प्रदान करता है। पति आसानी से और मनमाने ढंग से पत्नी को साझा घर (Shared Household) या वैवाहिक घर से बेदखल (Evict) नहीं कर सकता, खासकर यदि ऐसा करना उसे बेघर कर दे या उसके अधिकारों का उल्लंघन करे। ऐसे मामलों में, कानूनी सलाह (Legal Advice) लेना हमेशा सबसे अच्छा विकल्प है ताकि व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर सही जानकारी और मार्गदर्शन मिल सके। प्रॉपर्टी राइट्स (Property Rights)महिला अधिकारों (Women’s Rights) और संबंधित कानूनों (Laws) की जानकारी होना सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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