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Join NowMunna Bhai MBBS success story: यह साल 2003 की बात है। जब विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ रिलीज के लिए तैयार खड़ी थी, तब शायद ही किसी ने यह भविष्यवाणी की होगी कि यह फिल्म न केवल बॉक्स ऑफिस पर एक बड़ी हिट साबित होगी, बल्कि आने वाले दशकों के लिए एक कल्ट क्लासिक बन जाएगी। आज यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक सुनहरा अध्याय है, लेकिन इसकी रिलीज से पहले की कहानी उतनी ही नाटकीय और अविश्वसनीय है।
“यह तो बहुत ‘बंबइया’ है,” कहकर हर किसी ने किया रिजेक्ट
इस फिल्म के निर्माता, विधु विनोद चोपड़ा के अनुसार, रिलीज से पहले फिल्म को पूरे भारत में, विशेषकर दक्षिण भारतीय बाजारों में, भारी अस्वीकृति का सामना करना पड़ा था। वितरकों (distributors) ने फिल्म को खरीदने से साफ इनकार कर दिया था। कारण? उन्हें लगा कि फिल्म की भाषा और शैली “बहुत ज्यादा बंबइया” है – यानी मुंबई की लोकल बोली और अंदाज में इतनी डूबी हुई है कि यह मुंबई के बाहर के दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाएगी।
एक हालिया इंटरव्यू में, चोपड़ा ने उस बेचैन कर देने वाले पल को याद किया जब चेन्नई के एक बड़े वितरक ने रिलीज से कुछ ही दिन पहले फिल्म का सौदा रद्द कर दिया। उसने इतना बड़ा जोखिम लेने से इनकार कर दिया था। स्थिति यह थी कि मुंबई के बाहर फिल्म का कोई खरीदार नहीं था। यह किसी भी निर्माता के लिए एक दुःस्वप्न जैसा था।
एक जोखिम भरा दांव जिसने बदली किस्मत
जब हर तरफ से दरवाजे बंद हो गए, तब विधु विनोद चोपड़ा ने एक ऐसा फैसला लिया जो या तो उन्हें बर्बाद कर सकता था या आबाद। उन्होंने फिल्म को खुद वितरित करने का जोखिम उठाया। उन्होंने चेन्नई के एक सिनेमाघर को सिर्फ ₹5 लाख में एक प्रिंट बेचा। इसके बाद जो हुआ, वह भारतीय सिनेमा के लिए एक केस स्टडी बन गया। सबकी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा जब उस अकेले थिएटर ने, बिना किसी बड़ी मार्केटिंग के, सिर्फ दर्शकों की आपसी तारीफ (word-of-mouth) के दम पर ₹1 करोड़ से अधिक की कमाई कर डाली।
चोपड़ा याद करते हैं, “पहले दो दिनों तक फिल्म देखने कोई नहीं आया, हॉल खाली थे। लेकिन जैसे ही लोगों ने इसे देखना शुरू किया, उन्हें यह इतनी पसंद आई कि उन्होंने दूसरों को बताना शुरू कर दिया। फिल्म ने धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ी और फिर ऐसी उड़ी कि रुकने का नाम ही नहीं लिया।”
एक फिल्म, और कई सितारों का उदय
इस अप्रत्याशित सफलता ने न केवल निर्देशक राजकुमार हिरानी जैसे हीरे को बॉलीवुड से परिचित कराया, बल्कि इसने संजय दत्त के डगमगाते स्टारडम को एक नई जान दे दी और उनके करियर की सबसे बड़ी वापसी कराई। साथ ही, इसने विधु विनोद चोपड़ा को एक अमीर और सम्मानित निर्माता बना दिया। वह मानते हैं कि यह जोखिम – जो शुरू में एक आपदा जैसा लग रहा था – अंततः उनके करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
यह फिल्म दर्शकों के लिए मुन्ना और सर्किट के उन प्रतिष्ठित किरदारों को लेकर आई, जिन्हें क्रमशः संजय दत्त और अरशद वारसी ने अमर कर दिया। इसके हास्य, भावना और सामाजिक संदेश के अनूठे मिश्रण ने वितरकों के शुरुआती अनुमानों को धता बताते हुए पूरे भारत के दर्शकों के दिलों को छू लिया।
चोपड़ा इस फिल्म की यात्रा की तुलना अपनी हालिया निर्देशित फिल्म, ’12वीं फेल’ (2023) से करते हैं। विक्रांत मैसी अभिनीत उस बायोग्राफिकल ड्रामा की भी शुरुआत बहुत मामूली हुई थी, कोई खास चर्चा नहीं थी। लेकिन उसने भी ₹70 करोड़ से अधिक की कमाई की और सात महीने से अधिक समय तक सिनेमाघरों में चली। चोपड़ा कहते हैं, “एक बार फिर, दर्शकों ने मुझे सही साबित कर दिया। अगर कहानी में ईमानदारी है, तो वह हमेशा अपने लोगों को ढूंढ लेगी।”
‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ का अनुभव भारतीय सिनेमा की अप्रत्याशित प्रकृति का एक जीता-जागता उदाहरण बना हुआ है – एक ऐसी दुनिया जहां सच्ची कहानी बाजार के सारे तर्क-वितर्क को धता बता सकती है, और जहां सिर्फ एक प्रिंट वाला एक थिएटर भी सब कुछ बदल सकता है।