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Join NowTahawwur Rana Mumbai Attack: क्या आप उस खौफनाक मंज़र को भूल सकते हैं जब आतंकवादियों ने भारत की आर्थिक राजधानी को दहला दिया था? 2008 के मुंबई आतंकी हमलों की कड़वी यादें आज भी ताज़ा हैं। इस भयानक हमले के पीछे की साजिश के तार अब एक-एक कर खुलते जा रहे हैं। भारत प्रत्यर्पित (extradited) किए जाने के बाद, मुंबई हमलों के मुख्य सूत्रधारों में से एक, तहव्वुर हुसैन राणा ने पूछताछ में कई ऐसे चौंकाने वाले खुलासे किए हैं जिन्होंने इस केस को एक नई दिशा दी है। लंबे समय तक अमेरिका, कनाडा और पाकिस्तान के बीच सक्रिय रहने वाले राणा ने न केवल अपनी पृष्ठभूमि, बल्कि अपने साथी डेविड हेडली और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़े अपने गहरे संबंधों का भी विस्तृत विवरण दिया है, जो भारत में हुए उस खूनी खेल के पीछे की सच्चाई को उजागर कर रहा है।
तहव्वुर राणा: एक अप्रत्याशित जीवन यात्रा और पाकिस्तान से भारत कनेक्शन!
तहव्वुर ने पूछताछ के दौरान बताया कि वह मूल रूप से पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चिचावतनी का रहने वाला है। उसके दिवंगत पिता, राणा वल्ली मोहम्मद, बी.ए. स्नातक थे और अविभाजित भारत के पंजाब राज्य के नवांशहर, जालंधर के मूल निवासी थे। भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के बाद, उसके पिता ने अपने परिवार के साथ पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के साहीवाल जिले के चिचावतनी गांव में बसने का फैसला किया। यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अपने आप में कई परतें खोलती है, जो बताते हैं कि कैसे इस क्षेत्र से संबंध रखने वाले लोग अलग-अलग देशों में फैले और कैसे कुछ लोगों के तार आतंकवाद से जुड़ गए।
कहां से की राणा ने पढ़ाई? कैसे हुई डेविड हेडली से पहली मुलाकात?
तहव्वुर की मां, मुबारक बेगम, 96 साल की उम्र तक जीवित रहीं और उन्होंने कनाडा में भी समय बिताया। राणा ने बताया कि 1974 से 1979 तक, उसने पाकिस्तान स्थित कैडेट कॉलेज हसन अब्दाल में पढ़ाई की। यह वही कॉलेज था जहाँ उसका खास दोस्त, डेविड हेडली भी पढ़ा करता था। राणा ने हेडली के रंग-रूप का भी वर्णन किया: गोरा रंग, और अलग-अलग रंगों की आँखें (heterochromia), जिसने उसे बचपन में ही प्रभावित कर दिया था। राणा ने यह भी खुलासा किया कि हेडली की मां एक अमेरिकी नागरिक थी और उसके पिता पाकिस्तानी थे। सेरिल (Headley की माँ) के पिता अमेरिकी वायु सेना में एयर कमोडोर थे। पारिवारिक कलह और सौतेली माँ की प्रताड़ना के कारण हेडली ने पाकिस्तान छोड़कर अमेरिका जाने का फैसला किया था।
सैन्य सेवा से लेकर अमेरिका-कनाडा में बसने तक का सफ़र!
1979 में, जब जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी गई, उसी दौरान राणा बिना बताए अमेरिका चला गया, हालांकि उसके पास वैध वीज़ा था। उसका लक्ष्य फिलाडेल्फिया के प्रतिष्ठित हानिमैन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में चिकित्सा शिक्षा (medical education) प्राप्त करना था, लेकिन महंगी ट्यूशन फीस ($6000) के कारण वह ऐसा नहीं कर पाया और उसे पाकिस्तान लौटना पड़ा। इसके बाद, उसने पाकिस्तान आर्मी के मेडिकल प्रोग्राम में आवेदन किया, प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की और चयनित भी हो गया। 1981 से 1986 तक, उसने रावलपिंडी स्थित आर्मी मेडिकल कॉलेज में प्रशिक्षण प्राप्त किया और 1986 में एमबीबीएस (MBBS) पूरा किया। उसे पाकिस्तान सेना के मेडिकल कोर में कैप्टन के पद पर नियुक्त किया गया।
उसकी पहली नियुक्ति 1986-1987 में क्वेटा में हुई। फिर 1987-1988 में सिंध और बलूचिस्तान के ग्रामीण इलाकों में और 1988-1989 तक बहावलपुर में डेजर्ट रेंजर्स के साथ तैनात रहा। 1989 में, उसे डेपुटेशन पर सऊदी अरब भेजा गया, जहाँ उसने सऊदी सशस्त्र बलों के साथ काम किया। 1992 में पाकिस्तान लौटने पर, उसे सियाचिन और बाल्तोरो सेक्टर में तैनाती मिली, जहाँ गंभीर पल्मोनरी और सेरेब्रल एडिमा से पीड़ित होने के बाद उसने 1993 में सेना से अवकाश लिया। इसके बाद वह जर्मनी और फिर इंग्लैंड गया, जहाँ वह करीब ग्यारह महीने रहा और पाकिस्तान सेना द्वारा ‘डेज़र्टर’ (deserter – भगोड़ा) घोषित कर दिया गया। 1994 में वह अमेरिका चला गया।
अमेरिका में चिकित्सा अभ्यास और अप्रवासी कानून केंद्र: वीज़ा रैकेट का पर्दाफाश?
अमेरिका में, राणा ने यूएस मेडिकल लाइसेंसिंग एग्जाम (USMLE) पास किया और 1997 में चिकित्सा अभ्यास की अनुमति प्राप्त की। उसी साल वह ओटावा, कनाडा चला गया और 2000 में कनाडा की नागरिकता हासिल कर ली। 2000 में ही उसे अमेरिकी निवेशक वीज़ा (Investor VISA) मिला और उसने इलिनॉय में एक मांस प्रसंस्करण संयंत्र और शिकागो में एक किराना दुकान स्थापित की। उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब में की गई बचत ने अमेरिका में उसके निवेश को संभव बनाया। उसकी पत्नी, समराज राणा, कनाडा में एक पंजीकृत डॉक्टर हैं जिन्होंने USMLE पास किया है।
पूछताछ के दौरान, राणा ने उस “इमिग्रेंट लॉ सेंटर” के बारे में भी बात की, जिसका विचार डेविड मॉरिस का था। उन्होंने शिकागो में एक शाखा खोली जहाँ रेमंड जे. सैंडर्स को वकील नियुक्त किया गया, जबकि ओटावा में डेविड मॉरिस और ऑस्ट्रेलिया में आरिफ ने इसे संभाला। भारत में सैयद सज्जाद (हैदराबाद निवासी) को यह ज़िम्मेदारी दी गई थी। इस केंद्र का उद्देश्य विभिन्न देशों के लिए वीज़ा दिलवाने में मदद करना था, जिसने सवालों के घेरे खड़े कर दिए हैं कि क्या ये वीज़ा प्रक्रियाएं आतंकवादियों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए थीं।
लश्कर-ए-तैयबा से गहरा रिश्ता: हेडली का कबूलनामा और राणा का भटकाने का प्रयास!
डेविड हेडली के साथ अपनी बचपन की दोस्ती का जिक्र करते हुए, राणा ने स्वीकार किया कि हम दोनों ने 1974 से 1979 तक कैडेट हसन अब्दाल मिलिट्री कॉलेज में साथ पढ़ाई की थी। हेडली द्वारा लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) से जुड़े तीन प्रशिक्षण कोर्स (‘आम’, ‘खास’, और एक अन्य जिसका नाम राणा को याद नहीं था) के बारे में बताने पर, राणा ने यह भी कहा कि हेडली ने कहा था कि लश्कर के सदस्य विचारधारा के अनुयायी नहीं बल्कि जासूस हैं, यह कहकर वह जांच को भटकाने की कोशिश कर रहा था।
मुंबई हमलों में मिलीभगत: किसने और क्या किया?
जब राणा से पूछा गया कि हेडली किन भाषाओं में निपुण है, तो उसने बताया कि वह पंजाबी, उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी, फारसी, पश्तो और अरबी धाराप्रवाह बोल सकता है। हेडली के 2005 में नशे की लत में होने की बात कहने और फिलाडेल्फिया में रहने का भी उसने ज़िक्र किया। राणा ने यह भी स्वीकार किया कि हेडली ने मुंबई में उतरने की जगहों की जानकारी उसे दी थी। जब हाफिज सईद से मुलाकात के बारे में पूछा गया, तो उसने मुलाकात से इनकार किया, लेकिन स्वीकार किया कि लश्कर-ए-तैयबा, हरकत-उल-जिहाद, और जैश-ए-मोहम्मद पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन हैं। भारत में बशीर शेख द्वारा उसे कनाडा में मिलने और हेडली के लिए मुंबई में रहने की जगह ढूंढने में मदद करने का भी उसने ज़िक्र किया।
मेजर इकबाल, अब्दुल रहमान पाशा, साजिद मीर: क्या थे पाक एजेंसियों के कनेक्शन?
पूछताछ में मेजर इकबाल (जिन्हें पाकिस्तान के कबायली क्षेत्र में गिरफ्तार बताया गया), अब्दुल रहमान पाशा (जिससे मुलाकात हेडली ने करवाई थी), और साजिद मीर जैसे पाकिस्तान सेना और खुफिया एजेंसियों से जुड़े लोगों का ज़िक्र भी आया। राणा ने ‘राजाराम रेगे’ के बारे में डेविड हेडली की बात का जिक्र करते हुए कहा कि वह रिश्वत मांग रहा था, लेकिन किस काम के लिए, यह स्पष्ट नहीं किया। मेजर इकबाल की ईमेल आईडी भेजे जाने के बारे में पूछे जाने पर उसने कोई कारण नहीं बताया और गुमराह करने की कोशिश की। वहीं, हेडली द्वारा अमेरिकी भारतीय दूतावास में वीज़ा फॉर्म में गलत जानकारी देने पर उसने दूतावास को ही जांच न करने के लिए जिम्मेदार ठहराया। यह सब बातें पाकिस्तान की संलिप्तता की ओर गहरा इशारा करती हैं।
दिवालिया होने से बचने का जरिया या सच्चाई को छुपाने की कोशिश?
18.10.2009 को डेनमार्क अखबार पर हमले के मामले में गिरफ्तार किए गए राणा को पता था कि एफबीआई डेविड हेडली के बयानों को कई दिनों तक दर्ज कर रही थी। अपनी एमबीबीएस डिग्री, पाकिस्तान आर्मी में कैप्टन डॉक्टर के रूप में सेवा, क्वेटा, सिंध-बालूचिस्तान के ग्रामीण इलाकों, बहावलपुर की मरुस्थली रेंज, सियाचिन-बाल्तोरो सेक्टर में तैनाती, और सऊदी अरब में सेवा का ज़िक्र करने के साथ ही, उसने सेना से ‘डेज़र्ट’ होने का कारण सियाचिन पोस्टिंग के दौरान पल्मोनरी एडिमा बताया। यह सब मिलकर उसकी जटिल पृष्ठभूमि और उसकी यात्राओं की एक विस्तृत तस्वीर पेश करते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह कैसे विभिन्न देशों में सक्रिय रह सका और आतंकवादी नेटवर्क के लिए सुविधाएं प्रदान कर सका।
सनसनीखेज खुलासे और आगामी விசாரतों की उम्मीद!
तहव्वुर राणा के ये खुलासे न केवल मुंबई हमलों के जांच में महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं, बल्कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों और वहां की खुफिया एजेंसियों के अंदरूनी कामकाज पर भी नई रोशनी डाल रहे हैं। भविष्य की पूछताछ में ऐसे और भी कई चौंकाने वाले खुलासे होने की उम्मीद है जो इस बड़े आतंकी साजिश की तह तक पहुंचने में मदद करेंगे।