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Join NowMuharram: इस्लामी कैलेंडर का पहला और सबसे पवित्र महीना ‘मुहर्रम’ बस दस्तक देने ही वाला है, जो सिर्फ एक नए साल की शुरुआत का प्रतीक नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय के लिए गहरे धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का अवसर भी है। जैसा कि इस्लामिक परंपराओं में होता है, हर महीने की शुरुआत चाँद के दीदार से तय होती है, जिसके कारण अक्सर छुट्टियों और विशेष दिनों की तारीखों को लेकर थोड़ी अनिश्चितता बनी रहती है। इस वर्ष भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब यह सवाल उठा कि मुहर्रम की शुरुआत 6 जुलाई को होगी या 7 जुलाई को।
कब होगा नए हिजरी वर्ष का आगाज़? चाँद की गवाही से हुआ खुलासा!
चाँद की शहादत के आधार पर की गई रिपोर्टों के अनुसार, भारत में 26 जून 2025 को चाँद देखे जाने के बाद, नए इस्लामी वर्ष 1447 हिजरी का आगाज़ 27 जून 2025, शुक्रवार से हो चुका है। इस गणना के अनुसार, मुहर्रम का महीना अपने महत्वपूर्ण दिन, ‘याउम-ए-आशूरा’, के साथ अपने चरम पर पहुंचेगा।
6 जुलाई 2025: ‘याउम-ए-आशूरा’ – इमाम हुसैन के बलिदान का स्मरण
मुहर्रम का दसवां दिन, जिसे ‘याउम-ए-आशूरा’ कहा जाता है, इस्लाम धर्म, विशेषकर शिया मुसलमानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र दिनों में से एक है। यह दिन पैगंबर मुहम्मद के नवासे, इमाम हुसैन इब्न अली की कर्बला के युद्ध में हुई शहादत को याद करने का दिन है। इस वर्ष, याउम-ए-आशूरा रविवार, 6 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा। इसी दिन के महत्व को देखते हुए, भारत सरकार ने भी आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा की है, ताकि लोग इस दिन को विधिवत मना सकें और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकें।
तज़िया की रस्म: आस्था, कला और भावुकता का संगम
शिया मुस्लिम समुदाय के लिए ‘आशूरा’ सिर्फ शोक का दिन नहीं, बल्कि अपनी गहरी आस्था और इमाम हुसैन के प्रति प्रेम को व्यक्त करने का एक भावनात्मक माध्यम है। इस दिन के मुख्य आकर्षणों में से एक ‘तज़िया’ (Tazia) का जुलूस है। तज़िया, इमाम हुसैन के मकबरे की हूबहू मिनिएचर प्रतिकृतियां होती हैं, जिन्हें अत्यंत बारीकी और कलात्मकता से बनाया जाता है। अक्सर बांस और रंगीन कागज़ों व कपड़ों से सजे ये तज़िये, देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
इन तज़ियों को कई दिन पहले से ही घरों में लाया जाता है, जहाँ परिवार इन्हें श्रद्धा और सम्मान के साथ सहेज कर रखते हैं। रात के समय, इन्हें रंगीन रोशनियों से सजाया जाता है, जो एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। ‘आशूरा’ के दिन, इन पवित्र और श्रद्धेय प्रतिकृतियों को भारी जनसमूह के साथ जुलूस के रूप में निकाला जाता है और अंततः उन्हें कब्रिस्तान ले जाकर दफ़न कर दिया जाता है। यह रस्म इमाम हुसैन के बलिदान को याद करने और उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक प्रतीकात्मक तरीका है।
सुन्नी और शिया समुदाय के अलग-अलग उत्सव:
मुहर्रम का महीना सुन्नी और शिया दोनों ही मुस्लिम समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन उनके मनाने के तरीके में भिन्नता है। सुन्नी मुस्लिम इस महीने के पवित्र दिनों, विशेषकर ‘आशूरा’ के दिन रोज़ा रखने, इबादत करने और क़ुरान की तिलावत करने को प्राथमिकता देते हैं। इसके विपरीत, शिया मुस्लिम इमाम हुसैन की शहादत के दुख को मनाते हुए, जुलूस निकालते हैं और तज़ियों जैसी प्रतीकात्मक रस्में पूरी करते हैं। दोनों ही तरीकों में अल्लाह के प्रति गहरी आस्था और इमाम हुसैन की कुर्बानियों का स्मरण समाहित है।
मुहर्रम, एक नए साल की शुरुआत के साथ-साथ आत्म-चिंतन, बलिदान को याद करने और इस्लामी मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
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