Income Tax Department: सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट ने आयकर विभाग को क्यों रोका?

Published On: June 20, 2025
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Income Tax Department: सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट ने आयकर विभाग को क्यों रोका?

Income Tax Department: देश के करोड़ों करदाताओं (Taxpayers) के लिए एक बेहद राहत भरी खबर सामने आई है। आयकर विभाग (Income Tax Department) अब अपनी मनमानी के तहत पुराने आयकर मामलों (Old Income Tax Cases) को मनमर्जी से नहीं खंगाल सकेगा और न ही बिना किसी निर्धारित समय-सीमा का पालन किए किसी भी टैक्सपेयर को नोटिस (IT Notice Rules) भेज सकेगा। यह फैसला आयकर विभाग (IT Department Rules) की री-असेसमेंट (IT Reassessment Rules) की अनियंत्रित कार्रवाइयों पर प्रभावी रूप से रोक लगाता है, जिससे करदाताओं को लंबे समय से चली आ रही परेशानी से मुक्ति मिल गई है। इस बारे में आइए विस्तृत रूप से जानते हैं।

आयकर विभाग के लिए तय किए गए हैं नए नियम (New Rules for Income Tax Reassessment):

नए प्रावधानों के अनुसार, आयकर विभाग (IT New Rules) अब आम तौर पर 3 साल से ज़्यादा पुराने सामान्य टैक्स मामलों (Normal Tax Cases Beyond 3 Years) की री-असेसमेंट (Reassessment Rules 2025) नहीं कर सकेगा। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जो करदाताओं को निश्चितता प्रदान करता है। हालांकि, यदि कोई आयकर से जुड़ा मामला गंभीर धोखाधड़ी (Serious Fraud Case) से संबंधित है, या फिर करदाता ने ₹50 लाख (Income Concealment Above ₹50 Lakh) से अधिक सालाना आय छिपाने (Concealment of Income) का अपराध किया है, तो ऐसी विशेष परिस्थितियों में आयकर विभाग के पास उस मामले को 10 साल तक (IT Has Right to Reopen for 10 Years) खंगालने का अधिकार होगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि बड़े वित्तीय अपराधों पर सरकार की पकड़ मज़बूत बनी रहे। यह नियम वित्तीय पारदर्शिता (Financial Transparency India) को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला (Delhi High Court’s Landmark Decision):

आयकर मामले (Income Tax Cases) की री-असेसमेंट (IT Reassessment Judgement) को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की ओर से भी एक बड़ा और निर्णायक फैसला (Delhi High Court Decision on Tax) सुनाया गया है। हाईकोर्ट के इस फैसले के अनुसार, अब आयकर विभाग (IT Department’s Arbitrariness Stopped) मनमर्जी से किसी भी समय किसी भी करदाता को किसी पुराने मामले को खंगालने के लिए नोटिस नहीं भेज सकता। नोटिस भेजने से पहले विभाग को री-असेसमेंट की निर्धारित समय-सीमा (Time Limit for Reassessment) को सख्ती से ध्यान में रखना होगा और उसी के भीतर कार्यवाही करनी होगी। यह करदाताओं के कानूनी अधिकारों (Taxpayer’s Legal Rights) को मज़बूती प्रदान करता है।

किस धारा के तहत सुनाया गया है यह फैसला? (Ruling Under Which Section of Income Tax Act):

यह महत्वपूर्ण फैसला आयकर कानून (Income Tax Act) की धारा 148 (Section 148 of IT Act) के तहत सुनाया गया है। इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ₹50 लाख से कम की आय से जुड़े 3 साल पुराने आयकर मामले को (Tax Cases Below 50 Lakhs) अब विभाग फिर से नहीं खंगाल सकता। इसके साथ ही, विभाग के पास यह शक्ति बरकरार रहेगी कि यदि मामला ₹50 लाख से ज़्यादा की आय छिपाने (Case of Concealment of Income over 50 Lakhs) का हो, तो वह 10 साल के भीतर भी मामले को खंगाल सकता है। यह नियम प्रणाली को अधिक न्यायसंगत और जवाबदेह बनाता है।

टैक्सपेयर्स को मिली बड़ी राहत (Big Relief for Taxpayers):

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court Decision on Taxpayers) ने अपने फैसले में सीबीडीटी (Central Board of Direct Taxes – CBDT) के निर्देशों पर आधारित ‘ट्रैवल बैक इन टाइम सिद्धांत’ (‘Travel Back in Time’ Principle) पर भी गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने इस सिद्धांत को करदाताओं के हित में नहीं माना (Not in Taxpayer’s Interest) और कानूनी दृष्टि से इसे ‘खरा नहीं’ बताया। हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से देशभर के अनेक टैक्सपेयर्स (Taxpayers Update) को भारी राहत मिली है, जो पहले कभी भी, किसी भी पुराने मामले के लिए नोटिस मिलने के डर से जूझते थे। करदाताओं को अब यह बड़ी राहत मिली है कि इनकम टैक्स (Income Tax Notices) अब पुराने मामलों में अचानक, किसी भी समय उन्हें नोटिस नहीं भेज सकेगा, जिससे उनके वित्तीय नियोजन और मानसिक शांति (Peace of Mind for Taxpayers) को बढ़ावा मिलेगा।

री-असेसमेंट को लेकर पहले क्या था प्रावधान? (Previous Reassessment Provisions):

री-असेसमेंट (New Reassessment Rules 2025) को लेकर पहले कानून में अलग प्रावधान थे। वर्ष 2021-22 (IT Law 2021-22) में नया आयकर कानून बनाया गया था, जिसने इस प्रणाली में बड़े बदलाव किए। पहले के नियमों (Old IT Rules) के अनुसार, आयकर विभाग किसी भी टैक्स मामले को 6 साल (6 Years Old Cases Reopened) तक के लिए फिर से खोल सकता था। लेकिन नए नियम के अनुसार, यह अवधि घटाकर 3 साल (3 Years Period for Reassessment) तय की गई। अब, हाईकोर्ट के फैसले के बाद इस मामले में आयकर विभाग की ‘मनमानी’ पर रोक लग गई है। विभाग अब केवल नए नियमों (IT New Rules) के अनुसार ही नोटिस भेज सकेगा, जिससे प्रणाली में अधिक पारदर्शिता (Transparency in IT Process) और जवाबदेही (Accountability in Tax System) आएगी।

आयकर विभाग का क्या था तर्क? (Income Tax Department’s Argument):

दूसरी ओर, आयकर विभाग (IT Department’s Stance) के अधिकारियों का तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News on IT) के फैसले के बाद मई 2022 के एक मामले में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने एक सर्कुलर (CBDT Circular May 2022) जारी किया था। उस सर्कुलर के अनुसार, पुराने मामलों के लिए जारी किए गए ऐसे नोटिस (Validity of Old Notices) वैध माने गए थे। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court’s Rejection) ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया।

यहां यह समझना ज़रूरी है कि आयकर कानून (Income Tax Law Provisions) में किए गए प्रावधानों के अनुसार ही किसी टैक्स मामले की री-असेसमेंट (Reassessment ke Niyam) की जा सकती है। यह महत्वपूर्ण निर्णय भारत में टैक्स कानून और उनके कार्यान्वयन (Implementation of Tax Laws India) के बीच संतुलन स्थापित करने में मील का पत्थर साबित होगा। यह दिखाता है कि न्यायपालिका किस प्रकार करदाताओं के अधिकारों (Taxpayers Rights in India) की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करती है।

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