Income Tax Rule : आयकर विभाग रख रहा है आपके खर्चों पर नज़र, नए नियम लागू

Published On: June 7, 2025
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Income Tax Rule : आयकर विभाग रख रहा है आपके खर्चों पर नज़र, नए नियम लागू
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Income Tax Rule : आयकर विभाग रख रहा है आपके खर्चों पर नज़र, नए नियम लागूयदि आप एक टैक्सपेयर (taxpayer) हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। दरअसल, आपको यह जानना चाहिए कि आयकर विभाग (Income Tax Department) अब उन व्यक्तियों पर कड़ी नज़र रख रहा है जो अपनी घोषित आय (declared income) की तुलना में बहुत अधिक खर्च करते हैं या जो अपनी वास्तविक आय (actual income) का सही खुलासा नहीं करते। विभाग इस खाई को पाटने के लिए बैंकों, डाकघरों (post offices) और अन्य विभिन्न वित्तीय संस्थाओं (financial institutions) से बड़ी रकम के लेन-देन (high-value transactions) की विस्तृत जानकारी जुटा रहा है। इस कदम का उद्देश्य कर चोरी (tax evasion) को रोकना और देश की वित्तीय प्रणाली में अधिक पारदर्शिता लाना है।

आयकर विभाग का नया तंत्र (New Mechanism of Income Tax Department):

आयकर विभाग (Income Tax Department India) अब आधुनिक तकनीकों (modern technologies) और विभिन्न सरकारी एजेंसियों (various government agencies) के साथ मिलकर एक सशक्त तंत्र बना रहा है। इस तंत्र के माध्यम से ऐसे लोगों की पहचान की जा रही है जो अपनी आय छिपाते हैं (hiding income) या उसे कम करके दिखाते हैं। विभाग विशेष रूप से उन व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो अपनी जीवनशैली पर अत्यधिक खर्च (excessive spending) करते हैं, महंगी संपत्तियाँ खरीदते हैं या बड़े लेन-देन करते हैं, जबकि उनकी घोषित आय इसके अनुपात में बहुत कम होती है। इस पहल का मुख्य लक्ष्य कर चोरी (tax avoidance) पर लगाम कसना, काले धन (black money) के प्रवाह को रोकना और देश की समग्र वित्तीय पारदर्शिता (financial transparency) को बढ़ाना है।

क्या है यह नई जानकारी और किसे देनी होगी रिपोर्ट? (What is this new information and who has to report it?)

सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (Central Board of Direct Taxes – CBDT), जो भारत में प्रत्यक्ष करों के लिए सर्वोच्च नियामक निकाय है, ने विभिन्न वित्तीय संस्थाओं को सख्त निर्देश जारी किए हैं। इन संस्थाओं में प्रमुख हैं:

  • बैंक (Banks)
  • पोस्ट ऑफिस (Post Offices)
  • सहकारी समितियाँ (Cooperative Societies)
  • फिनटेक कंपनियाँ (Fintech Companies)
  • म्यूचुअल फंड हाउसेज़ (Mutual Fund Houses)

इन सभी संस्थाओं को निर्देश दिया गया है कि वे एक वित्तीय वर्ष (financial year) के दौरान अपने ग्राहकों द्वारा किए गए बड़ी रकम के लेन-देन (high value transactions) की पूरी और विस्तृत जानकारी अगले वित्तीय वर्ष की 31 मई तक सरकार यानी आयकर विभाग (reporting to Income Tax) को सौंपें। यह वार्षिक रिपोर्टिंग अनिवार्य है।

क्या होते हैं हाई वैल्यू वाले ट्रांजेक्शन (What are High-Value Transactions)?

हाई वैल्यू वाले ट्रांजेक्शन (High Value Transactions – HVT) उन वित्तीय लेन-देन को कहते हैं जिनकी राशि आयकर विभाग द्वारा निर्धारित एक तय सीमा से अधिक होती है। जब कोई व्यक्ति अपने बैंक खाते से एक निश्चित सीमा से अधिक की बड़ी रकम जमा (cash deposit) करता है, निकालता है (cash withdrawal), या किसी अन्य प्रकार का बड़ा लेन-देन (financial transaction) करता है, तो बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं को इसकी अनिवार्य रूप से सूचना आयकर विभाग (Income Tax Department) को देनी पड़ती है। यह जानकारी स्टेटमेंट ऑफ फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन्स (Statement of Financial Transactions – SFT) के तहत फॉर्म 61A या फॉर्म 61B में इलेक्ट्रॉनिक रूप से दी जाती है। इससे आयकर विभाग को व्यक्तियों के बड़े वित्तीय लेनदेन पर नज़र रखने (monitoring financial transactions) और यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि टैक्स नियमों (tax rules India) और कानूनों का सही ढंग से पालन किया जा रहा है।

इनकम टैक्स विभाग को किन-किन ट्रांजेक्शन की जानकारी दी जाती है? (Which transactions are reported to Income Tax Department?)

यदि कोई व्यक्ति निर्धारित सीमा से ज़्यादा पैसा नकद में जमा करता है, निकालता है, कोई बड़ी संपत्ति खरीदता है, या किसी अन्य प्रकार का बड़ा वित्तीय लेन-देन या खर्च करता है, तो बैंक, पोस्ट ऑफिस, रजिस्ट्री ऑफिस (Registry office) और अन्य संबंधित संस्थानों को उसकी विस्तृत जानकारी इनकम टैक्स विभाग (Income Tax reporting) को देनी होती है। जानिए किन-किन प्रमुख लेन-देन की जानकारी देना अनिवार्य है और उनकी सीमाएँ क्या हैं:

  1. बैंक ड्राफ्ट, पे ऑर्डर, चेक या RBI के प्रीपेड इंस्ट्रूमेंट के लिए नकद भुगतान:
    • सीमा: 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक या को-ऑपरेटिव सोसायटी (फॉर्म 61A)
  2. बचत खाते (Saving Account) में नकद जमा:
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये से ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक, को-ऑपरेटिव बैंक या पोस्ट ऑफिस
  3. करंट अकाउंट (Current Account) में नकद जमा या निकासी:
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 50 लाख रुपये से ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक या को-ऑपरेटिव बैंक
  4. जमीन या मकान की खरीद, बिक्री:
    • सीमा: 30 लाख रुपये या उससे ज़्यादा (रजिस्ट्री वैल्यू)
    • रिपोर्ट कौन करेगा: रजिस्ट्री ऑफिस या सब-रजिस्ट्रार ऑफिस (फॉर्म 61A)
  5. शेयर, म्यूचुअल फंड, डिबेंचर या बॉन्ड में नकद निवेश:
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: संबंधित कंपनी (शेयर/डिबेंचर/बॉन्ड जारी करने वाली) या म्यूचुअल फंड ट्रस्टी (म्यूचुअल फंड जारी करने वाली)
    • ध्यान दें: यदि पैसा एक म्यूचुअल फंड स्कीम से दूसरी में ट्रांसफर हुआ है (स्विचिंग), तो इसकी रिपोर्टिंग आवश्यक नहीं है।
  6. क्रेडिट कार्ड का नकद बिल भुगतान (Cash Payment of Credit Card Bills):
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 1 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक या को-ऑपरेटिव सोसायटी
  7. क्रेडिट कार्ड का नॉन-कैश पेमेंट (ऑनलाइन, चेक आदि से बिल भुगतान):
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक या को-ऑपरेटिव सोसायटी
  8. फॉरेन एक्सचेंज में लेन-देन (Foreign Exchange Transactions) (जैसे फॉरेक्स कार्ड लोड करना, डेबिट/क्रेडिट कार्ड से विदेशी खर्च, ट्रैवलर चेक खरीदना):
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (FEMA) के अंतर्गत लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति (Authorised Person)
  9. फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit – FD) या रिकरिंग डिपॉजिट (Recurring Deposit – RD) में नकद जमा:
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक, को-ऑपरेटिव बैंक, निधि कंपनी या एनबीएफसी (NBFC – Non-Banking Financial Company)

आयकर विभाग द्वारा पारदर्शिता और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए अन्य महत्वपूर्ण कदम (Other Important Steps Taken by Income Tax Department):

फॉर्म 26AS में सुधार (Improvements in Form 26AS):
अब फॉर्म 26AS (Form 26AS) केवल आपके काटे गए टैक्स (TDS) या जमा किए गए एडवांस टैक्स (Advance Tax) की जानकारी तक सीमित नहीं है। इसे अधिक व्यापक बना दिया गया है। अब इस फॉर्म में आपके द्वारा किए गए बड़े ट्रांजेक्शन (SFT – Specified Financial Transactions) की जानकारी भी शामिल होती है, जो विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा रिपोर्ट की जाती है।

एनुअल इंफॉर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) – नया सिस्टम (Annual Information Statement – AIS):
इसके अलावा, AIS (Annual Information Statement) नाम से एक नया और अधिक विस्तृत सिस्टम शुरू किया गया है। यह आपके फॉर्म 26AS (Form 26AS details) का ही एक उन्नत संस्करण है। AIS में आपके वित्तीय वर्ष के दौरान किए गए लगभग सभी प्रकार के वित्तीय लेन-देन (comprehensive financial transaction details) की जानकारी होती है, जिसमें सैलरी, ब्याज आय, शेयर ट्रांजेक्शन, संपत्ति की खरीद-बिक्री और अन्य बड़े लेन-देन शामिल हैं। आप अपने आयकर ई-फाइलिंग पोर्टल पर लॉग इन करके इस AIS रिपोर्ट को देख सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि विभाग के पास आपके वित्तीय लेन-देन की सही जानकारी है या नहीं।

कैश निकालने पर TDS (Tax Deduction at Source on Cash Withdrawal):
बड़ी मात्रा में नकदी के प्रचलन को हतोत्साहित करने के लिए, यदि कोई व्यक्ति एक वित्तीय वर्ष में अपने बैंक खाते से कुल 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की नकदी (cash withdrawal limit) निकालता है, तो उस अतिरिक्त राशि पर 2% टीडीएस (2% TDS on cash withdrawal) काटा जाएगा।

हालाँकि, नियमों को और सख्त करते हुए यह प्रावधान भी किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति ने पिछले तीन निर्धारण वर्षों (last three assessment years) से अपना आयकर रिटर्न (Income Tax Return – ITR) दाखिल नहीं किया है, तो उनके लिए कैश निकासी की सीमा कम कर दी गई है। ऐसे मामलों में, 20 लाख रुपये से ज्यादा की कैश निकासी पर 2% टीडीएस और 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की निकासी पर 5% टीडीएस (higher TDS on cash withdrawal) काटा जाएगा।

आईटीआर फाइल करना क्यों जरूरी है (Why ITR Filing is Mandatory):
भारतीय कानून के अनुसार, यदि आपकी सालाना आय मूल छूट सीमा (basic exemption limit) (वर्तमान में ₹2.5 लाख, वरिष्ठ नागरिकों के लिए अधिक) से ज़्यादा है, तो आयकर रिटर्न (ITR filing) फाइल करना अनिवार्य है।

इसके अतिरिक्त, अप्रैल 2019 से नियमों में बदलाव किया गया है। अब यदि आपकी आय मूल छूट सीमा से कम भी है, फिर भी आपको आईटीआर फाइल करना अनिवार्य (mandatory ITR filing) होगा, यदि आपने वित्तीय वर्ष के दौरान निम्नलिखित में से कोई भी कार्य किया है:

  • बैंक के करंट अकाउंट (current account) में कुल 1 करोड़ रुपये या उससे ज़्यादा जमा किए हैं।
  • विदेश यात्रा (foreign travel expense) पर कुल 2 लाख रुपये या उससे ज़्यादा खर्च किए हैं।
  • बिजली बिल (electricity bill payment) का भुगतान कुल 1 लाख रुपये या उससे ज़्यादा किया है।

ये सभी कदम आयकर विभाग (Income Tax Department) द्वारा कर अनुपालन (tax compliance) को बेहतर बनाने, कर आधार (tax base) का विस्तार करने और देश में एक मजबूत तथा पारदर्शी वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र (transparent financial ecosystem) बनाने के उद्देश्य से उठाए गए हैं। टैक्सपेयर्स को इन नियमों की जानकारी होना और उनका पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।


यदि आप एक टैक्सपेयर (taxpayer) हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। दरअसल, आपको यह जानना चाहिए कि आयकर विभाग (Income Tax Department) अब उन व्यक्तियों पर कड़ी नज़र रख रहा है जो अपनी घोषित आय (declared income) की तुलना में बहुत अधिक खर्च करते हैं या जो अपनी वास्तविक आय (actual income) का सही खुलासा नहीं करते। विभाग इस खाई को पाटने के लिए बैंकों, डाकघरों (post offices) और अन्य विभिन्न वित्तीय संस्थाओं (financial institutions) से बड़ी रकम के लेन-देन (high-value transactions) की विस्तृत जानकारी जुटा रहा है। इस कदम का उद्देश्य कर चोरी (tax evasion) को रोकना और देश की वित्तीय प्रणाली में अधिक पारदर्शिता लाना है।

आयकर विभाग का नया तंत्र (New Mechanism of Income Tax Department):

आयकर विभाग (Income Tax Department India) अब आधुनिक तकनीकों (modern technologies) और विभिन्न सरकारी एजेंसियों (various government agencies) के साथ मिलकर एक सशक्त तंत्र बना रहा है। इस तंत्र के माध्यम से ऐसे लोगों की पहचान की जा रही है जो अपनी आय छिपाते हैं (hiding income) या उसे कम करके दिखाते हैं। विभाग विशेष रूप से उन व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो अपनी जीवनशैली पर अत्यधिक खर्च (excessive spending) करते हैं, महंगी संपत्तियाँ खरीदते हैं या बड़े लेन-देन करते हैं, जबकि उनकी घोषित आय इसके अनुपात में बहुत कम होती है। इस पहल का मुख्य लक्ष्य कर चोरी (tax avoidance) पर लगाम कसना, काले धन (black money) के प्रवाह को रोकना और देश की समग्र वित्तीय पारदर्शिता (financial transparency) को बढ़ाना है।

क्या है यह नई जानकारी और किसे देनी होगी रिपोर्ट? (What is this new information and who has to report it?)

सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (Central Board of Direct Taxes – CBDT), जो भारत में प्रत्यक्ष करों के लिए सर्वोच्च नियामक निकाय है, ने विभिन्न वित्तीय संस्थाओं को सख्त निर्देश जारी किए हैं। इन संस्थाओं में प्रमुख हैं:

  • बैंक (Banks)
  • पोस्ट ऑफिस (Post Offices)
  • सहकारी समितियाँ (Cooperative Societies)
  • फिनटेक कंपनियाँ (Fintech Companies)
  • म्यूचुअल फंड हाउसेज़ (Mutual Fund Houses)

इन सभी संस्थाओं को निर्देश दिया गया है कि वे एक वित्तीय वर्ष (financial year) के दौरान अपने ग्राहकों द्वारा किए गए बड़ी रकम के लेन-देन (high value transactions) की पूरी और विस्तृत जानकारी अगले वित्तीय वर्ष की 31 मई तक सरकार यानी आयकर विभाग (reporting to Income Tax) को सौंपें। यह वार्षिक रिपोर्टिंग अनिवार्य है।

क्या होते हैं हाई वैल्यू वाले ट्रांजेक्शन (What are High-Value Transactions)?

हाई वैल्यू वाले ट्रांजेक्शन (High Value Transactions – HVT) उन वित्तीय लेन-देन को कहते हैं जिनकी राशि आयकर विभाग द्वारा निर्धारित एक तय सीमा से अधिक होती है। जब कोई व्यक्ति अपने बैंक खाते से एक निश्चित सीमा से अधिक की बड़ी रकम जमा (cash deposit) करता है, निकालता है (cash withdrawal), या किसी अन्य प्रकार का बड़ा लेन-देन (financial transaction) करता है, तो बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं को इसकी अनिवार्य रूप से सूचना आयकर विभाग (Income Tax Department) को देनी पड़ती है। यह जानकारी स्टेटमेंट ऑफ फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन्स (Statement of Financial Transactions – SFT) के तहत फॉर्म 61A या फॉर्म 61B में इलेक्ट्रॉनिक रूप से दी जाती है। इससे आयकर विभाग को व्यक्तियों के बड़े वित्तीय लेनदेन पर नज़र रखने (monitoring financial transactions) और यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि टैक्स नियमों (tax rules India) और कानूनों का सही ढंग से पालन किया जा रहा है।

इनकम टैक्स विभाग को किन-किन ट्रांजेक्शन की जानकारी दी जाती है? (Which transactions are reported to Income Tax Department?)

यदि कोई व्यक्ति निर्धारित सीमा से ज़्यादा पैसा नकद में जमा करता है, निकालता है, कोई बड़ी संपत्ति खरीदता है, या किसी अन्य प्रकार का बड़ा वित्तीय लेन-देन या खर्च करता है, तो बैंक, पोस्ट ऑफिस, रजिस्ट्री ऑफिस (Registry office) और अन्य संबंधित संस्थानों को उसकी विस्तृत जानकारी इनकम टैक्स विभाग (Income Tax reporting) को देनी होती है। जानिए किन-किन प्रमुख लेन-देन की जानकारी देना अनिवार्य है और उनकी सीमाएँ क्या हैं:

  1. बैंक ड्राफ्ट, पे ऑर्डर, चेक या RBI के प्रीपेड इंस्ट्रूमेंट के लिए नकद भुगतान:
    • सीमा: 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक या को-ऑपरेटिव सोसायटी (फॉर्म 61A)
  2. बचत खाते (Saving Account) में नकद जमा:
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये से ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक, को-ऑपरेटिव बैंक या पोस्ट ऑफिस
  3. करंट अकाउंट (Current Account) में नकद जमा या निकासी:
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 50 लाख रुपये से ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक या को-ऑपरेटिव बैंक
  4. जमीन या मकान की खरीद, बिक्री:
    • सीमा: 30 लाख रुपये या उससे ज़्यादा (रजिस्ट्री वैल्यू)
    • रिपोर्ट कौन करेगा: रजिस्ट्री ऑफिस या सब-रजिस्ट्रार ऑफिस (फॉर्म 61A)
  5. शेयर, म्यूचुअल फंड, डिबेंचर या बॉन्ड में नकद निवेश:
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: संबंधित कंपनी (शेयर/डिबेंचर/बॉन्ड जारी करने वाली) या म्यूचुअल फंड ट्रस्टी (म्यूचुअल फंड जारी करने वाली)
    • ध्यान दें: यदि पैसा एक म्यूचुअल फंड स्कीम से दूसरी में ट्रांसफर हुआ है (स्विचिंग), तो इसकी रिपोर्टिंग आवश्यक नहीं है।
  6. क्रेडिट कार्ड का नकद बिल भुगतान (Cash Payment of Credit Card Bills):
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 1 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक या को-ऑपरेटिव सोसायटी
  7. क्रेडिट कार्ड का नॉन-कैश पेमेंट (ऑनलाइन, चेक आदि से बिल भुगतान):
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक या को-ऑपरेटिव सोसायटी
  8. फॉरेन एक्सचेंज में लेन-देन (Foreign Exchange Transactions) (जैसे फॉरेक्स कार्ड लोड करना, डेबिट/क्रेडिट कार्ड से विदेशी खर्च, ट्रैवलर चेक खरीदना):
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (FEMA) के अंतर्गत लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति (Authorised Person)
  9. फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit – FD) या रिकरिंग डिपॉजिट (Recurring Deposit – RD) में नकद जमा:
    • सीमा: एक वित्तीय वर्ष में कुल 10 लाख रुपये या उससे ज़्यादा
    • रिपोर्ट कौन करेगा: बैंक, को-ऑपरेटिव बैंक, निधि कंपनी या एनबीएफसी (NBFC – Non-Banking Financial Company)

आयकर विभाग द्वारा पारदर्शिता और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए अन्य महत्वपूर्ण कदम (Other Important Steps Taken by Income Tax Department):

फॉर्म 26AS में सुधार (Improvements in Form 26AS):
अब फॉर्म 26AS (Form 26AS) केवल आपके काटे गए टैक्स (TDS) या जमा किए गए एडवांस टैक्स (Advance Tax) की जानकारी तक सीमित नहीं है। इसे अधिक व्यापक बना दिया गया है। अब इस फॉर्म में आपके द्वारा किए गए बड़े ट्रांजेक्शन (SFT – Specified Financial Transactions) की जानकारी भी शामिल होती है, जो विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा रिपोर्ट की जाती है।

एनुअल इंफॉर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) – नया सिस्टम (Annual Information Statement – AIS):
इसके अलावा, AIS (Annual Information Statement) नाम से एक नया और अधिक विस्तृत सिस्टम शुरू किया गया है। यह आपके फॉर्म 26AS (Form 26AS details) का ही एक उन्नत संस्करण है। AIS में आपके वित्तीय वर्ष के दौरान किए गए लगभग सभी प्रकार के वित्तीय लेन-देन (comprehensive financial transaction details) की जानकारी होती है, जिसमें सैलरी, ब्याज आय, शेयर ट्रांजेक्शन, संपत्ति की खरीद-बिक्री और अन्य बड़े लेन-देन शामिल हैं। आप अपने आयकर ई-फाइलिंग पोर्टल पर लॉग इन करके इस AIS रिपोर्ट को देख सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि विभाग के पास आपके वित्तीय लेन-देन की सही जानकारी है या नहीं।

कैश निकालने पर TDS (Tax Deduction at Source on Cash Withdrawal):
बड़ी मात्रा में नकदी के प्रचलन को हतोत्साहित करने के लिए, यदि कोई व्यक्ति एक वित्तीय वर्ष में अपने बैंक खाते से कुल 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की नकदी (cash withdrawal limit) निकालता है, तो उस अतिरिक्त राशि पर 2% टीडीएस (2% TDS on cash withdrawal) काटा जाएगा।

हालाँकि, नियमों को और सख्त करते हुए यह प्रावधान भी किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति ने पिछले तीन निर्धारण वर्षों (last three assessment years) से अपना आयकर रिटर्न (Income Tax Return – ITR) दाखिल नहीं किया है, तो उनके लिए कैश निकासी की सीमा कम कर दी गई है। ऐसे मामलों में, 20 लाख रुपये से ज्यादा की कैश निकासी पर 2% टीडीएस और 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की निकासी पर 5% टीडीएस (higher TDS on cash withdrawal) काटा जाएगा।

आईटीआर फाइल करना क्यों जरूरी है (Why ITR Filing is Mandatory):
भारतीय कानून के अनुसार, यदि आपकी सालाना आय मूल छूट सीमा (basic exemption limit) (वर्तमान में ₹2.5 लाख, वरिष्ठ नागरिकों के लिए अधिक) से ज़्यादा है, तो आयकर रिटर्न (ITR filing) फाइल करना अनिवार्य है।

इसके अतिरिक्त, अप्रैल 2019 से नियमों में बदलाव किया गया है। अब यदि आपकी आय मूल छूट सीमा से कम भी है, फिर भी आपको आईटीआर फाइल करना अनिवार्य (mandatory ITR filing) होगा, यदि आपने वित्तीय वर्ष के दौरान निम्नलिखित में से कोई भी कार्य किया है:

  • बैंक के करंट अकाउंट (current account) में कुल 1 करोड़ रुपये या उससे ज़्यादा जमा किए हैं।
  • विदेश यात्रा (foreign travel expense) पर कुल 2 लाख रुपये या उससे ज़्यादा खर्च किए हैं।
  • बिजली बिल (electricity bill payment) का भुगतान कुल 1 लाख रुपये या उससे ज़्यादा किया है।

ये सभी कदम आयकर विभाग (Income Tax Department) द्वारा कर अनुपालन (tax compliance) को बेहतर बनाने, कर आधार (tax base) का विस्तार करने और देश में एक मजबूत तथा पारदर्शी वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र (transparent financial ecosystem) बनाने के उद्देश्य से उठाए गए हैं। टैक्सपेयर्स को इन नियमों की जानकारी होना और उनका पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।


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