United Nations :  मनचाहा परिवार पाने में सबसे बड़ी बाधाएं क्या हैं? UN रिपोर्ट ने खोला राज

Published On: June 10, 2025
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United Nations : मनचाहा परिवार पाने में सबसे बड़ी बाधाएं क्या हैं? UN रिपोर्ट ने खोला राज

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United Nations : क्या आप भी सोचते हैं कि आज के समय में मनचाहा परिवार (Desired family) बनाना इतना मुश्किल क्यों हो गया है? संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा हाल ही में जारी एक बेहद महत्वपूर्ण रिपोर्ट (Important report) ने इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है, और जो तथ्य सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत (India) में प्रजनन स्वतंत्रता (Reproductive agency/freedom) और मनचाहा परिवार पाने की इच्छा (Desire to have desired family) के बीच सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है ‘वित्तीय सीमाएं’ (Financial limitations)। यह कोई छोटा-मोटा कारण नहीं है; लगभग 38 प्रतिशत लोग (Nearly 38 percent people) मानते हैं कि आर्थिक तंगी (Economic constraints) या पैसों की कमी (Lack of money) ही उन्हें वह परिवार बनाने से रोक रही है जो वे वास्तव में चाहते हैं।

यह खुलासा संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की ‘विश्व आबादी की स्थिति रिपोर्ट 2025’ (State of World Population Report 2025) में किया गया है, जिसका शीर्षक ‘द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस: द परसूट ऑफ रिप्रोडक्टिव एजेंसी इन ए चेंजिंग वर्ल्ड’ (The Real Fertility Crisis: The Pursuit of Reproductive Agency in a Changing World) है। रिपोर्ट इस बात पर ज़ोर देती है कि असली संकट गिरती प्रजनन दर (Falling fertility rate) नहीं, बल्कि लोगों के ‘अधूरे प्रजनन लक्ष्य’ (Unmet reproductive goals) हैं। लाखों व्यक्ति अपने ‘वास्तविक प्रजनन लक्ष्यों’ (Real fertility goals) को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं।

लेकिन कहानी सिर्फ वित्तीय बाधाओं तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट अन्य महत्वपूर्ण कारणों (Other significant reasons) की ओर भी इशारा करती है जो माता-पिता बनने के सपने (Dream of becoming parents) को दूर कर रहे हैं:

  • नौकरी की असुरक्षा (Job insecurity): 21 प्रतिशत लोग मानते हैं कि अस्थिर रोजगार (Unstable employment) या नौकरी जाने का डर (Fear of losing job) उन्हें परिवार बढ़ाने से रोकता है।
  • आवास की कमी या महंगा होना (Housing constraints/expensive housing): 22 प्रतिशत लोगों के लिए पर्याप्त और किफायती घर (Affordable housing) खोजना एक बड़ी चुनौती है।
  • भरोसेमंद बाल देखभाल की कमी (Lack of reliable childcare): बच्चों की देखभाल (Childcare) के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद विकल्प (Reliable options) न मिल पाना 18 प्रतिशत लोगों के लिए एक बाधा है।
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इसके अलावा, स्वास्थ्य संबंधी बाधाएं (Health barriers) भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। खराब सामान्य स्वास्थ्य (Poor general health) (15 प्रतिशत), बांझपन (Infertility) (13 प्रतिशत) और गर्भावस्था से संबंधित देखभाल तक सीमित पहुंच (Limited access to pregnancy-related care) (14 प्रतिशत) जैसे कारक भी कई जोड़ों के लिए परिवार शुरू करने या बढ़ाने में रुकावट पैदा करते हैं। यह दिखाता है कि प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive health) तक पहुंच कितनी ज़रूरी है।

रिपोर्ट के अनुसार, इन सब कारणों का असर देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR) पर भी दिख रहा है, जो गिरकर 1.9 पर आ गई है। हालांकि, इसी रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि 2025 के अंत तक भारत की जनसंख्या (India’s population) 1.46 अरब (1.46 billion) तक पहुंच जाएगी, जिससे भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश (Most populous country) बना रहेगा। यह विरोधाभास दिखाता है कि जनसंख्या वृद्धि (Population growth) के आंकड़े और व्यक्तिगत प्रजनन लक्ष्य (Individual reproductive goals) अलग-अलग मुद्दे हैं।

प्रजनन दर कम होने के अन्य कारण (Other reasons for declining fertility rate)

यूएनएफपीए (UNFPA) ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि कई लोग केवल आर्थिक या सामाजिक कारणों से ही नहीं, बल्कि भविष्य के बारे में बढ़ती चिंताओं (Growing concerns about future) के कारण भी बच्चे पैदा करने से कतराते हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन (Climate change) के खतरे से लेकर राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता (Political and social instability) तक शामिल है। 19 प्रतिशत लोग ऐसे भी हैं जिन्हें अपने साथी या परिवार (Partner or family pressure) से कम बच्चे पैदा करने या बिल्कुल भी बच्चे पैदा न करने का दबाव (Pressure to have fewer children) झेलना पड़ता है। SOWP 2025 रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि लाखों व्यक्ति अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्यों को हासिल करने में अक्षम हैं। रिपोर्ट कहती है कि बहुत से लोग, खासकर महिलाएं (Women), आज भी अपने प्रजनन जीवन (Reproductive life) के बारे में स्वतंत्र (Independent) और सूचित निर्णय (Informed decisions) लेने में गंभीर बाधाओं का सामना कर रही हैं। अलग-अलग क्षेत्रों (Regions) और राज्यों (States), जातियों (Castes) और आय समूहों (Income groups) में गहरी असमानताएं (Inequalities) अभी भी बनी हुई हैं।

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देश के मुख्य राज्यों में स्थिति (Situation in major states of India)

रिपोर्ट में भारत के विभिन्न राज्यों में प्रजनन दर की स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण (Comparative analysis) भी प्रस्तुत किया गया है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश (Bihar, Jharkhand, Uttar Pradesh) जैसे राज्यों में प्रजनन दर अभी भी उच्च (High fertility rate) बनी हुई है। इसके विपरीत, दिल्ली, केरल और तमिलनाडु (Delhi, Kerala, Tamil Nadu) जैसे राज्यों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर (Replacement rate) से काफी कम (Below replacement rate) है। रिपोर्ट बताती है कि यह अंतर सिर्फ आंकड़ों का नहीं है, बल्कि यह आर्थिक अवसरों (Economic opportunities), स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच (Access to healthcare), शिक्षा के स्तर (Education levels) और समाज में प्रचलित लिंग एवं सामाजिक मानदंडों (Prevailing gender and social norms) में मौजूद गहरी विसंगतियों (Disparities) को दर्शाता है।

वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभांश क्या होता है? (What is real demographic dividend?)

यूएनएफपीए भारत की प्रतिनिधि (UNFPA India Representative) एंड्रिया एम. वोज्नर (Andrea M. Wojnar) ने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत ने प्रजनन दर को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति (Significant progress) की है। 1970 के दशक में जहां प्रति महिला लगभग पांच बच्चे होते थे, वहीं आज यह संख्या घटकर लगभग दो रह गई है। यह प्रगति बेहतर शिक्षा (Better education) और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच (Access to reproductive healthcare) के कारण संभव हुई है। इस कमी का एक बड़ा परिणाम यह हुआ है कि मातृ मृत्यु दर (Maternal mortality rate) में भारी गिरावट आई है। आज लाखों और माताएं जीवित हैं, जो अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं और समुदायों के निर्माण में योगदान दे रही हैं।

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वोज्नर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि “वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभांश (Real demographic dividend) तब प्राप्त होता है जब सभी लोगों को सूचित प्रजनन विकल्प (Informed reproductive choices) बनाने की स्वतंत्रता (Freedom) और उन्हें साकार करने के लिए साधन (Means to realize choices) मिलते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि भारत के पास यह दुनिया को दिखाने का एक अनूठा अवसर (Unique opportunity) है कि कैसे प्रजनन अधिकार (Reproductive rights) और आर्थिक समृद्धि (Economic prosperity) एक साथ हासिल किए जा सकते हैं।

यह रिपोर्ट भारत के लिए एक वेक-अप कॉल (Wake-up call) है कि प्रजनन स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के मुद्दे सिर्फ जन्म दर के नियंत्रण (Birth rate control) तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह व्यक्तियों के अधिकारों (Individual rights), आर्थिक स्थिरता (Economic stability), सामाजिक समर्थन (Social support) और भविष्य की चिंताओं से जुड़े हैं। सरकारों, समुदायों और परिवारों को मिलकर इन बाधाओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हर कोई अपनी इच्छा के अनुसार परिवार बना सके और देश सही मायने में जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठा सके।


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