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इतिहास के पन्ने

किसके लिए अमृत है आज की जाति व्यवस्था और कौन पी रहा इसके नाम का विष

राजनीति– भारत मे जाति के नाम पर आज भी समाज मे मतभेद देखने को मिलता है। आज भी ज्यादातर लोग समाज मे ऐसे हैं जो जाति के नाम पर लोगो का शोषण करते हैं। हिन्दू मुस्लिम ईसाई विवाद तो भारत की समस्या है ही लेकिन इस समस्या से अधिक बड़ी समस्या भारत के लिए जातिय मतभेद है।

भारत मे अलग अलग जातियों के लोग रहते हैं और वह अलग अलग प्रकार की भाषा बोलते हैं। लेकिन भारत के लोग जाति के आधार पर लोगो के साथ मतभेद करते हैं और उन्हें अपने से अलग समझते हैं। दशा यह है कि भारत में आय दिन एक नई जाति का नाम सामने आता है और लोग ऊंच नीच के भाव के चलते एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं।

भारत मे आज 2000 से अधिक जातियां और इससे भी अधिक उपजातियां है। लोग समाज को इन्ही जातियों के आधार पर विभक्त करते हैं और उन्हीं के आधार पर उन्हें सम्मान देते हैं। लोगो का यह व्यवहार सिर्फ मानवता के लिए खतरा नही है। अपितु उनका यह व्यवहार देश के विकास में भी बाधक है। क्योंकि जब हम बात ऊंच नीच की करते हैं तो हम एकता का परिचय नही दे पाते और विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ते….

राजनीति के लिए जाति क्या है-

यदि हम राजनीति के लिए जाति को आके तो इसके लिए जातियां एक प्रकार का अमृत है। जिसके स्वाद को प्रत्येक राजनैतिक दल चखता है और इसी को अपना आधार बनाकर सत्ता प्राप्त करने की सीढ़ी चढ़ता है। राजनेता एक ऐसी रूपरेखा तैयार करते हैं जिसमे उनके राजनैतिक युद्ध का मूल हथियार यही जातियां बनती है।

कोई मुस्लिम की जातियों को टारगेट करके सत्ता में अपनी धाक जमाना चाहता है। तो कोई दलित हितैषी बनकर मैदान में उतरता है और दलितों को यह बताता है कि अगर कोई दलितों की बात कर सकता है तो सिर्फ और सिर्फ वही है। कोई हिन्दू पुरोधा बनकर सत्ता के रण को भेदना चाहता है तो कोई अन्य पैतरा लगाकर राजनैतिक लाभ के लिए जातियों को अपना टारगेट बनाता है।

राजनेता सामान्य रूप से जातियों को अपना आधार बनाकर अपना लाभ साधते है। उनकी यह रणनीति उनके लिए तो फायदेमंद साबित होती है लेकिन समाज मे यह विभेद उत्पन्न करती है। समाज कई छोटे छोटे खेमों में बंट जाता है और लोग एक दूसरे को हीन भावना से देखने लगते हैं। लोगो के मन मे यह भाव राजनेता ही उत्पन्न करते हैं कि उनके सामने मौजूद व्यक्ति उनकी विरादरी का नही है तो वह उनका लाभ नही सोच सकता। 

राजनेताओं द्वारा बोया गया यह जाति का बीज जब पनपता है तो यह सम्पूर्ण समाज के लिए घातक साबित होता है और समाज को कई छोटे छोटे टुकड़ों में विभक्त करके एकता की हत्या करता है।

क्यों जाति व्यवस्था के खिलाफ थे अंबेडकर

 

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने भारतीय संविधान की रचना की और लोगो को उनके अधिकारों से रूबरू करवाया। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर सदैव से जाति व्यवस्था के खिलाफ थे। उनका मानना था कि इस समाज से अगर जाति व्यवस्था का खात्मा नही हुआ तो समाज कभी विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ पाएगा। 

उन्होंने कहा था कि एक देश विकास तभी कर सकता है जब वहां की महिलाओं को सम्मान की नजर से देखा जाए और जाति व्यवस्था का पतन हो व समाज मे एकता आए। 

अंबेडकर जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए अपने पूरे जीवन संघर्ष करते रहे और इसी वजह से उन्होंने भारत के हिन्दू राष्ट्र बनने का विरोध जताया था।

अंबेडकर का कहना है कि हिन्दू राष्ट्र से इस बात की अनुभूति होती है कि देश को किसी वर्ग विशेष में विभक्त किया जा रहा है। मेरे लिए भारत हिंदुओ का देश नहीं अपितु भारत के लोगो का देश है। जिसमे अलग अलग जाति धर्म के लोग एकता का परिचय देते हुए एक साथ रहते हैं।

क्यों मोहन भागवत ने उठाया था जाति का मुद्दा-

अभी हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने यह बयान दिया था कि भारत को अब जाति व्यवस्था से ऊपर उठकर आना चाहिए। भारत के लोगो का विकास तब ही सम्भव है जब वह जाति व्यवस्था को त्याग देगे ओर देश के आगे बढ़ने के लिए एकजुट होकर विचार करेंगे।

मोहन भागवत का यह बयान साफ तौर पर यही कह रहा है की किसी भी देश का विकास तब तक संभव नही है। जब तक उस देश मे एकजुटता न हो और लोग जाति प्रथा को त्याग कर एक साथ आगे न बढ़े।