फूल वालों की सैर: दिल्ली की गंगा-जमुनी तहज़ीब का अनोखा त्योहार
क्या आपने कभी ऐसा त्योहार देखा है जो हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों को एक साथ जोड़ता हो? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं दिल्ली के महरौली में मनाए जाने वाले 'फूल वालों की सैर' के बारे में, जो सदियों से हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल है। यह त्योहार न सिर्फ़ रंगों और खुशियों से भरपूर है, बल्कि इसमें एक ऐसी कहानी भी समाई है जो प्यार, भाईचारे, और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है।
एक ऐतिहासिक शुरुआत
इस त्योहार की शुरुआत 19वीं सदी में मुग़ल शासन के दौरान हुई थी। तब के शहज़ादे मिर्ज़ा जहांगीर को राजनीतिक कारणों से दिल्ली से इलाहाबाद भेज दिया गया था। उनकी माँ, बेग़म ज़ीनत महल ने उनके वापस आने की मन्नत मानी थी कि वो ख़्वाजा बख़्तियार काकी की दरगाह पर फूलों की चादर चढ़ाएँगी। जहांगीर के वापस आने पर ये मन्नत पूरी हुई, और यहीं से 'फूल वालों की सैर' की शुरुआत हुई।
हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
'फूल वालों की सैर' में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग बराबर हिस्सेदारी करते हैं। ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी की दरगाह पर फूलों की चादर चढ़ाई जाती है और साथ ही पांडव कालीन श्री योग माया मंदिर में भी फूलों का पंखा और छत्र चढ़ाया जाता है। यह त्योहार इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि कैसे धर्म और जाति के बावजूद, विभिन्न समुदाय आपसी प्रेम और भाईचारे से एक-दूसरे के साथ मिलकर रह सकते हैं।
रंगारंग उत्सव
'फूल वालों की सैर' एक हफ़्ते तक चलने वाला उत्सव है, जिसमें कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। पेंटिंग कॉम्पटीशन से लेकर कुश्ती और कबड्डी के मुक़ाबले तक, इस त्योहार में सब कुछ शामिल है। साथ ही, ज़बरदस्त क़व्वाली की प्रस्तुतियाँ भी ख़ूब मनोरंजन करती हैं। यह त्योहार दिल्ली की संस्कृति और विविधता का भी एक अद्भुत नज़ारा प्रस्तुत करता है।
आधुनिकता में भी जीवित
आज भी 'फूल वालों की सैर' की परंपरा जीवित है। इसे अंजुमन सैर-ए-ग़ुल फरोशां नामक समिति द्वारा आयोजित किया जाता है। इस समिति में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं, जो इस त्योहार को आगे बढ़ाने और इसे हिंदुस्तान की सांस्कृतिक विरासत के रूप में बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
टेक अवे पॉइंट्स
- 'फूल वालों की सैर' दिल्ली की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है।
- यह त्योहार हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की एकता और भाईचारे को दर्शाता है।
- यह एक रंगारंग और जीवंत उत्सव है जिसमें कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
- यह त्योहार सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता का संदेश देता है।