डेस्क। यूपी में यादव के बाद पिछड़ों में कुर्मी सबसे प्रभावशाली माना जाता है। पिछले लोकसभा चुनाव में इस समाज के वोटरों ने बीजेपी को छोड़कर समाजवादी पार्टी का साथ दिया था। नतीजा ये रहा कि बीजेपी की सीटें आधी ही रह गईं।
बीजेपी में अंदर ही अंदर गोलबंदी काफी तेज हो गई थी। पार्टी के OBC विधायकों में अपनी ही सरकार और संगठन के खिलाफ ग़ुस्सा था और यूपी में विधानसभा उपचुनाव सिर पर है। ऐसे में बीजेपी के कुर्मी नेताओं की नाराज़गी का ख़तरा काफी भारी पड़ सकता था। बीजेपी विधायक योगेश वर्मा की पिटाई को उनकी बिरादरी के पार्टी नेताओं ने भी प्रतिष्ठा का सवाल मान लिया था। लखीमपुर के विधायक की पुलिस के सामने पिटाई हुई पर पीटने वालों के खिलाफ मुक़दमा तक दर्ज नहीं हुआ।
India Canada News:भारत ने कनाडा के 6 राजनयिकों को देश छोड़ने को कहा
वकीलों के नेता अवधेश सिंह ने दिनदहाड़े विधायक को पीट दिया था और बीजेपी के कुछ OBC नेताओं को लग रहा था कि सरकार आरोपी को बचाने में लगी है। पार्टी के 37 विधायकों ने प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी से इसकी शिकायत की, जिसके बाद अवधेश सिंह और उनकी पत्नी पुष्पा सिंह को बीजेपी से निष्कासित किया गया।
पुलिस प्रशासन के रवैये से नाराज़ विधायक ने अपना सुरक्षाकर्मी तक वापस कर दिया और हालात तब और बिगड़े जब क्षत्रिय सभा की एक बैठक में अवधेश सिंह का सम्मान किया गया था। इस घटना के बाद तो बीजेपी के OBC नेताओं की नाराज़गी और भी बढ़ने लगी।
लखीमपुर में अर्बन कोआपरेटिव बैंक के प्रबंध समिति का चुनाव था और कुछ लोगों ने स्थानीय बीजेपी विधायक योगेश वर्मा से गड़बड़ी की शिकायत की। वकीलों के नेता अवधेश सिंह की पत्नी पुष्पा सिंह अध्यक्ष का चुनाव लड़ रही थीं और पति-पत्नी भी बीजेपी के ही नेता हैं। इसी बात पर अवधेश सिंह और योगेश वर्मा भिड़ गए जिसके बाद दिनदहाड़े पुलिस के सामने अवधेश ने विधायक को कई थप्पड़ मारे।
एक्टर अतुल परचुरे का निधन, इन फिल्मों में शामिल है नाम
विधायक की तरफ़ से केस करने के लिए आवेदन किया गया लेकिन प्रशासन ने कुछ भी नहीं किया। धीरे-धीरे ये पूरा मामला कुर्मी समाज के नेताओं के मान सम्मान का बन गया। समाजवादी पार्टी के इस बिरादरी के नेता भी योगेश वर्मा के समर्थन में आ गए हैं।
यूपी में यादव के बाद पिछड़ों में कुर्मी सबसे प्रभावशाली वोटर रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इस समाज के वोटरों ने बीजेपी को छोड़कर समाजवादी पार्टी का साथ दिया था और नतीजा ये रहा कि बीजेपी की सीटें आधी रह गईं। बीजेपी अब फिर से उपचुनाव से पहले माहौल ख़राब करने का रिस्क लेने के मूड में नहीं लग रही है।