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भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद को लेकर ये विशेष प्रावधान

डेस्क। भारतीय न्याय संहिता में आतंकवादी कृत्य परिभाषित दहशतगर्दों के खिलाफ लड़ाई और निर्णायक भी होगी। हर थाने में इलेक्ट्रॉनिक सूचना से ई-एफआईआर की सुविधा भी दी जाएंगी।

तीन नए आपराधिक कानूनों में आतंकवादी कृत्य को परिभाषित करा गया है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 113 के तहत ऐसे कृत्य शामिल भी किए गए हैं, जो भारत की एकता अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा भी पैदा करते हैं और ये किसी समूह में आतंक भी फैलाते हैं।

इससे अब आतंकवाद से प्रभावित जम्मू-कश्मीर में आतंक के खिलाफ लड़ाई निर्णायक मोड़ लेने वाली हैं, क्योंकि पुलिस को अब ऐसे मामले में अलग-अलग कानूनों की किताबें नहीं खंगालनी होंगी। इससे आतंकियों या उनके मददगारों के खिलाफ कार्रवाई में और बल मिलने वाला हैं।

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आतंकवाद से लड़ने के लिए पहले टाडा, यूएपीए जैसे कानून थे और टाडा कानून में बदलाव किया गया था, जबकि यूएपीए को लेकर बहस चल ही रही है। ऐसे में अब भारतीय न्याय संहिता में आतंकवादी कृत्य के परिभाषित होने से आतंकवाद के खिलाफ बंदूक के साथ-साथ न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से भी जंग और तेज हो जाएगी।

इन मामलों में जांच करने वाले अधिकारी के साथ ट्रायल में भी काफी मदद मिलेगी। पहले आतंकवाद को पोषित करने में शामिल लोग कानून में बचाव के रास्ते का इस्तेमाल कर लेते थे, पर अब नए कानून में इन बचाव के रास्तों को बंद भी कर दिया गया है। वहीं मॉब लिचिंग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए इसमें अधिकतम सजा मृत्युदंड की रखी गई है, जिससे इसके खिलाफ कार्रवाई भी काफी तेज होगी।

ई-एफआईआर

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तीन नए कानूनों में इलेक्ट्रॉनिक सूचना से ई-एफआईआर का प्रावधान रखा गया है। साथ ही प्रदेश के 186 पुलिस थानों में भी इसका विकल्प दिया जाएगा। हालांकि व्यवस्था के प्रभावी कार्यान्वयन में थानों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा न होना एक बड़ी चुनौती हो सकता है। जम्मू-कश्मीर के दूरदराज इलाकों में पुलिस थाने बनाए गए हैं और यहां इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या भी होती है।

ऐसे में प्रदेश के सभी थानों में ई-एफआईआर की सुविधा मिलने में थोड़ा समय जरूर लग सकता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 के तहत इलेक्ट्रॉनिक सूचना के माध्यम से एफआईआर करवाने का प्रावधान भी शामिल किया गया है। इसमें पीड़ित को थाने में जाकर केस दर्ज करवाने की जरूरत नहीं होगी।

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वह कहीं से भी ऑनलाइन केस दर्ज करवा पाएंगे लेकिन तीन दिन के अंदर उस थाने में जाकर ऑनलाइन आवेदन की कॉपी पर साइन भी करना पड़ेगा। एफआईआर दर्ज होने के बाद केस में क्या हो रहा है, जांच कहां तक पहुंची, इसे एफआईआर नंबर के आधार पर ऑनलाइन देखा भी जा सकेगा।

तीन नए कानून वर्तमान के हिसाब से तैयार किए गए हैं वहीं ये पीड़ित और अपराधी दोनों के लिए न्यायसंगत हैं। कानूनों को आसानी से परिभाषित किया गया है साथ ही किसी भी मामले में जांच और ट्रायल का समय भी निर्धारित है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई तेज होगी, क्योंकि आतंकवादी कृत्य को परिभाषित भी किया गया है। इसमें जांच अधिकारी को जांच व ट्रॉयल के दौरान मदद मिलेगी साथ ही कानून में ई-एफआईआर की सुविधा है बोले – कुलदीप खुड्डा (पूर्व डीजीपी, जम्मू-कश्मीर)

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