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पेट्रोलियम कीमतों में वृद्धि और भारतीय राजनीति

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पेट्रोलियम कीमतों में वृद्धि और भारतीय राजनीति

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भारत के अंदर पीछले कुछ महिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भारी उतार चड़ाव देखने को मिला जिसके चलते कुछ राज्यों में पेट्रोल की कीमत 120 रुपये/लीटर तक हो गई। बाकी चीजों की ही तरह पेट्रोल और डीजल भी एक आवश्यक वस्तु है जिसके मेहंगा या सस्ता होने से पूरे बाजार पर असर पड़ता है क्योंकी पूरा ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर इसी पर निर्भर करता है। एक बात यह भी है की जब भी पेट्रोल मेहंगा होता है खाने पीने की चीजे जैसे फल, अनाज ये भी मेंहगे हो जाते हैं उसके पीछे की वजह यह है की इसमें एक राज्य से दूसरे राज्य ट्रांसपोर्ट करने की जो लागत आती है वह बढ़ जाती है जैसे की कश्मीरी सेब का कश्मीर से अन्य राज्यों तक पहुंचने में जो खर्चा आता है वो बढ़ जाता जिसके चलते कश्मीरी सेब की किमत भी बढ़ती है। भारत हमेंशा से कच्चे तेल के आयात पर निर्भर रहा है हम अपनी मांग का 85% कच्चा तेल आयात करते हैं जो ब्रेंट बेंचमार्क का होता है पूरे विश्व में दो तरह के कच्चे तेल होते हैं एक डब्ल्यूटीआई यानि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट और दुसरा ब्रेंट, दुनिया के ज्यादातर देश ब्रेंट क्रूड ऑयल को ही इम्पोर्ट करते हैं जिसके पीछे की मुख्य वजह यह है की यह डब्ल्यूटीआई के मुकाबले थोड़ा सस्ता होता है। भारत में कुल 23 रिफाइनरी हैं आयात करने के बाद इसे रिफाइनरी तक लाया जाता है जहां से इसे प्रोसेस करके इसमे से पेट्रोल, डीजल, जेट फ्यूल को देश के अलग डीलर्स तक पहुँचाया जाता है पेट्रोल कंपनियों को डीलरों को भी कमीशन देना होता है, उत्पाद शुल्क जो केंद्र सरकार कर लगाती है और वैट राज्य सरकार द्वारा लगाया गया कर लगता है, तब जाकर कहीं पेट्रोल और डीजल आम आदमी को पेट्रोल पंप के जरिए  उपलब्ध हो पाता है अब यहां पर गौर करने वाली बात यह भी है जो कर सरकार पेट्रोल और डीजल पर लगा रही है क्या वो सही है ऐसी भी क्या मजबूरी की संसद के अंदर बिल पास कराकर टैक्स लगाने की सीमा को बड़ाया गया अगर ये सवाल सरकार से करा जाए तो वह पिछली सरकार द्वारा जारी किए औईल बांड या रुस-यूक्रेन युद्ध का हवाला देकर बात को टालती दिखी है जो की पूरी तरह सही नहीं है ,औईल बांड 1.34 लाख करोड़ के जारी किए गए, जिसपर सालाना 9000 करोड़ का ब्याज सरकार को देना होता था, वही दूसरी तरफ 2020-21 में सरकार ने 4.12 लाख करोड़ का राजस्व उत्पन्न किया था सिर्फ एक साल के अंदर। बात यहां औईल बांड या रूस-यूक्रेन युद्ध की नहीं बात मनमाने ढंग से कर लगाने की है वहीं दूसरी तरफ उसे पता है की वोट को कैसे अपने पक्ष में ड्राइव करना है इसलिय वह कभी भी कर कटौती नहीं करती है उसे मालूम है इससे कोई उसका महिमा मंडन तो होने नहीं वाला नहीं और ना ही वोट मिलेंगे -वोट मिलेंगे मुफ्त की चीजें बांटकर मुफ्त बिजली, लैपटॉप, टैबलेट, स्कूटी। सरकार ने सबसे ज्यादा मुफ्त की योजनायें कृषि क्षेत्र के लिए लाईं क्योंकी 60% वोट यहीं से सरकार को मिलते हैं, लेकिन क्या इसका कोई असर हुआ आज भी लाखो किसान हर साल आत्महत्या कर लेते हैं कर्जे की वजह से कर्ज माफ होने के बावजूद भी। कहीं ना कहीं तो सरकार से चूक हो ही रही  है। हमने भी सरकार से रोजगार पर, मेहंगाई पर सवाल करना बंद कर दिया है वो एक बार हमें मुफ्त में टैबलेट या लैपटॉप दे देते हैं और हम अपना मुहं बंद कर लेते हैं गलती हमारी भी है अगर सही मायने में हमें देश का विकास करना है तो वो बेरोजगारी कि कटौती से होगा, गरीबी कि कटौती से होगा ना की मुफ्त लैपटॉप, टैबलेट और स्कूटी या बिजली देने से।