क्या आप जानते हैं बिहार के गया में क्याें नहीं उगता तुलसी का एक भी पौधा? क्यों ब्राह्मण कभी भी संतुष्ट नहीं होता? फल्गू नदी सिर्फ नाम की ही नदी क्यो है? क्यों कौआ हमेशा लड़ झगड़कर ही खाना खा पाता है?
कौआ, तुलसी, ब्राह्मण व गाय को मां सीता ने क्यों और क्या श्राप दिया था। इसके बारे में कुछ लोग नहीं जानते हैं इसी लिए हम आज इसपर विस्तार से बता करेंगे।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए बिहार के गया धाम गए थे तो वहां ब्राह्मण ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने को कहा। इस पर भगवान राम व लक्ष्मण नगर की ओर सामान लाने के लिए निकल गए तब ब्राह्मण देव ने माता सीता से आग्रह किया कि पिंडदान का समय निकलता ही जा रहा है।
वहीं यह सुनने के बाद माता सीता की व्यग्रता भी बढ़ती जा रही थी क्योंकि श्री राम और लक्ष्मण अभी सामान लेकर नहीं लौटे थे। इसी दौरान दशरथ जी की आत्मा ने उन्हें आभास कराया कि पिंड दान का वक्त निकाला जा रहा है। यह जानने के बाद माता सीता बड़े असमंजस में पड़ गईं। तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान कर देंगी।
उन्होंने फल्गू नदी के साथ ही वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण व गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान विधि विधान के साथ कर दिया। इस क्रिया के बाद जैसे ही उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की तो राजा दशरथ ने माता सीता के द्वारा पिंड दान स्वीकार कर लिया। इसके बाद माता सीता इस बात से प्रफुल्लित हुईं कि उनकी पूजा दशरथ जी ने स्वीकार कर ली है।
पर अब उनके मन में संशय आ गया कि प्रभु राम इस बात को कभी नहीं मानेंगे क्योंकि पिंड दान पुत्र के बिना नहीं किया जा सकता है। थोड़ी ही देर के बाद भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर आए और उन्होंने पिंड दान के विषय में भी पूछा। तब माता सीता ने यह भी कहा कि समय निकल जाने के कारण उन्होंने स्वयं पिंडदान कर दिया पर प्रभु राम को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि बिना पुत्र और बिना सामग्री के पिंडदान कैसे संपन्न और स्वीकार किया जा सकता है।
राम जी की यह बात सुनने के बाद माता सीता ने कहा कि वहां उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण श्राद्धकर्म से गवाही लेकर अपना संदेह दूर कर लें। भगवान राम ने जब इन सब से पिंडदान किए जाने की बात सच है या नहीं पूछा। तब फल्गू नदी, गाय, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण पांचों ने प्रभु राम का क्रोध देखकर झूठ बोला कि माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया है। पर वहीं वटवृक्ष ने सत्य कहा कि माता सीता ने सबको साक्षी मानकर विधि पूर्वक राजा दशरथ का पिंड दान कर दिया है। पांचों साक्षी के झूठ बोलने पर माता सीता ने क्रोधित हो गईं और उन्हें श्राप दे दिया।
सीता ने फल्गू नदी को श्राप दिया कि वह सिर्फ नाम की नदी रहेगी और उसमें पानी नहीं रहेगा। उन्होंने गाय को श्राप दिया कि गाय पूजनीय होकर भी खाने के लिए दर बदर भटकती रहेगी। बता दें आज भी हिन्दू धर्म में गाय के सिर्फ पिछले हिस्से की पूजा की जाती है।
इसके बाद माता सीता ने ब्राह्मण को कभी भी संतुष्ट न होने और कितना भी मिले उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी ऐसा श्राप दिया। माता सीता ने तुलसी को श्राप दिया कि वह कभी भी गया कि मिट्टी में नहीं उग सकेगी। और यह आज तक सत्य है कि गया कि मिट्टी में तुलसी नहीं फलती। उन्होंने कौआ को हमेशा लड़ झगड़ कर खाने का श्राप दिया था।
माता सीता ने जहां इन पांचों को श्राप दिया वहीं सच बोलने पर वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा। साथ ही पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी।