आध्यत्मिक– अर्जुन और कृष्ण की कहानी सभी ने सुनी होगी। सभी यह बात जानते हैं कि अर्जुन पराक्रमी थे। कृष्ण उन्हें पांचों पांडवों में सबसे अधिक प्रेम करते थे। लेकिन पराक्रमी अर्जुन को एक शाप भी मिला था शायद यह बात आप सभी न जानते हो।
एक समय के बात है। जब अर्जुन के पिता ने यह इच्छा जाहिर की अर्जुन इंद्र देव से मिले और उनसे ज्ञान अर्जित करे। अर्जुन के पिता ने इंद्र देव की आराधना की। इंद्र देव ने उनपर खुश होकर उनके पुत्र अर्जुन को इंद्रलोक आने की अनुमति दे दी।
जब अर्जुन इंद्रलोक पहुँचे तो उनका वहां भव्य स्वागत हुआ। इंद्र ने उन्हें अपने निकट बिठाया और उनका दुलार किया। अर्जुन पूरे पांच साल तक इंद्रलोक में रहे। उन्होंने चित्रसेन से संगीत की शिक्षा ली।
लेकिन एक दिन अर्जुन का झुकाव अप्सरा ऊर्वशी की ओर हो गया। उर्वसी काफी सुंदर आर्कषक और मनमोहिनी थी। अर्जुन ने चित्रसेन से कहा आप जाइए और ऊर्वशी से यह कह दीजिए की आज उसे अर्जुन की सेवा में उपस्थित रहना है।
चित्रसेन ऊर्वशी के पास गए। उन्होंने अर्जुन का ऊर्वशी के सम्मुख खूब बखान किया। उन्होंने कहा आपके कुंती पुत्र अर्जुन बहुत प्रसन्न है। वह आपसे मिलना चाहते हैं। आप कुछ ऐसा करिये की वह आपसे प्रसन्न हो जाए।
यह सुनकर ऊर्वशी खुशी हुई। ऊर्वशी खुश हुई। वह बोली आप मुझे बताइये मैं समय पर वहां पहुँच जाउंगी।
उर्वशी अर्जुन के पराक्रम से मोहित थी। शाम को जब वह अर्जुन के द्वार पर पहुँची तो दरबारों ने उसे अंदर जाने की अनुमति दी। उर्वशी का सौंदर्य देखकर अर्जुन को लज्जा आ गई। उन्होंने अपनी आंखें झुका ली। झुकर उर्वशी को प्रणाम किया।जैसे ही अर्जुन ने यह किया उर्वशी चौंक गई।
उर्वशी ने चितसेन द्वारा कहा प्रत्येक वाक्य अर्जुन को बताया। और कहा मैं आपके प्रति आकर्षक हूँ आप मेरा मनोरथ पूर्ण कीजिए। उर्वशी की यह बात सुनकर अर्जुन के होश उड़ गए। उन्होंने कहा आप मेरी माता समान है। आप मेरे लिए पूजनीय है। मैं यह नही कर सकता।
उर्वशी ने कई बार अर्जुन को रोका लेकिन अर्जुन उसे माता का देते रहे। उर्वशी क्रोधित हुए और बोली अर्जुन मेरा काम लोगो को सन्तुष्ट करना है। आप मुझे यह दर्जा देकर पीड़ा दे रहे हैं। लेकिन अर्जुन ने उर्वशी की नही सुनी।
क्रोध में आकर उर्वशी ने अर्जुन को शाप दिया। तुम एक नपुंसक की भांति अपना जीवन व्यतीत करोगे। मैं तुन्हें शाप देती हूं तुम्हें स्त्रियों के बीच सम्मान नही मिलेगा।