ज्ञान- आज समाज इतना बदल गया है कि वह ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठा रहा है। लोग ज्ञान अर्जित करते हैं और थोड़ा पढ़ लिख जाने के बाद ईश्वर की वास्तविकता पर सवाल खड़े करते हैं। स्वयं को विज्ञान का छात्र बताते हुए कहते हैं सत्य वही है जो प्रत्यक्ष दिखाई दें हम ईश्वर की स्त्यता पर कैसे विश्वास करें जब हमने ईश्वर को देखा ही नहीं है। क्या ईश्वर पत्थर की मूर्ति में विराजित हो सकता है क्या पत्थर को पूजना ईश्वर के स्वरूप से मिलना है।
उनके इस सवाल ने आज कई लोगों के मन मे ईश्वर के प्रति सवाल खड़े कर दिये हैं और आज थोड़े से ज्ञान ने ईश्वर के अस्तित्व को कटघरे में उतार दिया है। लेकिन क्या आपको पता है कि ईश्वर उस हर जगह विराजमान हैं जहां से यह ज्ञानी लोग ज्ञान अर्जित करते हैं और तुम्हे यह बताते हैं कि जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दे वही सत्य है।
असल में इन लोगों के सवाल में ईश्वर का अस्तित्व छुपा हुआ है। क्योंकि यह कहते हैं प्रत्यक्ष ही सत्य है और जो दिखाई देता है वही ईश्वर। ईश्वर भी यही कहता है मैं भाव हूँ मुझे व्यक्ति जिस तरह से प्राप्त करना चाहता है मैं उसे उसी भाव और उसी स्वरूप में दिखाई देता हूँ। क्योंकि मैं सत्य हूँ मैं सर्वस्त्र हूँ।
कोई मुझे पत्थर में देखता है। तो कोई मुझे मनुष्य में। कोई मेरी स्त्यता का अनुभव विज्ञान में करता है तो कोई इस संसार इस ब्रह्मांड में मुझे देखता है। लेकिन इस दुनिया की प्रत्येक सजीव और निर्जीव वस्तु में मैं हूँ क्योंकि मैं सत्य हूँ मैं ईश्वर हूँ। ईश्वर वह प्रत्येक व्यक्ति है जो यह कहता है जो सत्य के साथ है। हर वह पल ईश्वर का स्वरूप है जब आप सकारात्मक रहते हैं और दूसरों के हित हेतु आगे बढ़ते हैं।
विज्ञान भी ईश्वर है क्योंकि विज्ञान का जो छात्र ईश्वर पर सवाल उठाता है उसे वैज्ञानिक तर्क ही ईश्वर लगते हैं। वह विज्ञान को सत्य बताने लगता है और पत्थर को मिथ्या क्योंकि उस व्यक्ति को प्रत्यक्ष विज्ञान में दिखाई देता है और उसके लिए वही ईश्वर है। सामान्य भाषा मे यदि कहें तो ईश्वर सिर्फ एक भाव है जिसे हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं और सत्य के साथ उसके दर्शन कर सकते हैं।