आध्यात्मिक– आज दशहरा का त्योहार है। पूरा देश आज असत्य पर सत्य की विजय का उत्सव मना रहा है। जगह जगह रावण दहन के लिए पंडाल सजाया जा रहा है। लेकिन क्या आप ने कभी यह सोचा है रावण को महा विद्वान महा ज्ञानी और महाब्राह्मण क्यों कहा जाता है क्या वास्तव में रावण के चेहरे से उसका प्रताप झलकता था क्या वास्तव में रावण के मस्तिष्क पर उसके ज्ञान की ललाट थी जो लोगो को आकर्षित करती थी। क्या वास्तव में महाब्राह्मण, महा ज्ञानी रावण जिसे ज्ञान देता था उसका उद्धार हो जाता था।
अगर हम इन सब सावालो के जवाबो को खोजे थे रामायण में इन सभी का उत्तर बड़े ही अच्छे तरीके से दिया गया है। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि रावण का प्रताप असीम था रावण के बराबर का ज्ञानी आज तक कोई नही हुआ है। रावण को इतना ज्ञान था की प्रभु श्री राम ने भी रावण को सामने अपना मस्तक झुकाया था। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार रावण कभी अपने धर्म से विचलित नही हुआ उसने अपने ब्राह्मण धर्म को बखूबी निभाया।
बाल्मीकि रामायण में विख्यात है कि हनुमान जी कहते हैं अगर रावण अधर्म न करता अगर रावण सीता हरण न करता तो उसे देवलोक मिलता। कई ऐसे धार्मिक ग्रन्थ है जिनमे यह कहा गया है कि रावण के समान विद्वान आज तक नही हुआ यदि वह सीता हरण नही करता तो उसे देवलोक मिलता। कहावत यह भी है कि रावण सत्य जनता था। रावण राक्षस योनी में जन्मा था रावण की माता राक्षस योनी से थी और इनके पिता ब्राह्मण थे।
रावण को पता था कि राम ईश्वर का रूप है और वह अपने पूरे परिवार का कल्याण करवाना चाहता था। इसलिए उसने यह सब षड्यंत्र रचा और प्रभु श्री राम से मिली मृत्यु के कारण रावण के पूरे परिवार को मुक्ति मिली। कहते हैं जब राम ने लंका पर युद्ध किया तो राम ने रावण से आशीर्वाद मांगा। रावण ने राम को विजय भव का आशीर्वाद दिया।
बता दें रावण का जन्म ऋषि कुल में हुआ था. वह ब्रह्मा जी के दसवें पुत्र ऋषि पुलत्सय का पौत्र था, रावण के पिता का नाम ऋषि विश्रवा था जो महाज्ञानी थे. उन्होंने दो विवाह किए, पहली पत्नी का नाम वरवणिनी था, जिन्होंने कुबेर को जन्म दिया और दूसरी पत्नी का नाम केकेसी था. जिन्होंने रावण, कुंभकर्ण, शूर्पनखा और विभीषण को जन्म दिया. बचपन से ही रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था