Dhanteras 2022: धनतेरस का पावन पर्व दिवाली से पहले आता है। हालांकि तिथि की वजह से इस साल धनतेरस रविवार 23 अक्टूबर को है जबकि दिवाली 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
धनतेरस का पर्व कार्तिक मास की त्रयोदशी को मनाया जाता है। साथ ही इस दिन दिवाली कार्तिक महीने के 15 वें दिन यानी अमावस्या तिथि को मनाई जाती है।
इसके अलावा क्या आप जानते हैं कि धनतेरस का त्योहार क्यों मनाया जाता है? शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था। जिस कारण से इस दिन धनतेरस को त्योहार के रुप में मनाया जाता है। धनवंतरी अमृत कलश लेकर समुंद्र मंथन के दिन प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की भी परंपरा है। लेकिन धनतेरस से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं जिनसे यह पता चलता है कि दीपावली से पहले धनतेरस क्यों मनाया जाता है और धनतेरस का हमारे जीवन में क्या महत्व है।
वहीं इन कथाओं से यह भी आप जान जाएंगे कि धनतेरस को धन तेरह गुणा करने वाला क्यों कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धनवंतरी हाथों में स्वर्ण कलश लेकर सागर मंथन से उत्पन्न हुए। धनवंतरी ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अमर बना दिया। वहीं धनवंतरी के उत्पन्न होने के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई। इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस के त्योहार को मनाया जाता है।
इसके अलावा शास्त्रों के अनुसार भगवान धनवंतरी देवताओं के वैद्य हैं। इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है। मान्यता ये अनुसार भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार हैं। धनतेरस से जुड़ी एक दूसरी कथा भी है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरू शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी वहीं कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार धरा था और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे थे।
इसके बाद शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें साफ इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं और वो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आये हैं।
पर बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी और वामन भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमण्डल से जल लेकर संकल्प ले लिया। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमण्डल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गये।
जिस कारण से कमण्डल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। तब वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गये। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी और शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आये। जिसके बाद बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि दान कर दिया।
वहीं भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को भी। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया और बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा।
इस प्रकार से बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा धन-संपत्ति देवताओं को मिली। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस के त्योहार को मनाया जाता है।