डेस्क। Notebandi ke 6 Saal ‘आज आधी रात से 500 और 1,000 रुपए के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे।’ साल 2016 में 8 नवंबर के दिन ही रात 8 बजे पीएम मोदी के संबोधन की ये लाइन सुनकर देशभर के लोगों के पैरों तले से जमीन खिसक चुकी थी।
वहीं इस बात को आज 6 साल पूरे हो चुके हैं, पर कई जगहों पर इसके परिणाम देखने को मिलते हैं कहीं इसके फायदे नजर आने लगे हैं तो इसके कई बुरे प्रभाव भी पड़े। मोदी सरकार ने नोटबंदी के फैसले के पीछे यह तर्क दिया था कि इससे भ्रष्टाचार, ब्लैक मनी, नकली नोट और आतंकवाद जड़ से खत्म हो जाएगा। वहीं अब सोचने वाली बात ये है कि नोटबंदी कितना सफल रहा और मोदी सरकार का ये फैसला सही था या गलत?
Notebandi ke 6 Saal नोटबंदी के फैसले के समय सबसे बड़ी बात यह कही गई थी कि इससे काला धन बिल्कुल खत्म हो जाएगा। सरकार का यह मानना था कि काला धन कैश में होता है। वहीं सरकार का मानना था कि 500, 1,000 के नोट बंद होने से 3-4 लाख करोड़ रुपए वापस नहीं लौटेंगे क्योंकि जिसके पास काला धन है, वह उन्हें बैंक में जमा कराने से डरेगा।
पर ऐसा नहीं हुआ। नोटबंदी में करीब 15 लाख करोड़ रुपये के नोट बंद हुए थे। इसमें से सिर्फ 10 हजार करोड़ रुपए ही आरबीआई के पास वापस नहीं लौटे। ऐसा माना जाता है कि जिसके पास काला धन था, उन्होंने उसे सफेद कर लिया। इस तरह नोटबंदी काले धन के मामले में पूरी तरह विफल साबित हुई।
नोटबंदी वाले साल यानी 2016-17 में देश की जीडीपी (GDP) 8.3% की दर से बढ़ी थी। इससे यह तो स्पष्ट है कि नोटबंदी कोई आपदा नहीं थी वहीं इकनॉमी के जानकारो के अनुसार, आलोचक यह भी कहते हैं कि नोटबंदी से GDP का 2.5% चला गया था। वहीं इसका मतलब है कि बिना नोटबंदी GDP विकास दर 10.8% रही होती। जीडीपी के लिहाज से भी नोटंबंदी एक झटका थी।