राजनीति– सपा संरक्षक अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया है। मुलायम सिंह यादव की मौत की खबर राजनीतिक गलियारों के लिए सबसे बड़ी दुख की खबर थी। सभी राजनेताओ ने मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि अर्पित की। वही अगर अब मुलायम सिंह के जाने के बाद हम अखिलेश यादव की बात करे तो उन्हें अब राजनीतिक सलाह देने के लिए उनके समर्थन में आजम खान के अलावा कोई नही है।
भले ही सपा की बागडोर अखिलेश यादव के हाथ मे तब से रही है जब मुलायम सिंह यादव जीवित थे। लेकिन मुलायम के जाने के बाद अखिलेश के लिए आगे की राह आसान नही होगी और अखिलेश यादव को आगामी राजनीति में कई उतार चढ़ाव देंखने को मिल सकते हैं।
अब अखिलेश के सामने सिर्फ यह चुनौती नही है कि वह अपने विपक्षियों को किस तरह मात दें। बल्कि अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वह किस तरह अपने वोट बैंक को अपने साथ जोडकर रखे। क्योंकि यादव वोट बैंक अखिलेश यादव का नही बल्कि मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव की मेहनत से खड़ा हुआ था।
समाजवादी पार्टी के लिए शिवपाल पहले ही चुनौती थे। उन्होंने काफी यादव वोट बैंक अपने खेमे में समाजवादी पार्टी से पृथक होकर कर लिया था। लेकिन अब मुलायम सिंह यादव की मौत के बाद समाजवादी के यादव वोट बैंक पर खतरा मडराने लगा है। क्योंकि जिस पिलर ने समाजवादी पार्टी के साथ यादव वोट बैंक को जोड़कर रखा था वह पिलर अब टूट गया है और अब अखिलेश को अगर समाजवादी पार्टी की वही धाक जिंदा रखनी है तो उन्हें अपने राजनैतिक परिपेक्ष्य से आगे निकलकर नेता जी की छवि बनना पड़ेगा।
क्योंकि अगर हम मुलायम सिंह यादव की बात करे तो वह सदैव जनता से जुड़कर रहे हैं। उन्हें जनता का नेता कहा जाता था और उनका उनके कार्यकर्ताओं के साथ भावनात्मक जुड़ाव था। मुलायम सिंह ने अपने कार्यकर्ताओं को समाजवादी पार्टी का सदस्य नही अपना परिवार बना कर रखा था। लेकिन अब अखिलेश के सामने यह चुनौती है कि वह इस परिवार को जोड़ कर रख पाते हैं या फिर यह परिवार बिखर जाएगा।
अखिलेश के लिए उनका परिवार पार्टी बड़ी चुनौती बन चुका है। परिवार का विवाद जगजाहिर है। चाचा शिवपाल ने अलग पार्टी का गठन कर लिया है। प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव बीजेपी परिवार का हिस्सा बन चुकी है। वही अखिलेश पर यह भी आरोप लगते है कि वह सिर्फ युवा नेताओ के इर्द गिर्द रहते हैं। उन्हें इस बात से कोई लेना देना नही रहता है कि पार्टी के बुजुर्ग नेता क्या कह रहे हैं और वह समाजवादी को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं।
पार्टी के बुजुर्ग नेता पहले से ही अखिलेश के नेतृत्व से खुश नहीं थे वह अपमानजनक महसूस करते थे। लेकिन नेता जी की वजह से समाजवादी पार्टी के साथ खड़े थे। लेकिन अब जब नेता जी ही नही रहे हैं तो समाजवादी के साथ वह कब तक जुड़ कर रह पाएंगे यह निर्धारण अखिलेश यादव का व्यवहार करेगा। लेकिन यह सुनिश्चित है कि अगर अखिलेश यादव ने नेता जी के स्वरूप में खुद को ढालकर राजनीति में वापसी नही की तो आगामी समय समाजवादी पार्टी के लिए बहुत कठिन होगा।