देश– बीते 8 साल में सिर्फ भारत की छवि नही बदली है बल्कि आरएसएस की सूरत पूरी बदल गई है। अब आरएसएस पहले की तरह एक मत पर चलती नहीं दिखाई देती है। अब आरएसएस के लिए देश का हर नागरिक महत्वपूर्ण लगता है। यह क्यों हुआ यह तो स्पष्ट नही है। लेकिन इतना साफ दिखाई दे रहा है कि आरएसएस की वैचारिक मार्गदर्शन पर चलने वाली बीजेपी के सत्ता में आते ही आरएसएस में बदलाव की लहर दौड़ गई।
आरएसएस जिसकी पोशाक से लेकर उसके कथन हर चीज में इन 8 सालों में बदलाव देखने को मिला है। अब आरएसएस के लोग हाफ पैंट की जगह फूल पेंट पहनते हैं। आरएसएस प्रमुख आज उन मुद्दों को उठा रहे हैं जो देश के लिए काफी आवश्यक है। आज भी आरएसएस भारत को हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखना चाहता है।
लेकिन अब आरएसएस के लिए हिन्दू की परिभाषा मतलब भारत का प्रत्येक नागरिक हैं। आरएसएस की विचारधारा में हुआ परिवर्तन अगर आप बीते कुछ दिनों में आए मोहन भागवत के भाषणों को सुने तो आपको दिख जाएगा।
दशहरा के दिन मोहन भागवत ने देश को भाईचारे का संदेश दिया। समानता का अर्थ बताया और कहा की समानता तब आएगी जब हम सभी को एक देखेगे और जाति से ऊपर उठकर विचार करेंगे। उन्होंने महिलाओं का मुद्दा भी उठाया और कहा की देश के विकास के लिए महिलाओ को आगे आना चाहिए।
उन्होंने यह भी मुद्दा उठाया की जनसंख्या नियंत्रण कानून आना चाहिए। वही आज मोहन भागवत ने जाति और वर्ण व्यवस्था को हमारे पूर्वजों की गलती बताते हुए कहा इसे खत्म किया जाना चाहिए। यह सामाज के लिए ठीक नहीं है।
अगर हम मोहन भागवत के इन सभी बयानों पर गौर करे तो यह वास्तव में आरएसएस की विचारधारा में आए परिवर्तन को इंगित कर रहे हैं। यह साफ तौर पर यह बता रहे हैं कि बीते 8 साल में आरएसएस ने अपने वर्षों के विचारों को काफी बदल दिया है।
हालाकि मोहन भागवत के इस बयान पर विपक्ष ने उन्हें आड़े हाथ लिया। कांग्रेस नेता ने कहा क्या सच मे आरएसएस बदल रही है। अगर हां तो मोहन भागवत भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का हाथ त्याग दें।