इतिहास– सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को एक नई दिशा ही नहीं ही बल्कि हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को पागलपन बताते हुए नकार दिया। पटेल कभी एक पक्ष के नेता नही बनना चाहते थे वह भारत के प्रत्येक व्यक्ति को अपना समझते थे। उन्हें लगता था प्रत्येक व्यक्ति को अगर किसी भाव से देखना चाहिए तो वह है मानवता।
सरदार पटेल को लेकर महात्मा गांधी के मुस्लिम सहयोगी यह कहते थे कि सरकार का मुह फट स्वभाव कई बार हमें हताश करता है। लेकिन उनके पास एक विशाल ह्रदय है जो सभी को सम्मान के भाव से देखता है। उनका यह व्यवहार उन्हें सबसे अलग और लोकप्रिय बनाता है।
लेकिन पटेल को लेकर समाज में अब एक अवधारणा बना दी गई है। कई लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल को मुस्लिम विरोधी मानते हैं और कहते हैं कि यह हिन्दू पक्षधर थे। लोग अपनी बात को सत्य साबित करने के लिए उनके उस भाषण का जिक्र करते हैं जो उन्होंने 30 सितम्बर 1947 को अमृतसर में दिया था।
जाने अमृतसर में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने क्या दिया था भाषण-
उन्होंने कहा था मुझे यकीन नही होता कि यही अमृतसर है, जहां कुछ वर्ष पहले हमने जालियांवाला बाग के शहीदों जिनमें हिन्दू,मुसलमानों और सिखों सबका रक्त शामिल था,के स्मारक बनाने की बात की थी. मैं आपसे एक अपील करने आया हूं. शहर छोड़कर जा रहे मुसलमानों की हिफाजत का वचन दें.
अगर कोई बाधा डालेगा तो हमारे शरणार्थियों की हालत दुःखद हो जाएगी. हमने आजादी देश को महान और समृद्ध बनाने के लिए हासिल की है, न कि जो कुछ विदेशी शासक दे गए हैं, उसे भी नष्ट करने के लिए. आक्रमण -प्रतिआक्रमण, बदले और जबाबी बदले के इस दुष्चक्र को तोड़िये।
सरदार को इस बात का दुख था कि बरसों तक किये गए घृणा के प्रचार से पनपी कटुता इस हद तक बढ़ गई कि किसी मुसलमान के लिए पूर्वी पंजाब में और किसी हिन्दू-सिख के लिए पश्चिमी पंजाब में रहने की गुंजाइश नहीं रह गई।
पटेल की अमन-चैन की इस अपील के बाद भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की शिकायत थी, कि पटेल मुसलमानों को पाकिस्तान जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।