इतिहास– कड़े संघर्ष के बाद साल 1949 में भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिल गई थी। पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा हुआ था। वहीं भारत में गणराज्य की स्थापना की तैयारी हो रही थी। यह वह दौर था जब संविधान सभा की अंतिम बैठक चल रही थी और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर आरक्षण को लेकर सदस्यों के मध्य बहस कर रहे थे।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर से सवाल पूंछे जा रहे थे कि वह उस बात का समापन करें जो प्रस्ताव उन्होंने संविधान सभा मे रखा है। वहीं उनके ऊपर यह जिम्मेदारी भी थी कि उन्हें संविधान सभा को अपने भाषण के साथ खत्म करना था। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को वैसे तो सिर्फ ड्राफ्टिंग की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन जब उनके भाषण से सभा समाप्त होने की बात सामने आई तो उनका सर गर्व से ऊंचा हो गया।
वह ऐसा दौर था जब लोग जाति वादी भेदभाव की बेड़ियों में जकड़े हुए थे। लेकर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने अपने ज्ञान और शिक्षा के बलबूते पर सम्मान हासिल किया था। बाबा साहेब उस दौर के सबसे ज्यादा विद्वान नेताओं की लिस्ट में गिने जाते थे।
जाने क्यों आरक्षण के समर्थक थे बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर-
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने सदैव पिछड़ों के हित हेतु आवाज उठाई। वह आरक्षण का सबसे ज्यादा समर्थन करते थे। उनका कहना था कि यदि ग़ैरबराबरी को ख़त्म नहीं किया गया तो इससे पीड़ित लोग उस ढांचे को ध्वस्त कर दें जिसे इस संविधान में बनाया गया है।
उनका कहना था कि देश मे ब्राह्मणों और सर्वाणो का आधिपत्य है। यह लोग पिछडो के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। यदि आरक्षण नहीं लागू किया गया तो समाज मे पिछडो को नकार दिया जाएगा और उनकी तरक्की कभी नहीं हो पाएगी। बाबा साहब यह भी कहते थे कि समाज मे सभी को समान अधिकार दिलाने के लिए आरक्षण आवश्यक है क्योंकि यही एक माध्यम है जो उन्हें आगे बढ़ने के लिए उनकी मदद कर सकता है।
भारत को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर एक ऐसा देश बनाना चाहते थे जो कि सभी का सम्मान हो और लोग एक दूसरे के हित हेतु खड़े हो। उनका उद्देश्य सिर्फ देश को एकजुट रखना और सभी को समान अधिकार दिलाना था। लोगों को समान अधिकार दिलाने के लिए बाबा साहेब सदैव आरक्षण का समर्थन करते थे।