इतिहास– अंग्रजों ने भारत के लोगो के साथ अभद्रता की सभी हदे लांघ दी थी। जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था तो भारत के लोगो पास अपनी इच्छा अनुसार अपना जीवन यापन करने की इजाजत नही थी।
अगर कोई भारत का व्यक्ति अंग्रेजों के खिलाफ बोलता तो उसकी जुबान पर अंग्रेज अपनी निरंकुशता का ताला कस देते थे। अंग्रेजों ने भारत के संपन्न परिवार को अपने आगे झुका रखा था और वह उन्हीं की भाषा बोल रहे थे। वही किसानों और कमजोरों पर उनके अत्याचार की लाठी बरस रही थी।
वही अगर आजादी की आग में जल रहे भारत के परिपेक्ष्य में हम जलियांवाला बाग हत्याकांड को याद करते हैं तो आज भी हमारी रूह कांप उठती है। यह वही कांड है जिंसमे अंग्रेजों ने भारतीयों पर गोलियां चलाई थी और भारतीयों का खून बहाने से उनके हाथ नही कांपे थे।
13 अप्रैल 1919 अमृतसर के जलियांवाला बाग में भारतीय का खून बहाया गया। अंग्रेजों को न तो मासूम बच्चों पर दया आई और न महिलाओं पर। उन्होंने किसी को नही छोड़ा सभी को बन्द करके उनपर गोलियां चलाई।
उस दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में लाखों लोग पहुंचे।
कंफ्यू लगा हुआ था लोगो के मन मे डर था। लेकिन अपने देश के लिये लोग आगे बढ़े और अंग्रेजों के सामने खड़े हो गए। जलियांवाला बाग में लोगो की उमड़ी भीड़ देखकर अंग्रेज बौखला उठे। उन्हें लगा अब भारत ने आवाज उठाना शुरू कर दी है। हो सकता है अब भारत की सत्ता हमारे हाथ से चली जाए।
उन्हें 1857 की क्रान्ति याद आ गई। इस सभा मे ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर पहुंच गए। उन्होंने भारतीय का जज्बा देखा। उनके मन मे कई सवाल थे। उन्होंने जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ बाग को घेर लिया और बिना किसी चेतावनी के भारतीयों पर गोली बरसाने का आदेश दे दिया।
ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं और लाशों का ढेर लग गया। यह घटना आज भी भारत का दिल दहला देती है और चीख चीख कर कहती है कि देश की आजादी रक्त से स्नान करके आई है। इसे जीवित रहने दो।