इतिहास– अगर हम मुगलों के इतिहास पर गौर करे तो इनका उत्तराधिकारी निर्धारित नही होता था। यह अपने बड़े पुत्र को उत्तराधिकारी बनाने में यकीन नही रखते थे। क्योंकि इनका मानना था कि सिंघासन का असली हकदार वही है जो अपने सामर्थ्य से सभी को जीतने की ताकत रखता हो। जिसके पराक्रम का लोहा हर कोई मानता हो और जिसका एक मात्र उद्देश्य अपने साम्राज्य का विस्तार करना हो।
मुगलों की यह नीति उनके अपनो की दुश्मन बनती थी। सत्ता के लोभ में मुगल अपने सगे संबंधियों का कत्ल करने से बिल्कुल नही डरते थे। कई मुगलों ने अपने सगे भाइयों को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि उन्हें सत्ता का सुख चाहिए। वही कोई अपने पिता को बंदी बनाकर खुद सत्ता पर बैठ गया। यह सब कहानियां हमने इतिहास में पढ़ी होगी। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं मुगलों के उस उत्तराधिकारी के बारे में जिसपर यह आरोप लगा था कि उसमें इस्लाम को त्याग दिया है…
जाने कैसे सत्ता के लिये आपस मे भीड़ गए भाई-
साल 1656 यह वह दौर था जब मुगल बादशाह शाहजहां का शासन चल रहा था। सितंबर महीना था शाहजहां काफी बीमार हो गया। उससे राजकाज सम्भाला नही जा रहा था। उसने सोचा अब समय आ गया है जब मुगल साम्राज्य को मेरा उत्तराधिकारी संभाले।
शाहजहां ने अपने दरबारियों को बुलाकर शिकहो को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। जैसे ही दारा सिंह शिकहो मुगल बादशाह बने उन्हें यह पता चल गया कि अब उनके भाई उनके विद्रोही बन जायेंगे। उन्होंने शाहजहां की बीमारी को अभी सार्वजनिक न करने का निर्णय लिया। लेकिन उसके द्वारा उठाये गए कुछ कदम उसके लिये खतरा बन गए और युद्ध की आशंका बढ़ गई।
जब शिकाहो ने आगरा से गुजरात और बंगाल से दक्षिण के तक के यात्री मार्ग बंद करवा दिए। तो मुगलों में सुगबुगाहट शुरू हुई और उनकी नीतियों की आलोचना उनके अपने ही करने लगे। भाइयों ने शिकाहो से युद्ध की घोषणा करदी। शिकाहो का जनता से सम्पर्क टूट चुका था। लोगो को इस बात की खबर हो गई थी कि बादशाह बीमार है। वही साल 1656 में यह अफवाह फैली कि बादशाह की मौत हो गई लेकिन इस बात का खंडन करने के लिए शिकाहो के पिता ने जनता को दर्शन दिए।
लेकिन बात काफी बिगड़ चुकी थी। बादशाह की हालत से सभी परिचित थे। उनके इस दर्शन का जनता पर कोई प्रभाव नही पड़ा। शिकाहो के भाइयों ने विद्रोह छेड़ दिया।
शाह भुजा ने बंगाल में और मुराद ने गुजरात में खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और अपने नाम के सिक्के चलाने लगे। लेकिन इस सबके बीच औरंगजेब एक दम चुप था। उसकी चुप्पी सभी के लिये बड़ा खतरा बन रही थी। सभी के मन मे सवाल था कि आखिर वह मौन क्यों है।
लेकिन इसका जवाब सिर्फ औरंगजेब के पास था। उस समय औरंगजेब बड़ी तैयारी में था।उसने बुद्धिमानी से काम लिया और कोई घोषणा करने की जगह नर्मदा नदी के तट पर सैनिकों की टुकड़ियां खड़ी कर दीं ताकि कोई भी जानकारी इधर से उधर न हो सके. अपनी बहन रौशन आरा से राजधानी का हर हाल जानता रहा। उसने अपने भाई मुरीद के साथ एक सन्धि की ओर अपनी सेना का विस्तार किया।
औरंगजेब और मुरीद ने दारा सिंह शिकाहो पर 29 मई 1658 को आक्रमण किया। युद्ध मे जब शिकाहो हारने लगा तो वह मैदान छोड़कर भाग गया और इन दोनों ने अपने पिता को बंदी बना लिया। इस युद्ध के बाद मुरीद को यह अनुभव हो गया है कि औरंगजेब किसी का नही है वह किसी भी समय उसको साम्राज्य से बाहर कर सकता है।
और ऐसा ही हुआ औरंगजेब ने मुराद को मथुरा में आयोजित एक जश्न में आमंत्रित किया. वहां उसे पहले खूब शराब पिलाई फिर बंदी बना लिया. बाद में उसके सैनिकों को पैसों का लालच देकर उसकी हत्या करवा दी।
जाने क्यों यह अफवाह उड़ी की दारा सिंह शिकोह ने त्याग दिया इस्लाम-
औरंगजेब ने सत्ता पर तो अपना आधिपत्य जमा लिया लेकिन वह जनता से नही जुड़ पा रहा था। जनता उसे बिल्कुल नहीं पसन्द करती थी। उसकी नीतियों की हर ओर आलोचना होती थी। उसे धोखेबाज भी कहा जाता था। औरंगजेब ने जनता का विश्वास जीतने के लिये यह अफवाह फैलाई की शिकोह ने इस्लाम त्याग दिया है. धर्म की निंदा की है और काफिरों से मिल गया है. इस खबर के बाद औरंगजेब में शिकोह की हत्या करवा दी. इतना ही नहीं, उसकी लाश को नगर में घुमाया गया।