History – मुगलों की निरंकुशता को कौन नहीं जानता। उन्होंने न सिर्फ भारत पर राज किया अपितु भारत के लोगो पर खूब अत्याचार भी किये। महिलाओं को बंदी बनाया गया पुरुषों को काम करने की मशीन समझा गया और उन्हें जानवरों की तरह देखा गया। वही एक समय ऐसा था जब मुगल काल में संगीतकारों के बहुत बुरे दिन आ गए।
यह समय था मुगल बादशाह औरंगजेब का। औरंगजेब को संगीत से कुछ खास लगाव नही था। उसने संगीत पर प्रतिबंध लगा रखा था। इसके शासन काल में संगीतकार के खाने की किल्लत आ गई। संगीत यंत्रों में जंग लगने लगी। संगीत की प्रतिभा को नकारा जाने लगा।
जब संगीतकार मुगल बादशाह औरंगजेब की इस नीति से ऊब गए। संगीतकारों ने एकजुट होकर अपने तरीके से औरंगजेब का विरोध किया। करीब एक हजार से अधिक संगीतकार जमा मस्जिद पर एकत्रित हुए। जुलूस निकाला। लोग रोते गाते हुए वहां से निकले। उनके प्रदर्शन को देखकर ऐसा मालूम हो रहा था की किसी की मौत का मातम मनाया जा रहा हो।
जब औरंगजेब जामा मस्जिद से नमाज़ पढ़कर बाहर आया तो उसने इस प्रदर्शन को देखा। उसने अपने सैनिकों से पूंछा यह सब क्या हुआ है कुछ हो गया है क्या। तो प्रदर्शन से आवाज आई यह संगीत का जनाज़ा निकल रहा है। आपने संगीत का कत्ल किया है और अब हम उसे दफनाने जा रहे हैं। यह सुनकर औरंगजेब गुस्सा हुआ और बोला कब्र जरा गहरी खोदना।
संगीत पर पाबंदी का एक मुख्य कारण इस्लाम था। औरंगजेब कट्टर इस्लामिक था। उसका मानना था जो कलाकार होता है वह इस्लाम को नही मानता है। उसी समय औरंगजेब के पोते का जन्म हुआ। जिसे रंगीले बादशाह के नाम से भी जाना गया। लेकिन औरंगजेब के पोते का मिजाज उनसे बिल्कुल अलग था। मुहम्मद शाह को संगीत और कला को बढ़ावा देने के साथ शराब और अफीम का नशा करने के लिए भी जाना गया।
साल 1707 में औरंगजेब की मौत हुई. मुगल साम्राज्य का अस्तित्व खतरे में आने लगा, तब मुहम्मद शाह रंगीला ने उसे संभाला. मुहम्मद शाह के दौर में संगीत और कला को विशेष महत्व दिया गया। इसके सत्ता में आने के बाद संगीत को एक नई दिशा मिली और संगीत का काम पुनः आरम्भ हुआ।