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कश्मीर का मुद्दा

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कश्मीर का मुद्दा

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कश्मीर का मुद्दा
कश्मीर का मुद्दा
  1. 1947 में जब भारत आजाद हुआ बहुत सी छोटी बड़ी  रियासते भारत में थी जो आजा़द थी अंग्रेजों का कहना था ये रियासते चाहे तो भारत के साथ रहे या पाकिस्तान के साथ या फिर आजाद भी रह सकती हैं। उनके लिए ये कहना बहुत आसान था करना काफी कठिन था जिसकी जिम्मेदारी सरदार वल्लभ भाई पटेल को दी गई जो उस वक्त भारत के गृहमंत्री भी थे अब जो छोटी रियासते थी उन्होने विद्रोह देखा था इसलिए वे भारत के खिलाफ नहीं जा पाईं कुछ रियासतों को मनाकर बात करके  भारत में उनका विलय किया गया , तीन जगह जहाँ बात आकर अटक जाति है वो था जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू कश्मीर। जूनागढ़ एक हिंदू बहुसंख्यक राज्य था जहां का शासक एक मुस्लिम था और उसने 15 सितंबर 1947 को पाकिस्तान के साथ जाकर जूनागढ़ का विलय कर दिया देखते ही देखते वहां पर विद्रोह हो गया और मजबूरन राजा को पाकिस्तान में भागना पड़ा तब वहाँ जनमत संग्रह हुआ बहुसंख्यक वोट भारत के ही पक्ष में गया और जूनागढ़ का विलय भारत में हुआ रही बात हैदराबाद की तो वहां का राजा भी मुस्लिम था जो पाकिस्तान के साथ जाना चाहता जो की  संभव नहीं था क्योंकि हैदराबाद बिलकुल भारत के बीचों बीच में था और हो भी जाता तो कलको वही होता जो बांग्लादेश के साथ हुआ, इसके साथ ही उसने भी देखा था जूनागढ़ में क्या हुआ इसलिये वो थोड़ा डरा भी हुआ था उसने भारत के साथ एक स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट साइन किया, इसके उपयोग का मतलब था कि एक साल का समय दिया जाएगा फिर वो तय करेंगे कि उन्हें भारत के साथ जाना है या पाकिस्तान के साथ या वो आजा़द रहना चाहते है। आखिर में बात आई जम्मू कश्मीर की जहाँ के राजा महाराजा हरी सिंह थे और वहाँ की बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम थी, जो कुछ अब तक हुआ ये सब उनसे छुपा नहीं था समस्या यहां आई की अगर वो पाकिस्तान के साथ जाते हैं तो वो एक इस्लामिक देश है, जहां एक हिंदू राजा का टिकना आसन नहीं होगा, और वहीं दूसरी तरफ भारत में लोकतंत्र की बात हो रही है अगर यहां चुनाव हुआ तो उनकी गद्दी वैसा भी नहीं रहेगी , पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ रही थी क्योंकि पहले ही उनके हाथ से जूनागढ़ और हैदराबाद निकल चुका था। जब महाराजा हरि सिंह ने कोई निर्णय नहीं लिया तब पाकिस्तान ने एक 10000 लोगों की एक समानांतर सेना बनाई जिसे हम आजाद फौज भी कहते हैं, जिसे कश्मीर में चोरी छुपे भेजा गया हरी सिंह को लगा कि वे उन्हें  हरा देंगे लेकिन उनकी सेना के जनरल वीरेंद्र सिंह का कहना था की पूरी संभावना है की उनकी सेना में मौजूद मुस्लिम सैनिक उनके साथ मिल जाए और हुआ भी कुछ ऐसा ही पाकिस्तानी कबायली लड़ाको ने जम्मू कश्मीर के अंदर काफी खून खराबा किया एक हफ्ते के अंदर 600000 लोगो का कत्ले आम हुआ जब आजा़द फौज श्रीनगर से 50 किमी की दूरी पर रह गई तब महाराज हरि सिंह ने भारत से मदद माँगी जवाहर लाल नेहरू ने वी पी मेनन को भेजा विलय पत्र लेकर महाराजा हरि सिंह ने उसपर हस्ताक्षर किए और जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हो गया, गौर करने वाली बात यहां एक और भी है की भारत और पाकिस्तान दोनो की फौजे अंग्रेजो के पास थी उनका कहना था की दोनो देशो में से कोई भी अपनी फौज का इस्तमाल आत्मा रक्षा में ही कर सकता है हमला करने के लिए नहीं  भारत को फौज आत्मा रक्षा में दी गई और भारत ने कश्मीर के अंदर अपनी फौज उतारी और आजाद फौज को पीछे खदेड़ दिया अब यहां गलती भारत की ओर से हुई जब जवाहर लाल नेहरू इस मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र चले गए और तुरंत युद्धविराम बुलाया गया साथ ही तीन शर्तें रखी गई संयुक्त राष्ट्र की तरफ से पहली की पाकिस्तान की आज़ाद फौज कश्मीर को पूरी तरह खाली करे दूसरी तब भारत की फौज पीछे हटेगी इसके बाद वहाँ  जनमत संग्रह करवाया जाएगा और वाहां के लोग तय करेंगे की उन्हे हैभारत के साथ रहना है या पाकिस्तान के साथ या फिर वे आजाद मुल्क बने रहेंगे, तब से लेकर आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ जहां से भारत की फौज पीछे हटी थी, उस जगह को आज नियंत्रण रेखा भी कहते हैं, और जिन हिस्सों पर  पाकिस्तान का कब्ज़ा हो चुका था वो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहलाता