टुकड़े-टुकड़े गैंग के सामने जब आया सच्चा छात्र! देखिए फिर क्या हुआ!

Published On: July 13, 2025
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जब जनता के सामने एक छात्र ने खोली कन्हैया कुमार की पोल! तीखे सवालों से हुई बोलती बंद, वीडियो देखकर उड़ जाएंगे होश!

भारतीय राजनीति में कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) एक ऐसा नाम हैं जो अक्सर विवादों और तीखी बहसों (Controversies and Debates) के केंद्र में रहते हैं। जेएनयू छात्र संघ (JNU Student Union) के अध्यक्ष पद से लेकर कांग्रेस (Congress) के नेता बनने तक का उनका सफर हमेशा सुर्खियों में रहा है। कन्हैया कुमार अक्सर अपने भाषणों में शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और सरकार की नीतियों (Government Policies) की जमकर आलोचना करते नजर आते हैं। लेकिन क्या होता है जब भाषणों में बड़े-बड़े दावे करने वाले कन्हैया का सामना जनता के बीच बैठे एक आम और सच्चे छात्र से होता है? हाल ही में हुए कुछ सार्वजनिक कार्यक्रमों और इंटरव्यूज में कुछ ऐसे ही मौके देखने को मिले, जहां कन्हैया कुमार को तीखे और सीधे सवालों का सामना करना पड़ा और उनकी बोलती बंद हो गई।

40 साल का ‘बूढ़ा छात्र’ और बेरोजगारी का सच?

कन्हैया कुमार अक्सर खुद को एक छात्र नेता (Student Leader) के रूप में प्रस्तुत करते हैं, लेकिन उनकी उम्र को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। एक 40 वर्षीय व्यक्ति का खुद को छात्र कहना कई लोगों को अटपटा लगता है। सोशल मीडिया (Social Media) पर अक्सर उन्हें “बूढ़ा छात्र” कहकर ट्रोल किया जाता है। आलोचकों का कहना है कि जो व्यक्ति खुद देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी (JNU) में इतने वर्षों तक पढ़ने के बाद भी बेरोजगार (Unemployed) रहा और अपने दम पर कुछ नहीं कर सका, वह दूसरों को शिक्षा और रोजगार (Education and Employment) पर क्या ज्ञान दे सकता है? JNU में लगे कथित देश-विरोधी नारों (‘Anti-National’ Slogans) का दाग भी उनका पीछा नहीं छोड़ता, जिसने उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया।

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जब हनुमान चालीसा पर घिर गए कन्हैया कुमार!

एक इंटरव्यू के दौरान, जब कन्हैया कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) पर निशाना साधते हुए कह रहे थे कि देश को प्रधानमंत्री से हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) नहीं सीखना है, तो एंकर ने उन्हें बीच में ही टोक दिया। एंकर ने सवाल उठाया कि कर्नाटक (Karnataka) में जब कांग्रेस की सरकार थी, तो वहां हनुमान चालीसा पढ़ने वालों पर कथित तौर पर हमले हुए। इस पर कन्हैया ने जवाब दिया, “क्या बात करते हैं, ‘भूत-पिशाच निकट नहिं आवै, महाबीर जब नाम सुनावै’। हनुमान चालीसा पढ़ने से तो भूत-पिशाच भी पास नहीं आते, तो उन्हें कौन मार सकता है?”

लेकिन फिर उन्होंने असली मुद्दे पर बात घुमाते हुए कहा, “सवाल ये है कि हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद जब वो व्यक्ति बाजार में पेट्रोल (Petrol Price) भराने जाएगा तो उसे ₹100 लीटर मिलेगा। जो बाइक (Bike Price) 50 हजार की थी, वो अब 1 लाख की हो गई है।” यह जवाब भले ही उन्होंने महंगाई (Inflation) से जोड़ने की कोशिश की, लेकिन हनुमान चालीसा पर हुए हमले के सीधे सवाल से बचते नजर आए, जिसे लोगों ने उनकी कमजोरी के रूप में देखा।

जब एक छात्र ने आईना दिखा दिया: “JNU वाला कॉलेज” vs “साधारण कॉलेज”

एक डिबेट शो में, कन्हैया कुमार असली मुद्दों पर बहस करने की बात कर रहे थे, तभी एक छात्र ने उन्हें बुरी तरह घेर लिया। छात्र ने कहा, “आप देश के इतने बड़े और महंगे JNU जैसे कॉलेज में पढ़े हैं, जबकि मैं एक साधारण से कॉलेज में पढ़ा हूँ।” इस एक लाइन ने ही कन्हैया के दावों की हवा निकाल दी। संदेश साफ था कि आम छात्रों को वैसी सुविधाएं नहीं मिलतीं जैसी कन्हैया कुमार को मिलीं, फिर भी वह व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं। एंकर ने भी तुरंत तंज कसते हुए कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे लोग देश का नैरेटिव सेट कर रहे हैं, जो खुद अपने सिद्धांतों पर खरे नहीं उतरते। यह क्षण कन्हैया के लिए काफी शर्मिंदगी भरा था।

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एक छात्र का सीधा सवाल और कन्हैया की बोलती बंद!

शायद सबसे यादगार पल वह था जब एक छात्र ने खड़े होकर कन्हैया कुमार से पूछा, “सर, आप सरकार की इतनी आलोचना और बुराई करते हैं। आप ही बता दीजिए कि आपको सरकार के पांच अच्छे काम क्या लगते हैं?” यह सवाल इतना अप्रत्याशित था कि कन्हैया कुमार मुस्कुराने के अलावा कुछ जवाब नहीं दे पाए। दर्शक तालियां बजाने लगे और कन्हैया कुमार सिर्फ असहज होकर हंसते रहे। यह दिखाता है कि सिर्फ आलोचना करना आसान है, लेकिन जब सकारात्मक पक्ष बताने की बात आती है तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता।

JNU के देश-विरोधी नारे और नोटबंदी पर फिर घिरे कन्हैया

एक अन्य छात्र ने उनसे JNU में लगे कथित देश-विरोधी नारों के बारे में पूछा। छात्र ने कहा, “आप कहते हैं कि नोटबंदी (Demonetisation) अर्बन नक्सलिज्म (Urban Naxalism) को रोकने के लिए थी। तो 9 फरवरी 2016 को जब JNU में नारे लगे थे, तब कौन सी नोटबंदी थी?” इस सवाल पर कन्हैया कुमार पूरी तरह से फंस गए। उन्होंने जवाब देने की कोशिश करते हुए कहा, “पहली बात, वहां नारे लगे थे या नहीं, इसकी मुझे जानकारी नहीं है क्योंकि मैं वहां मौजूद नहीं था। दूसरा, मैं उस कार्यक्रम का आयोजक नहीं था।” उनका यह टालमटोल वाला जवाब भीड़ को संतुष्ट नहीं कर पाया और उन पर “टुकड़े-टुकड़े गैंग” (Tukde-Tukde Gang) का सदस्य होने के आरोप और पुख्ता हो गए।

कांग्रेस पार्टी पर भी लगे तीखे सवाल: “पार्टी है या रेलवे स्टेशन?”

एक इंटरव्यू में जब एंकर ने कांग्रेस पार्टी से गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad), कपिल सिब्बल (Kapil Sibal), ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) जैसे बड़े नेताओं के जाने पर सवाल किया और पूछा कि “यह पार्टी है या रेलवे स्टेशन, कोई टिकता ही नहीं?”, तो कन्हैया कुमार ने जवाब दिया, “विपक्ष में होने के कारण अगर कोई हमें छोड़कर जा रहा है, तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है।” लेकिन वह इस बात का सीधा जवाब नहीं दे पाए कि इतने अनुभवी नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं।

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निष्कर्ष: आलोचना से आगे कब बढ़ेंगे कन्हैया?

कन्हैया कुमार की पूरी राजनीति अब तक सिर्फ और सिर्फ आलोचना और विरोध पर टिकी है। वह बेरोजगारी, महंगाई, और लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी (Weakening of Democratic Institutions) जैसे मुद्दे उठाते हैं, जो कि विपक्ष के नेता के तौर पर उनका अधिकार है। लेकिन जब उनसे समाधान (Solutions) या सकारात्मक पक्ष (Positive Aspects) के बारे में पूछा जाता है, तो वे अक्सर निरुत्तर हो जाते हैं। एक छात्र द्वारा पूछे गए ‘पांच अच्छे काम’ का सवाल इसी की एक बानगी है। जनता अब सिर्फ समस्याएं सुनने के मूड में नहीं है, वह समाधान चाहती है। यदि कन्हैया कुमार और विपक्ष को जनता का भरोसा जीतना है, तो उन्हें आलोचना से आगे बढ़कर एक ठोस वैकल्पिक विजन (Alternative Vision) पेश करना होगा।

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