Property Rights : आजकल पति-पत्नी के अधिकारों पर बहस या चर्चा तब और भी तेज़ हो जाती है जब उनके संबंधों में खटास आती है और वे अलग होने या तलाक लेने का फैसला करते हैं। ऐसे मुश्किल समय में, दोनों ही पक्ष कोर्ट में खुद को सही साबित करने और संपत्ति सहित अपने कानूनी हक का दावा करने की पूरी कोशिश करते हैं। कानून के तहत उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रावधान (Legal Provisions) मौजूद हैं, जिनका उपयोग वे एक-दूसरे के खिलाफ या अपने पक्ष में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कर सकते हैं। महिला संपत्ति अधिकार (Women’s Property Rights) और विवाह कानून भारत (Marriage Law India) हमेशा से ही चर्चा का विषय रहे हैं।
ऐसा ही एक बड़ा और अक्सर बहस का कारण बनने वाला विवाद प्रॉपर्टी (Property Dispute) को लेकर भी होता है, जिसमें तमाम तरह के दावे और गलतफहमियां सामने आती हैं। इन्हीं में से एक आम दावा ये भी किया जाता है कि एक पत्नी अपनी प्रॉपर्टी (Wife’s Property) को अपने पति की इजाजत (Husband’s Permission) के बगैर नहीं बेच सकती है। यानी, उसे अपनी खुद की संपत्ति का निपटारा करने से पहले अपने पति से इसकी अनुमति लेनी अनिवार्य है। यह धारणा कई लोगों के बीच प्रचलित है, खासकर भारतीय समाज में। लेकिन क्या वाकई कानून ऐसा कहता है? आज हम आपको इसी महत्वपूर्ण सवाल और इससे जुड़े कानूनी पहलुओं के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
पत्नी का संपत्ति बेचने का अधिकार: कलकत्ता हाईकोर्ट ने किया स्पष्ट!
दरअसल, यह मुद्दा सोशल मीडिया (Social Media) पर और आम बातचीत में काफी गरम रहता है कि क्या एक पत्नी अपनी खुद की संपत्ति को पति की इजाजत के बिना बेच सकती है या नहीं। इस सवाल का सीधा और स्पष्ट जवाब कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले (Court Judgment) में दिया। इस ऐतिहासिक फैसले में न्यायालय ने बिल्कुल साफ कर दिया कि अगर कोई संपत्ति (Property) legally (कानूनी तौर पर) पत्नी के नाम पर (Property in Wife’s Name) पंजीकृत है, तो उसे उस संपत्ति को बेचने का पूरा अधिकार (Right to Sell Property) है। ऐसे मामले में उसे अपनी खुद की प्रॉपर्टी बेचने के लिए अपने पति से इजाजत लेने की कोई जरूरत नहीं है (No need for Husband’s Permission)।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई पत्नी अपनी निजी संपत्ति को पति की सहमति के बिना बेचती है, तो पति द्वारा इसे क्रूरता (Cruelty) का आधार मानकर तलाक या अन्य कानूनी कार्रवाई की मांग नहीं की जा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कोई ऐसा कार्य नहीं है जो क्रूरता के दायरे में आता हो। ठीक इसी तरह, पति भी अपनी खुद की अर्जित संपत्ति (Husband’s Own Property) को बेचने के लिए अपनी पत्नी की इजाजत लेने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य नहीं है। दोनों के पास अपनी-अपनी निजी संपत्ति के निपटारे का समान कानूनी अधिकार है। यह फैसला महिला संपत्ति अधिकारों को और मजबूत करता है और समाज में प्रचलित गलतफहमी को दूर करता है।
पति-पत्नी के अन्य महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार, खास तौर पर संपत्ति को लेकर
भारतीय कानून (Indian Law) के तहत पति और पत्नी के बीच संपत्ति और अन्य मामलों से जुड़े कुछ और महत्वपूर्ण अधिकार भी हैं, जिन्हें जानना सभी के लिए जरूरी है:
- पति की अर्जित संपत्ति पर पत्नी का अधिकार (Wife’s Right on Husband’s Acquired Property): कानून के अनुसार, एक पत्नी का अपने पति द्वारा विवाह के बाद अर्जित की गई संपत्ति (Property Acquired During Marriage) पर बराबर का अधिकार (Equal Right) होता है। यह अधिकार तब और मजबूत हो जाता है जब पत्नी ने घर चलाने या परिवार की देखभाल में योगदान दिया हो, जिससे पति को संपत्ति अर्जित करने का अवसर मिला। पति उसे इस संपत्ति से बेदखल (Cannot Evict Wife from Property) नहीं कर सकता जब तक कि तलाक या अलग होने पर संपत्ति का बंटवारा (Property Division) कानूनी रूप से तय न हो जाए।
- पैतृक संपत्ति पर अधिकार (Ancestral Property Rights): पत्नी का अपने पति की पैतृक संपत्ति (Husband’s Ancestral Property) पर सीधे तौर पर विवाह के आधार पर अधिकार नहीं होता। वह इस संपत्ति पर दावा तब तक नहीं कर सकती जब तक उसके ससुराल पक्ष के माता-पिता (Husband’s Parents) जीवित हैं और संपत्ति उनके नाम पर है। पति को अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है, और उस हिस्से में फिर पत्नी का अधिकार बनता है, लेकिन सीधे तौर पर ससुर की संपत्ति पर पत्नी का अधिकार नहीं होता जब तक कि संपत्ति पति के नाम ट्रांसफर न हो जाए। हालांकि, बेटी होने के नाते महिला का अपने पिता की पैतृक संपत्ति में जन्म से अधिकार (Daughter’s Birthright in Ancestral Property) होता है (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 के संशोधन के बाद)।
- गुजारा भत्ता (Maintenance/Alimony): यदि पति-पत्नी अलग रहते हैं (Separation) या उनका तलाक (Divorce) हो जाता है, तो पति को पत्नी को गुजारा भत्ता देना होता है (Husband to Pay Maintenance), ताकि वह अपना जीवन यापन कर सके। यह गुजारा भत्ता पति की आय और पत्नी की जरूरतों के आधार पर कोर्ट द्वारा तय किया जाता है।
- पति द्वारा गुजारा भत्ता का दावा (Husband Claiming Maintenance): यह एक कम चर्चित लेकिन कानूनी अधिकार है। यदि पति बेरोजगार है (Husband is Unemployed) और पत्नी नौकरी करती है (Wife is Employed) या पर्याप्त कमाई करती है, तो पति भी पत्नी से गुजारे भत्ते और कुछ मामलों में पत्नी की अर्जित संपत्ति पर भी अधिकार का दावा कर सकता है, बशर्ते वह खुद का खर्च उठाने में असमर्थ हो और पत्नी की आय पर्याप्त हो।
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला एक बार फिर स्पष्ट करता है कि कानूनी अधिकार व्यक्ति के नाम पर आधारित होते हैं, न कि पति-पत्नी के रिश्ते पर। यदि कोई संपत्ति किसी पत्नी के नाम पर है, तो उसे उसे बेचने, खरीदने या किसी भी तरह से निपटाने का पूरा कानूनी अधिकार है, और इसके लिए उसे अपने पति की इजाजत की कोई आवश्यकता नहीं है। यह निर्णय महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है और महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को मान्यता देता है।
पति-पत्नी दोनों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे विवाह और संपत्ति से जुड़े अपने कानूनी अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझें। अलग होने या तलाक जैसी परिस्थितियों में, कानूनी सलाह (Legal Advice) लेना हमेशा बुद्धिमानी होती है ताकि संपत्ति के बंटवारे और अन्य अधिकारों से जुड़े मामलों का निपटारा निष्पक्ष तरीके से हो सके। यह जानकारी आपको भविष्य में होने वाले विवादों से बचा सकती है और आपको कानूनी रूप से मजबूत बना सकती है। अपनी प्रॉपर्टी से जुड़े हर फैसले में कानूनी पहलुओं का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।