Periyar University: पेरियार विश्वविद्यालय में शिक्षकों की पुनर्नियुक्ति पर गंभीर आरोप, नियमों का उल्लंघन और भारी वित्तीय नुकसान

Published On: June 10, 2025
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Periyar University: पेरियार विश्वविद्यालय में शिक्षकों की पुनर्नियुक्ति पर गंभीर आरोप, नियमों का उल्लंघन और भारी वित्तीय नुकसान

Periyar University: तमिलनाडु (Tamil Nadu) के प्रतिष्ठित पेरियार विश्वविद्यालय (Periyar University) में शिक्षकों की पुनर्नियुक्ति (Teacher Re-employment) को लेकर गंभीर आरोप लगे हैं। एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी टीचर्स (AUT Tamil Nadu) ने विश्वविद्यालय प्रशासन (University Administration) पर पसंदीदा शिक्षकों को फायदा पहुंचाने और नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। यह मामला तब सामने आया जब AUT ने हाल ही में हुई सिंडिकेट की बैठक (Syndicate Meeting) में लिए गए कुछ फैसलों पर आपत्ति जताई।

नियमानुसार, शिक्षकों को पुनर्नियुक्ति (Re-employment) केवल तभी दी जानी चाहिए जब वे किसी शैक्षणिक वर्ष (Academic Year) के बीच में सेवामुक्त (Retiring) हो रहे हों। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि छात्रों की पढ़ाई बाधित न हो और चल रहे सत्र को पूरा किया जा सके। हालांकि, AUT का आरोप है कि पिछले विश्वविद्यालय प्रशासन (Past University Administration) ने इस नियम की अनदेखी करते हुए चुनिंदा (Preferred) शिक्षकों को ही दोबारा नौकरी दी और कई योग्य शिक्षकों को इससे वंचित रखा गया।

AUT ने विशेष रूप से 22 नवंबर 2024 को हुई सिंडिकेट की 116वीं बैठक (116th Syndicate Meeting) में लिए गए एक फैसले पर सवाल उठाया है। इस बैठक में प्रबंधन विभाग (Department of Management) के प्रोफेसर वी.आर. पलानिवेलु (V.R. Palanivelu) को 9 महीने की पुनर्नियुक्ति दी गई है, जो 14 जून 2025 को अधिवर्षिता (Superannuating) प्राप्त कर रहे हैं। शिक्षकों का आरोप है कि यह पुनर्नियुक्ति विश्वविद्यालय के लिए शैक्षणिक वर्ष 2025-26 में लगभग ₹26.67 लाख का अतिरिक्त वित्तीय नुकसान (Financial Loss) लाएगी।

एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी टीचर्स के महासचिव (AUT General Secretary) के. राजा (K. Raja) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कुछ पसंदीदा शिक्षकों को पुनर्नियुक्ति देना नियमों का सीधा उल्लंघन (Violation of Rules) है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि विश्वविद्यालय के अपने नियम और परिनियम (University Statutes) हैं जिनका पालन किया जाना चाहिए।

उन्होंने 23 अप्रैल 2025 के रजिस्ट्रार प्रभारी (Registrar in-charge) के एक सर्कुलर (Circular) का हवाला दिया, जिसमें घोषणा की गई थी कि विश्वविद्यालय 3 मई से 29 जून 2025 तक गर्मियों की छुट्टी (Summer Vacation) पर रहेगा और 30 जून 2025 को फिर से खुलेगा। विश्वविद्यालय परिनियम के अध्याय VIII, धारा 12(2) (Chapter VIII, Section 12(2) of University Statutes) के अनुसार, पूर्णकालिक शिक्षक (Full-time teachers) 1 मई से 30 जून तक (दोनों दिन शामिल) दो महीने की ग्रीष्मकालीन छुट्टी के हकदार हैं, साथ ही सभी राजपत्रित छुट्टियों (Gazetted holidays) के भी।

श्री राजा ने यह भी बताया कि 11 जनवरी 2019 को आयोजित सिंडिकेट की 102वीं बैठक (102nd Syndicate Meeting) में विश्वविद्यालय ने लिखित रूप में यह अपनाया था कि पेरियार विश्वविद्यालय का शैक्षणिक वर्ष 1 जुलाई से 30 अप्रैल तक रहेगा, और मई और जून अवकाश के महीने होंगे। यह राज्य विश्वविद्यालयों (State universities) द्वारा अपनाए जाने वाले सामान्य नियम के अनुरूप है।

यह दर्शाते हुए कि कैसे नियमों को अपनी सुविधानुसार बदला गया, श्री राजा ने कुछ पूर्व मामलों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि प्रबंधन अध्ययन विभाग (Management Studies) के पूर्व HoD एन. राजेंद्रन (N. Rajendhiran) को जून 2018 में अधिवर्षिता प्राप्त करने के बाद पुनर्नियुक्ति से वंचित (Denied Re-employment) कर दिया गया था। यह इंकार एस. मुरुगेश (S. Murugesh), वनस्पति विज्ञान विभाग (Botany Department) के पूर्व HoD, के जून 2017 में अधिवर्षिता प्राप्त करने पर पहले किए गए इंकार पर आधारित था। उस समय के सिंडिकेट के प्रस्ताव (Syndicate resolution) के अनुसार, पुनर्नियुक्ति केवल उन्हीं शिक्षकों को दी जानी थी जो प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष की 1 जुलाई या उसके बाद सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

इसके बिल्कुल विपरीत, विश्वविद्यालय ने भौतिकी विभाग (Physics) के HoD पी. कुमारदास (P. Kumaradhas) को पुनर्नियुक्ति (1 जुलाई 2022 से मई 2023 तक) दी, जबकि उन्होंने जून 2022 में ही अधिवर्षिता प्राप्त कर ली थी। केवल कुमारदास ही नहीं, बल्कि प्रोफेसर एस. अनबझगन (S. Anbazhagan) और सी. सेल्वराज (C. Selvaraj) को भी जुलाई 2023 में पुनर्नियुक्ति दी गई। हैरान करने वाली बात यह है कि उसी समय गणित विभाग (Mathematics Department) के प्रोफेसर ए. मुथुसामी (A. Muthusamy) को 30 जून 2024 को सेवामुक्त होने पर पुनर्नियुक्ति से वंचित कर दिया गया। और अब, श्री राजा ने जोड़ा, विश्वविद्यालय ने श्री पलानिवेलु को पुनर्नियुक्ति दी है, जो 14 जून 2025 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

श्री राजा का आरोप है कि जो शिक्षक इन “अवैधताओं” (Illegalities) के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा कुचल दिया जाता है। उन्होंने बताया कि सहायक प्रोफेसर के. प्रेमकुमार (K. Premkumar), जो उस समय पेरियार विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (Periyar University Teachers’ Association) के महासचिव थे, ने श्री कुमारदास को पुनर्नियुक्ति देने के इस “घोर उल्लंघन” (Gross Violation) की ओर सिंडिकेट के पदेन सदस्यों का ध्यान दिलाया था। इसके जवाब में, उन्हें दुर्भावनापूर्ण तरीके से निलंबित (Vindictively Suspended) कर दिया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त (Terminated from Service) कर दिया गया। यह विश्वविद्यालय प्रशासन की दमनकारी नीति (Oppressive policy) का स्पष्ट उदाहरण है।

AUT ने मांग की है कि श्री प्रेमकुमार की दुर्भावनापूर्ण बर्खास्तगी को तत्काल रद्द (Immediately revoke termination) किया जाए और उन्हें बहाल (Reinstate him) किया जाए। साथ ही, श्री पलानिवेलु की पुनर्नियुक्ति को दी गई सिंडिकेट की मंजूरी (Syndicate approval) को तुरंत रोका जाए। AUT ने उच्च शिक्षा विभाग (Higher Education department) से प्रोफेसर कुमारदास, अनबझगन और सेल्वराज को दी गई “अवैध पुनर्नियुक्ति” (Illegal Re-employment) और प्रोफेसर राजेंद्रन तथा मुथुसामी को पुनर्नियुक्ति न देने के मामले की मौके पर ही जांच (On-the-spot inquiry) करने की मांग की है। एसोसिएशन का कहना है कि इन तीन प्रोफेसरों को पुनर्नियुक्ति देकर हुए ₹86.42 लाख (₹86.42 lakh financial loss) के वित्तीय नुकसान की वसूली (Recover financial loss) के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। इसी प्रकार, इन जानबूझकर किए गए उल्लंघनों (Conscious violations) के दोषियों पर दंडात्मक कार्रवाई (Punitive action) की जानी चाहिए।

यह मामला पेरियार विश्वविद्यालय में प्रशासनिक पारदर्शिता (Administrative transparency) और नियमों के पालन पर गंभीर सवाल खड़े करता है। शिक्षकों के संघ द्वारा लगाए गए ये आरोप विश्वविद्यालय के कामकाज में संभावित भ्रष्टाचार (Potential corruption) और पक्षपात (Favoritism) की ओर इशारा करते हैं, जिनकी निष्पक्ष जांच समय की मांग है। यह मामला तमिलनाडु के शैक्षणिक क्षेत्र (Educational sector in Tamil Nadu) में उच्च शिक्षा संस्थानों (Higher education institutions) में प्रशासनिक नियुक्तियों और प्रक्रियाओं की समीक्षा की आवश्यकता पर भी ज़ोर देता है।

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