क्या शादी के बाद बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार खत्म हो जाता है? सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे! पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Published On: June 12, 2025
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क्या शादी के बाद बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार खत्म हो जाता है? सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे! पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
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पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार: नए कानूनी नियम, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और आपके हक की पूरी जानकारी

भारतीय समाज में लंबे समय से बेटियों को ‘पराया धन’ समझने की एक पारंपरिक सोच रही है, जिसके चलते उन्हें अक्सर पारिवारिक संपत्ति में उनके जायज हक से वंचित रखा जाता था। लेकिन समय बदला है, और देश के कानून ने भी बेटियों को बेटों के बराबर लाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 (Hindu Succession (Amendment) Act, 2005) इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, जिसने पिता की संपत्ति में बेटी के अधिकार (daughter’s rights in father’s property) को कानूनी रूप से मजबूत किया है। आइए, इस महत्वपूर्ण विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं और जानते हैं कि एक बेटी का अपने पिता की संपत्ति में कब, कितना और कैसे अधिकार होता है।

क्या है हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005?

इस कानून के आने से पहले, हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्तियों (Hindu Undivided Family – HUF property) में केवल बेटों को ही जन्म से सहदायिक (coparcener) माना जाता था, यानी उन्हें संपत्ति में जन्मजात अधिकार प्राप्त होता था। बेटियों को यह अधिकार नहीं था। लेकिन 9 सितंबर 2005 को लागू हुए इस संशोधन ने बेटियों को भी बेटों के समान सहदायिक का दर्जा दे दिया। इसका मतलब है कि अब बेटी भी जन्म से ही अपने पिता की पैतृक संपत्ति (ancestral property) में बेटों के बराबर हकदार होती है।

मुख्य बातें जो आपको जाननी चाहिए:

  • जन्मसिद्ध अधिकार: बेटी को बेटे की तरह ही जन्म से पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलता है, चाहे उसका जन्म 2005 से पहले हुआ हो या बाद में।
  • विवाहित बेटियों का अधिकार: शादी के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार (daughter’s property rights after marriage) खत्म नहीं होता। वह विवाहित हो, अविवाहित हो, विधवा हो या तलाकशुदा, उसका हक बेटों के समान ही बना रहता है।
  • पिता की मृत्यु की तिथि: सुप्रीम कोर्ट ने विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020) मामले में यह स्पष्ट कर दिया है कि बेटी को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलेगा, भले ही उसके पिता की मृत्यु 2005 के संशोधन कानून के लागू होने से पहले हो गई हो। महत्वपूर्ण यह है कि संपत्ति का बंटवारा बेटी के जीवित रहते हो रहा हो।

पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में बेटी का अधिकार:

पैतृक संपत्ति वह संपत्ति होती है जो किसी व्यक्ति को उसके पिता, दादा या परदादा से विरासत में मिली हो, यानी कम से कम चार पीढ़ियों से अविभाजित चली आ रही हो। ऐसी संपत्ति में बेटी का बेटे के बराबर हिस्सा होता है। वह संपत्ति के बंटवारे की मांग भी कर सकती है।

पिता की स्वअर्जित संपत्ति (Father’s Self-Acquired Property) में बेटी का अधिकार:

पिता द्वारा अपनी मेहनत, कमाई या अन्य साधनों से खुद अर्जित की गई संपत्ति उनकी स्वअर्जित संपत्ति कहलाती है। इस प्रकार की संपत्ति के मामले में, पिता को यह पूर्ण अधिकार होता है कि वह अपनी संपत्ति किसे देना चाहते हैं।

  • बिना वसीयत मृत्यु (Dying Intestate): यदि पिता बिना कोई वसीयत (Will) बनाए मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, तो उनकी स्वअर्जित संपत्ति में उनकी सभी कानूनी वारिसों (जैसे पत्नी, बेटे और बेटियों) को बराबर हिस्सा मिलता है।
  • वसीयत द्वारा: यदि पिता ने अपनी स्वअर्जित संपत्ति के संबंध में कोई वसीयत बनाई है, तो संपत्ति का बंटवारा उस वसीयत के अनुसार ही होगा। वह अपनी स्वअर्जित संपत्ति किसी को भी देने के लिए स्वतंत्र हैं, चाहे वह बेटी हो, बेटा हो, या कोई अन्य व्यक्ति। यदि वसीयत में बेटी को हिस्सा नहीं दिया गया है, तो वह सामान्यतः उस पर दावा नहीं कर सकती (कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर)।

मुस्लिम पर्सनल लॉ में बेटी का संपत्ति अधिकार (Daughter’s Property Rights in Muslim Personal Law):

इस्लाम में भी बेटियों को संपत्ति का अधिकार दिया गया है, हालांकि हिस्सेदारी के नियम हिंदू कानून से भिन्न हैं। आमतौर पर, मुस्लिम कानून के तहत बेटी को बेटे की तुलना में आधा हिस्सा मिलता है। संपत्ति का वितरण कुरान में निर्धारित नियमों के अनुसार होता है।

अपने अधिकारों के लिए क्या करें?

यदि किसी बेटी को उसके कानूनी संपत्ति अधिकार (legal property rights) से वंचित किया जा रहा है, तो वह निम्नलिखित कदम उठा सकती है:

  1. आपसी बातचीत: सबसे पहले परिवार में आपसी बातचीत और सुलह से मामले को हल करने का प्रयास करना चाहिए।
  2. कानूनी नोटिस: यदि बातचीत से समाधान नहीं निकलता है, तो एक वकील के माध्यम से कानूनी नोटिस भेजा जा सकता है।
  3. न्यायालय में दावा: इसके बाद भी यदि हक नहीं मिलता, तो संपत्ति के बंटवारे के लिए सक्षम न्यायालय में सिविल मुकदमा (civil suit for partition) दायर किया जा सकता है।

भारत में महिलाओं के संपत्ति अधिकार (women’s property rights) को सशक्त बनाने के लिए कानून लगातार विकसित हो रहे हैं। बेटियों को अब अपने पिता की पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार प्राप्त है, जो लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह महत्वपूर्ण है कि हर बेटी अपने कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक (aware of legal rights) रहे और जरूरत पड़ने पर अपने हक के लिए आवाज़ उठाए। समाज की सोच में भी परिवर्तन आवश्यक है ताकि बेटियों को उनका उचित स्थान और अधिकार सम्मानपूर्वक मिल सके।

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