Delhi High Court : सास-ससुर की प्रॉपर्टी में बहू का कितना हक? पैतृक हो या खुद की कमाई, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा और साफ फैसला

Published On: April 15, 2025
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Delhi High Court :  प्रॉपर्टी से जुड़े नियम-कानून अक्सर आम लोगों की समझ से परे होते हैं, खासकर जब बात बहू के अधिकारों की आती है। क्या शादी के बाद बहू का अपने सास-ससुर की संपत्ति पर कोई कानूनी हक बनता है? क्या वह उनकी पैतृक या खुद की कमाई से बनी प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी का दावा कर सकती है? इन सवालों पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्थिति बिल्कुल साफ कर दी है।

हाईकोर्ट का दो टूक फैसला: बहू का कोई अधिकार नहीं!

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि सास-ससुर की किसी भी तरह की चल-अचल संपत्ति (Movable or Immovable Property) पर बहू का कोई कानूनी अधिकार नहीं होता है। कोर्ट ने साफ कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह संपत्ति सास-ससुर को पुरखों से मिली है (पैतृक) या उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई से खुद अर्जित की है।

यह फैसला उस मामले में आया जहां एक महिला ने जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए ससुर का घर खाली करने के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत और जिला मजिस्ट्रेट के फैसले को सही ठहराते हुए बहू की अपील खारिज कर दी।

क्यों सुनाया कोर्ट ने ये फैसला? वरिष्ठ नागरिकों का अधिकार सर्वोपरि!

चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वी. कामेश्वर राव की बेंच ने अपने फैसले में कहा:

  1. सास-ससुर का अधिकार: संपत्ति चाहे किसी भी प्रकार की हो (चल, अचल, मूर्त, अमूर्त) और उस पर सास-ससुर का मालिकाना हक चाहे जैसा भी हो, अगर उसमें सास-ससुर का हित जुड़ा है, तो बहू का उस पर कोई अधिकार नहीं बनता।

  2. शांति से रहने का हक: कोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए बनाए गए कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें अपने ही घर में शांति से रहने का पूरा अधिकार है।

  3. बाहर निकालने का भी अधिकार: कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सास-ससुर को यह अधिकार है कि वे अपनी संपत्ति से न केवल अपने बेटे या बेटी को, बल्कि अपनी बहू को भी बाहर निकाल सकते हैं।

आसान शब्दों में मतलब:

कानून सास-ससुर को उनकी अपनी संपत्ति पर पूरा नियंत्रण देता है। बहू केवल इस आधार पर कि वह उस घर की बहू है, सास-ससुर की मर्ज़ी के बिना उनकी संपत्ति में रहने या उस पर किसी तरह का दावा करने का कानूनी अधिकार नहीं रखती है। यह फैसला उन तमाम भ्रमों को दूर करता है जो अक्सर बहू के अधिकारों को लेकर समाज में व्याप्त रहते हैं और वरिष्ठ नागरिकों के अपनी संपत्ति पर अधिकारों को मजबूती प्रदान करता है।

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