Dalai Lama: भारत ने मनाया 14वें दलाई लामा का 90वां जन्मोत्सव, चीन को दी दो टूक

Published On: July 6, 2025
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Dalai Lama: रविवार को हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत शहर धर्मशाला में 14वें दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के उत्सव में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की गरिमामयी उपस्थिति ने इस मौके को और भी खास बना दिया। यह समारोह तिब्बती आध्यात्मिक नेता के प्रति गहरी श्रद्धा, प्रार्थनाओं और कृतज्ञता के भावों से ओत-प्रोत था। भारत की भूमि पर बसे तिब्बती समुदाय के निर्वासन के दुख के बीच, दलाई लामा का 90वां जन्मदिन न केवल उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, बल्कि यह भारत और तिब्बत के बीच सदियों पुराने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों का एक जीवंत प्रमाण भी बना।

तिब्बती भिक्षुओं ने की विशेष प्रार्थनाएँ:
इस महत्वपूर्ण अवसर पर, निर्वासित तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं ने शिमला के पास स्थित डोरजिडाक मठ (Dorjidak Monastery) में विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन किया। इन प्रार्थनाओं का उद्देश्य दलाई लामा के दीर्घायु और उनके कल्याण की कामना करना था, साथ ही उन्हें उनके जीवनभर के आध्यात्मिक कार्यों के लिए सम्मानित करना भी था। भिक्षुओं ने मंत्रोच्चार और पारंपरिक बौद्ध अनुष्ठानों के साथ अपने प्रिय आध्यात्मिक नेता के प्रति अपनी अपार श्रद्धा व्यक्त की।

किरेन रिजिजू का भावनात्मक सम्बोधन: ‘प्राचीन ज्ञान और आधुनिक दुनिया के बीच सेतु’
समारोह को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने दलाई लामा के प्रति भारत सरकार और करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “आप केवल एक आध्यात्मिक नेता नहीं हैं। आप प्राचीन ज्ञान और आधुनिक दुनिया के बीच एक जीवंत सेतु हैं।” यह बात न केवल दलाई लामा के व्यक्तिगत महत्व को दर्शाती है, बल्कि भारत द्वारा उनके प्रति प्रदर्शित सम्मान और आदर का भी प्रतीक है। रिजिजू ने आगे कहा, “हम इस देश में उनके होने से स्वयं को धन्य महसूस करते हैं, जिसे वे अपनी ‘आर्यभूमि’ मानते हैं।” यह कथन भारत के उसMxaraxar को रेखांकित करता है कि वह किस तरह दलाई लामा को एक आदरणीय अतिथि और एक पूजनीय आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में देखता है।

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निर्वासन में दलाई लामा के विचार: “जहां भी हूं, वहीं लोगों की सेवा करना चाहता हूं”
अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर, मैकलॉडगंज में स्थित मुख्य दलाई लामा मंदिर में आयोजित उत्सव के दौरान, दलाई लामा ने अपने निर्वासन के जीवन पर विचार साझा किए। उन्होंने भावुक शब्दों में कहा, “हालांकि हमने अपना देश खो दिया है और हम भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं, लेकिन यहीं पर मैं लोगों के लिए बहुत कुछ करने में सक्षम रहा हूं। विशेषकर यहां, धर्मशाला में रहने वाले। मेरा इरादा यथासंभव अधिक से अधिक लोगों की सेवा करना है।” यह शब्द उनके असीम करुणा और सेवा भाव को प्रदर्शित करते हैं, जो किसी भी सीमा या भौगोलिक स्थिति से परे है।

उत्तराधिकार पर गरमाती बहस और चीन की गीदड़भभकी!
यह उत्सव एक ऐसे समय में हुआ है, जब दलाई लामा के उत्तराधिकार (succession) को लेकर बहस तेज हो गई है। यह मुद्दा भारत और चीन के बीच कूटनीतिक तनाव का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है। हाल ही में, चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग (Mao Ning) ने कहा कि अगले दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया को बीजिंग की मंजूरी आवश्यक होगी, और उन्होंने भारत को “सावधानी” के साथ तिब्बत-संबंधी मामलों को संभालने की चेतावनी दी थी, ताकि द्विपक्षीय संबंधों में खटास न आए। चीन का यह कदम तिब्बत पर अपने नियंत्रण को और मजबूत करने और भारत के प्रभाव को कम करने के प्रयास को दर्शाता है।

भारत का स्पष्ट रुख: “दलाई लामा संस्थान के निर्णयों का सम्मान करेंगे!”
चीन की इन टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए, किरेन रिजिजू ने भारत के रुख को मजबूती से दोहराया। उन्होंने कहा, “एक अनुयायी के रूप में और दुनिया भर के लाखों अनुयायियों की ओर से, मैं यह बताना चाहता हूं कि महामहिम (दलाई लामा) द्वारा जो भी निर्णय लिया जाएगा, स्थापित परंपराओं और रूढ़ियों के अनुसार, हम पूरी तरह से उसका पालन करेंगे और दलाई लामा संस्थान द्वारा जारी किए जाने वाले निर्देशों और दिशानिर्देशों का अनुसरण करेंगे।” भारत का यह बयान स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह दलाई लामा के आध्यात्मिक नेतृत्व और उनके द्वारा तय की जाने वाली उत्तराधिकार प्रक्रिया का पूर्ण सम्मान करता है और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा।

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स्वयं दलाई लामा ने भी स्पष्ट कर दिया है कि उनके उत्तराधिकारी का चयन भारत-आधारित गाडेन फोडरंग ट्रस्ट (Gaden Phodrang Trust) द्वारा किया जाएगा, जो उन्होंने स्थापित किया है। उन्होंने किसी भी बाहरी हस्तक्षेप, विशेष रूप से चीन द्वारा, को स्पष्ट रूप से अस्वीकार किया है। यह संदेश चीन के लिए एक सीधा संकेत है, जो तिब्बत पर अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहता है और दलाई लामा की आध्यात्मिक विरासत पर अपनी मुहर लगाना चाहता है। भारत का यह रुख तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।


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