Bombay High Court : क्या आपकी बिल्डिंग सुरक्षित है? मुंबई के इस भयानक अग्निकांड पर कोर्ट का फैसला सुनकर आप हिल जाएंगे

Published On: June 11, 2025
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Bombay High Court : क्या आपकी बिल्डिंग सुरक्षित है? मुंबई के इस भयानक अग्निकांड पर कोर्ट का फैसला सुनकर आप हिल जाएंगे
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Bombay High Court : साल 2015 में मुंबई (Mumbai) के एक भोजनालय (Eatery) में लगी भीषण आग (Fire Incident) की त्रासदी (Tragedy) आज भी कई परिवारों के ज़ख्मों को ताज़ा रखती है। उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में आठ युवा वयस्कों (Young Adults) की जान चली गई थी। अब, लगभग नौ साल बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने इस मामले में एक बेहद अहम और ऐतिहासिक फैसला (Historic Judgment) सुनाया है। कोर्ट ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (Brihanmumbai Municipal Corporation – BMC) को इस त्रासदी के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है और प्रत्येक मृतक के परिवार को ₹50 लाख (₹50 Lakhs) का मुआवजा (Compensation) देने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि बीएमसी की “घोर लापरवाही” (Gross Negligence) ही इस अग्निकांड का “मुख्य कारण” (Proximate Cause) थी। यह फैसला यह रेखांकित करता है कि सरकारी संस्थाएं (Government Authorities) अपनी वैधानिक जिम्मेदारियों (Statutory Duties) से मुंह नहीं मोड़ सकतीं और उनकी लापरवाही नागरिकों के जीवन (Citizens’ Lives) की कीमत पर आती है।

लोकायुक्त के फैसले को रद्द किया, पीड़ितों के पक्ष में सुनाया फैसला

जस्टिस बीपी कोलाबावाला (Justice BP Colabawalla) और जस्टिस फिरदौस पी पूनीवाला (Justice Firdosh P Pooniwalla) की खंडपीठ (Division Bench) ने सोमवार को पीड़ितों के माता-पिता और आश्रितों (Parents and Dependents of Victims) द्वारा दायर की गई एक रिट याचिका (Writ Petition) पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने लोकायुक्त (Lokayukta) के उस पहले के फैसले को रद्द (Quashed Lokayukta Ruling) कर दिया, जिसने पीड़ितों के मुआवज़े के दावों को खारिज कर दिया था।

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कड़े शब्दों में कहा, “अगर प्रतिवादी नंबर 2 (महानगरपालिका) ने अग्निशमन सुरक्षा नियमों के उल्लंघन (Fire Safety Violations) पर तुरंत कार्रवाई करके और एमएमसी अधिनियम (MMC Act) की धारा 479 के तहत किनारा (भोजनालय का नाम) का लाइसेंस रद्द (Cancel License) करके, एमएमसी अधिनियम की धारा 394 के तहत एलपीजी सिलेंडरों को ज़ब्त (Seize LPG Cylinders) करके और ग्राहकों को सेवा देने के लिए मचान क्षेत्र/मेज़ानिन फ्लोर (Mezzanine Floor) के उपयोग पर रोक लगाकर अपने वैधानिक कर्तव्यों का पालन किया होता, तो आग निश्चित रूप से नहीं लगती।”

क्या थी वो त्रासदी? 2015 का कुर्ला अग्निकांड

यह दुखद मामला 16 अक्टूबर 2015 (October 16, 2015) को कुर्ला (Kurla) स्थित होटल सिटी किनारा (Hotel City Kinara) में लगी आग से जुड़ा है। इस भोजनालय में, ज़्यादातर 18 से 20 साल की उम्र के आठ युवा छात्र (Young Students) एक अवैध रूप से निर्मित मचान फ्लोर (Illegally Constructed Mezzanine Floor) पर बैठकर खाना खा रहे थे, तभी आग लगी और उनकी जान चली गई।

मचान फ्लोर (Mezzanine Floor Explained) एक इमारत के मुख्य तलों के बीच बनाया गया एक अतिरिक्त, अक्सर अस्थायी, तल होता है। ऐसी जगहों पर आग लगने का खतरा ज़्यादा होता है, क्योंकि आग लगने पर यह तेज़ी से ऊपर और नीचे दोनों तलों पर फैल सकती है। मेज़ानिन फ्लोर का डिज़ाइन अक्सर बाहर निकलने के रास्ते (Exit Routes) को भी सीमित कर देता है, जिससे आग लगने पर जोखिम और बढ़ जाता है।

बीएमसी की लापरवाही का लंबा इतिहास

जांचों से पता चला था कि यह भोजनालय अनिवार्य फायर एनओसी (Fire NOC) के बिना चल रहा था, अग्निशमन सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन (Violation of Fire Safety Norms) करते हुए मचान क्षेत्र में कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर (Commercial LPG Cylinders) रखे हुए थे, और महानगरपालिका (BMC Inspection Reports) से कई बार चेतावनी (Warnings) और निरीक्षण रिपोर्ट (Inspection Reports) मिलने के बावजूद उन पर ध्यान नहीं दिया गया था।

2012 और 2015 के बीच, बीएमसी के स्वास्थ्य अधिकारी (Medical Officer of Health) द्वारा कई बार निरीक्षण किए गए थे जिनमें गंभीर उल्लंघन (Serious Violations) दर्ज किए गए थे। इनमें खाना पकाने के लिए गैर-लाइसेंसशुदा जगहों का उपयोग, अग्निशमन अनुमतियों की कमी, और एलपीजी सिलेंडरों का अनुचित भंडारण शामिल था। पुलिस और सहायक आयुक्त (Police and Assistant Commissioner) को दी गई शिकायतों में भी सिलेंडर फटने के जोखिम (Cylinder Explosion Risk) की चेतावनी दी गई थी।

इन सबके बावजूद, बीएमसी ने मुंबई नगर निगम अधिनियम (MMC Act) के तहत रेस्तरां का लाइसेंस रद्द करने (Revoke License) या सुरक्षा नियमों का पालन करवाने (Enforce Safety Compliance) के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। आग लगने से सिर्फ 44 दिन पहले की एक रिपोर्ट में भी मेज़ानिन फ्लोर का उपयोग ग्राहकों के लिए होने की पुष्टि हुई थी, लेकिन तब भी कोई कदम नहीं उठाया गया।

पीड़ित परिवारों और बीएमसी के तर्क

हाई कोर्ट में, पीड़ितों के परिवारों ने तर्क दिया कि अग्निशमन सुरक्षा मानदंडों को लागू करने में बीएमसी का कर्तव्य (BMC Duty of Care) अधिक था। किनारा का लाइसेंस रद्द करने या एलपीजी सिलेंडरों को ज़ब्त करने में नागरिक निकाय की विफलता (Failure to Act) सिर्फ एक चूक नहीं थी, बल्कि वैधानिक दायित्वों का उल्लंघन (Breach of Statutory Obligations) था जो सीधे तौर पर इन मौतों का कारण बना। उन्होंने लापरवाही के लिए सार्वजनिक प्राधिकरण की जवाबदेही (Public Authority Liability for Negligence) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Precedents) के पूर्व फैसलों का हवाला दिया और संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21 – Right to Life) के तहत जीवन के अधिकार के उल्लंघन (Violation of Right to Life) के लिए दंडात्मक हर्जाने (Exemplary Damages) की मांग की।

बीएमसी ने दावा किया कि सारा दोष रेस्तरां चलाने वालों का था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि मुआवजे के दावों का फैसला सिविल सूट (Civil Suits) के माध्यम से किया जाना चाहिए। बीएमसी ने अपनी सफाई में यह भी कहा कि सीमित जनशक्ति (Limited Manpower) के कारण वह प्रभावी ढंग से नियमों को लागू नहीं कर पाई।

कोर्ट का फैसला: बीएमसी की लापरवाही ही मौतों का कारण

इन दलीलों को खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा, “हमारी राय में, यह किनारा के मालिक और संचालक द्वारा किए गए सबसे गंभीर उल्लंघनों में से एक था, बल्कि प्रतिवादी नंबर 2 (बीएमसी) द्वारा भी, जिसने बिना कोई फायर एनओसी प्राप्त किए किनारा को ईटिंग हाउस लाइसेंस (Eating House License) जारी किया।”

कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बीएमसी की लापरवाही न केवल घोर थी, बल्कि मौतों से सीधे तौर पर जुड़ी हुई थी। “बट फॉर” टेस्ट (But For Test – यह कारण-प्रभाव निर्धारित करने का कानूनी सिद्धांत है) लागू करते हुए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“हमारी राय में, अगर प्रतिवादी नंबर 2 (बीएमसी) ने उक्त उल्लंघनों के खिलाफ किनारा के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की होती, तो एलपीजी सिलेंडरों को मचान क्षेत्र/मेज़ानिन फ्लोर में संग्रहीत नहीं किया जाता और आग नहीं लगती, और किसी भी स्थिति में, जान का कोई नुकसान नहीं होता।”

मुआवज़े की रकम और भुगतान का आदेश

कोर्ट ने कहा कि रिट क्षेत्राधिकार (Writ Jurisdiction) में मुआवजा मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की पुष्टि के लिए होता है, न कि केवल आर्थिक नुकसान (Pecuniary Loss) की गणना के लिए। कोर्ट ने पीड़ितों की उम्र (Age), शिक्षा (Education), भविष्य की क्षमता (Future Potential), और 2015 से मुद्रास्फीति (Inflation) जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए प्रति पीड़ित ₹50 लाख की राशि को उचित बताया।

बीएमसी को इस आदेश का पालन करने के लिए 12 सप्ताह (12 Weeks Deadline) का समय दिया गया है। यदि वे समय पर भुगतान करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें अतिरिक्त 9 प्रतिशत ब्याज (9 Percent Interest) का भुगतान करना होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बीएमसी कानून के अनुसार अन्य जिम्मेदार पक्षों (Responsible Parties) से इस राशि की वसूली कर सकती है।

यह फैसला मुंबई में बिल्डिंग सुरक्षा नियमों (Building Safety Rules) और सरकारी निकायों की जवाबदेही (Government Body Accountability) के मामले में एक महत्वपूर्ण नजीर बनेगा। यह दिखाता है कि लापरवाही से हुए जानमाल के नुकसान के लिए जिम्मेदार संस्थाओं को कानून के दायरे में लाया जा सकता है।


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