डेस्क। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर 15 और 16 अक्टूबर को इस्लामाबाद में होने वाली संघाई सहयोग संगठन की सालाना मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान जाने वाले हैं। 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के बाद दोनों देशों के रिश्तों में काफी खटास आई है। तब से कुछ गिने चुने मौके ही मिले, जब कोई भारतीय नेता पाकिस्तान गया हो और आखिरी बार साल 2016 में राजनाथ सिंह बतौर गृह मंत्री सार्क की बैठक के लिए पाकिस्तान गए थे। वहीं तब से कोई भी भारतीय राजनेता पाकिस्तान के दौरे पर नहीं गया।
वहीं इससे पहले दिसंबर 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रूस यात्रा से लौटते वक्त अफगानिस्तान और पाकिस्तान गए थे। 2015 में दिसंबर में ही तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ”हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस” में हिस्सा लेने के लिए इस्लामाबाद पहुंची थीं। इसके बाद उरी, पुलवामा, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और तमाम आतंकी मुद्दों और सीमा पर तनाव के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते ठप हैं। वहीं ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या विदेश मंत्री की इस यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में सुधार आ सकता है? या 2023 में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो की भारत यात्रा के महज़ एक दिन बाद से ही जैसे दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच तीखी बयानबाजी हुई थी, वैसे ही इस बार भी होगा। या दोनों देशों के रिश्तें में कोई सुधार आएगा?
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विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल से जब प्रेस कांफ्रेस में इस विषय पर पूछा गया तो उनका ये जवाब था कि, ”ये दौरा एससीओ मीटिंग के लिए है, इससे ज़्यादा इसके बारे में आप न सोचें।” इस विषय पर पूर्व राजदूत अशोक सज्जनहार विदेश मंत्री की इस यात्रा को केवल एससीओ समिट तक ही सीमित देखते हैं और वह आईएएनएस से बातचीत में बताते हैं, “पिछले साल जब बिलावल भुट्टो यहां आए थे, तब इसका कोई फायदा नहीं हुआ था। इसलिए, मुझे नहीं लगता कि इस बार कोई द्विपक्षीय बातचीत या मुलाकात होगी, न पाकिस्तान के विदेश मंत्री से न ही प्रधानमंत्री से। उनके अनुसार इस यात्रा को द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए। इसे केवल शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक में भाग लेने के दृष्टिकोण से ही देखा जाना जाए। डॉ. एस. जयशंकर, जो एक अनुभवी राजनयिक हैं और पिछले पांच साल से विदेश मंत्री की भूमिका में रहे हैं, इस बात का ध्यान रखेंगे कि चर्चा केवल एससीओ के दायरे में ही सीमित रही है।”
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कई देशों में भारत के राजदूत रहे और अभी अफ्रीकी देशों के लिए भारत सरकार के सलाहकार के रूप में कार्यरत दीपक वोहरा भी इस मामले में अशोक सज्जनहार की तरह ही इसे एससीओ की एक बहुपक्षीय मीटिंग से ज्यादा नहीं देखते हैं।
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विदेश मंत्री के इस दौरे से भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधारों पर दीपक वोहरा भी काफी नकारात्मक रुख रखते हैं। वह ये कहते हैं कि, “2008 के बाद इससे पहले भी कई ऐसे मौके आए जब दोनों देशों के या तो प्रधानमंत्रियों ने एक दूसरे देश का दौरा किया है या विदेश मंत्री सहित कई अन्य मंत्रियों ने दौरा किया है। लेकिन दुर्भाग्यवश सुधार कुछ भी नहीं हुआ।”