Supreme Court : बच्चों ने नहीं रखा ख्याल तो क्या मां-बाप वापस ले सकते हैं गिफ्ट में दी ज़मीन? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, जानें क्या हैं आपके अधिकार

Supreme Court : बच्चों ने नहीं रखा ख्याल तो क्या मां-बाप वापस ले सकते हैं गिफ्ट में दी ज़मीन? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, जानें क्या हैं आपके अधिकार

Supreme Court : ज़मीन-जायदाद के मामले अक्सर रिश्तों में कड़वाहट घोल देते हैं। खासकर जब बात मां-बाप और औलाद के बीच संपत्ति के लेन-देन की हो। बहुत से लोगों को प्रॉपर्टी से जुड़े नियम-कानूनों की सही जानकारी नहीं होती। इसी उलझन को दूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह फैसला इस सवाल का जवाब देता है कि क्या जिन माता-पिता ने प्यार से अपनी संपत्ति बच्चों को तोहफे (गिफ्ट) में दे दी, वे उसे वापस ले सकते हैं, खासकर तब जब बच्चे उनकी देखभाल करने में आनाकानी करें? आइए, जानते हैं इस पूरे मामले को और सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले का आप पर क्या असर पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: हाँ, वापस ली जा सकती है संपत्ति!
देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ कर दिया है कि अगर बच्चे अपने उन माता-पिता की देखभाल नहीं करते, जिनसे उन्हें संपत्ति उपहार (गिफ्ट) में मिली है, तो ऐसी संपत्ति माता-पिता वापस ले सकते हैं। कोर्ट ने यह फैसला ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007’ (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) की व्याख्या करते हुए दिया है।

क्या था मामला? (एक उदाहरण)
यह फैसला मध्य प्रदेश के छतरपुर के एक मामले पर आया। उर्मिला दीक्षित नाम की एक माँ ने 2019 में अपनी संपत्ति गिफ्ट डीड के ज़रिए अपने बेटे सुनील शरण दीक्षित के नाम कर दी। माँ का आरोप था कि संपत्ति मिलने के बाद बेटा और अधिक संपत्ति के लिए उन पर और उनके पति पर अत्याचार करने लगा, जबकि संपत्ति देते समय बेटे ने मौखिक रूप से उनकी देखभाल का वादा किया था।

माँ ने स्थानीय एसडीएम (सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट) के पास शिकायत की। एसडीएम ने माँ के पक्ष में फैसला सुनाते हुए गिफ्ट डीड को रद्द कर दिया, यह मानते हुए कि देखभाल की शर्त का पालन न करना धोखाधड़ी के समान है। बेटा इस फैसले के खिलाफ कई जगह अपील करता रहा और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने अंततः बेटे के पक्ष में फैसला दे दिया। हाई कोर्ट का तर्क था कि देखभाल की शर्त गिफ्ट डीड में लिखित रूप से होनी चाहिए थी, जो कि नहीं थी।

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाई कोर्ट का फैसला:
आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और एसडीएम के शुरुआती आदेश को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया:

  • कानून का उद्देश्य: 2007 का यह कानून बुजुर्गों को उपेक्षा और दुर्व्यवहार से बचाने और उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करने के लिए बनाया गया है।

  • लिखित शर्त ज़रूरी नहीं: कोर्ट ने कहा कि यह ज़रूरी नहीं कि देखभाल की शर्त गिफ्ट डीड में स्पष्ट रूप से लिखी ही हो। अगर संपत्ति इस समझ के साथ दी गई है कि बच्चे माता-पिता की देखभाल करेंगे (जो ऐसे रिश्तों में अक्सर निहित होता है), और बाद में बच्चे अपनी ज़िम्मेदारी से मुकर जाते हैं, तो इसे कानून की धारा 23 के तहत वादाखिलाफी या धोखाधड़ी माना जा सकता है।

  • ट्रिब्यूनल का अधिकार: कानून के तहत बने ट्रिब्यूनल (जैसे एसडीएम कोर्ट) को यह अधिकार है कि वह बुजुर्गों की शिकायत पर मामले की जांच करे और अगर उन्हें लगता है कि देखभाल नहीं की जा रही है, तो वे संपत्ति के ट्रांसफर (गिफ्ट डीड) को रद्द कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बेटे को आदेश दिया कि वह 28 फरवरी (संबंधित वर्ष) तक संपत्ति वापस अपनी माँ को सौंप दे।

कानून की धारा 23 क्या कहती है?
2007 के कानून की धारा 23(1) कहती है कि अगर कोई वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति किसी को इस शर्त (चाहे वह लिखी हो या समझी गई हो) पर ट्रांसफर करता है कि संपत्ति पाने वाला व्यक्ति उनकी बुनियादी ज़रूरतों और देखभाल का ध्यान रखेगा, और बाद में वह व्यक्ति ऐसा करने से इनकार कर देता है, तो वरिष्ठ नागरिक इस ट्रांसफर को रद्द करने के लिए ट्रिब्यूनल में आवेदन दे सकता है। इसे धोखाधड़ी, दबाव या अनुचित प्रभाव का मामला माना जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन सभी बुजुर्ग माता-पिता के लिए एक बड़ी राहत है जो अपनी संपत्ति बच्चों को सौंपने के बाद उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। यह स्पष्ट करता है कि संपत्ति का तोहफा देना एकतरफा नहीं है, इसके साथ देखभाल की नैतिक और कानूनी ज़िम्मेदारी भी जुड़ी होती है। अगर बच्चे इस ज़िम्मेदारी को नहीं निभाते हैं, तो कानून बुजुर्गों के साथ खड़ा है और वे अपनी संपत्ति वापस पाने के हकदार हो सकते हैं। यह फैसला बच्चों को भी उनकी ज़िम्मेदारियों का अहसास कराता है।