Can son in law claim father in law property : परिवारों में प्रॉपर्टी को लेकर झगड़े बढ़ते जा रहे हैं, और कई बार ये रिश्ते की मर्यादा भी लांघ जाते हैं। ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है मध्य प्रदेश से, जहाँ एक दामाद ने अपने सास-ससुर की ही प्रॉपर्टी पर अपना हक़ जता दिया! मामला इतना बढ़ा कि हाईकोर्ट तक पहुँच गया, और अब कोर्ट ने इस पर एक बेहद अहम फैसला सुनाया है, जो देशभर के लोगों के लिए जानना ज़रूरी है।
क्यों मचा है बवाल? जानिए पूरा मामला
भोपाल के रहने वाले दिलीप मरमठ नाम के शख्स अपने ससुर के घर में ही रह रहे थे। अक्सर देखा जाता है कि कहीं ज़्यादा वक़्त रहने पर मान-सम्मान में कमी आ जाती है, शायद यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ। ससुर ने कुछ समय बाद दामाद से घर खाली करने को कहा। लेकिन दामाद जी तो मानो प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा करने का मन बना चुके थे! उन्होंने घर खाली करने से साफ इनकार कर दिया।
बुज़ुर्ग ससुर को जाना पड़ा कोर्ट
जब दामाद ने घर खाली नहीं किया, तो मजबूरन बुज़ुर्ग ससुर को कानून का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा। उन्होंने पहले एसडीएम कोर्ट में अपील दायर की।
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एसडीएम कोर्ट का फैसला: कोर्ट ने ससुर के पक्ष में फैसला सुनाया और दामाद को तुरंत घर खाली करने का आदेश दिया।
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कलेक्टर कोर्ट में अपील: दामाद इस फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने भोपाल कलेक्टर के पास अपील की, लेकिन वहां भी उनकी अपील खारिज कर दी गई।
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हाईकोर्ट का दरवाज़ा: हार न मानते हुए दामाद दिलीप मामले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ले गए, लेकिन यहाँ भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
हाईकोर्ट ने क्या कहा? जानिए फैसले की अहम बातें
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ससुर की दलीलों और पिछले फैसलों को देखते हुए एक स्पष्ट और कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा:
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सिर्फ रहने की इजाज़त थी, मालिकाना हक़ नहीं: हाईकोर्ट ने साफ़ किया कि ससुर ने दामाद को सिर्फ अपने घर में रहने की ‘अनुमति’ (लाइसेंस) दी थी। इसका मतलब यह नहीं कि वह उस प्रॉपर्टी का मालिक बन गया या उस पर दावा ठोक सकता है।
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दामाद का कोई कानूनी हक़ नहीं: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दामाद का सास-ससुर की खुद की अर्जित की हुई संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता है।
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तुरंत घर खाली करने का आदेश: हाईकोर्ट ने दामाद दिलीप मरमठ को तुरंत ससुर का घर खाली करने का आदेश दिया।
कब कर सकता है दामाद दावा?
हाईकोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि अगर सास-ससुर ने वह प्रॉपर्टी खुद दामाद के नाम पर खरीदी होती, या उसे गिफ्ट (दान) में दिया होता, तब दामाद उस पर अपना दावा कर सकता था। लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं था, इसलिए दामाद का दावा पूरी तरह बेबुनियाद पाया गया। यह फैसला उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो रिश्तों की आड़ में दूसरों की संपत्ति पर नज़र रखते हैं। कानून स्पष्ट है – जब तक संपत्ति आपके नाम पर न हो या आपको वसीयत में न मिली हो, आप सिर्फ रहने की अनुमति के आधार पर मालिकाना हक़ नहीं जता सकते, चाहे रिश्ता कितना भी करीबी क्यों न हो।