Allahabad High Court : कानूनी दायरे में पर्सनल लॉ से जुड़े मामले अक्सर चर्चा का विषय बनते रहते हैं। इसी क्रम में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत बहुविवाह (एक से ज़्यादा शादी) को लेकर एक बेहद महत्वपूर्ण और स्पष्ट टिप्पणी की है। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि मुस्लिम पुरुषों को एक से ज़्यादा शादी करने की इजाज़त तभी मिलती है, जब वे अपनी सभी पत्नियों के साथ बिल्कुल समान व्यवहार कर सकें। कोर्ट ने यह भी कहा कि कुरान में कुछ खास और नेक वजहों से ही बहुविवाह की अनुमति दी गई थी, लेकिन आज पुरुष इसका अपने निजी फायदे के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं।
क्या कहा इलाहाबाद हाईकोर्ट ने?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की सिंगल बेंच एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जब उन्होंने मुस्लिम पुरुषों के दूसरी या तीसरी शादी करने के अधिकार पर यह अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कुरान का हवाला देते हुए बताया कि इस्लाम में बहुविवाह की इजाज़त कुछ विशेष परिस्थितियों में ही दी गई है। ऐतिहासिक रूप से, यह इजाज़त खासकर इस्लामी काल में युद्धों या अन्य कारणों से बेसहारा हुई विधवाओं और अनाथों की सुरक्षा व देखभाल सुनिश्चित करने जैसे उद्देश्यों के लिए सशर्त दी गई थी।
लेकिन, कोर्ट ने मौजूदा हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि आज के दौर में अक्सर पुरुष इस इजाज़त का फायदा उठाकर अपने निजी स्वार्थों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए इसका दुरुपयोग कर रहे हैं। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि मुस्लिम पुरुष को दूसरी शादी करने का तब तक कोई अधिकार नहीं है, जब तक वह अपनी सभी पत्नियों के साथ न्यायपूर्ण और समान व्यवहार करने की क्षमता न रखता हो।
क्या है पूरा मामला जिसकी सुनवाई में यह टिप्पणी आई?
यह महत्वपूर्ण टिप्पणी मुरादाबाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सामने आई। याचिकाकर्ता फुरकान और दो अन्य लोगों ने मुरादाबाद के सीजेएम कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ दाखिल चार्जशीट (8 नवंबर 2020) का संज्ञान लेने और उन्हें समन जारी करने के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
दरअसल, फुरकान की दूसरी पत्नी ने उनके और दो अन्य लोगों के खिलाफ मुरादाबाद के मैनाठेर थाने में 2020 में FIR दर्ज कराई थी। FIR में आरोप था कि फुरकान ने अपनी पहली शादी के बारे में छिपाकर दूसरी शादी की और इस दौरान (दूसरी पत्नी के साथ संबंध बनाने के दौरान) उसके साथ बलात्कार भी किया। FIR में IPC की धारा 376 (बलात्कार), 495 (पिछली शादी को छिपाकर दूसरी शादी), 120बी (आपराधिक साजिश), 504 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान), और 506 (आपराधिक धमकी) जैसी धाराएं शामिल थीं। पुलिस ने जांच के बाद ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी, जिस पर कोर्ट ने संज्ञान लेकर याचिकाकर्ताओं को समन जारी किया था।
याचिकाकर्ता की दलील:
याचिकाकर्ता फुरकान के वकील ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि FIR दर्ज कराने वाली महिला (दूसरी पत्नी) ने खुद स्वीकार किया है कि उसने संबंध बनाने के बाद शादी की थी। वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ IPC की धारा 494 (पति या पत्नी के जीवनकाल में फिर से शादी करना) के तहत अपराध नहीं बनता। उन्होंने तर्क दिया कि मुस्लिम कानून (शरीयत अधिनियम 1937) के अनुसार, एक मुस्लिम पुरुष को एक साथ चार पत्नियां रखने की इजाज़त है। इसलिए, जब पहली शादी मुस्लिम कानून के तहत हुई हो, तो दूसरी शादी IPC की धारा 494 के तहत ‘अमान्य’ नहीं मानी जा सकती और इसलिए यह धारा लागू नहीं होती। वकील ने अपनी दलील के समर्थन में गुजरात हाईकोर्ट और कुछ अन्य अदालतों के पूर्व फैसलों का भी हवाला दिया।
राज्य सरकार का पक्ष:
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने याचिकाकर्ता की दलील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पुरुष द्वारा किया गया हर दूसरा विवाह हमेशा वैध नहीं माना जा सकता। उन्होंने तर्क दिया कि यदि किसी व्यक्ति की पहली शादी हिंदू विवाह अधिनियम 1955 जैसे किसी अन्य कानून के तहत हुई थी, और बाद में वह इस्लाम धर्म अपनाकर मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी करता है, तो ऐसी स्थिति में उसका दूसरा विवाह अमान्य होगा और उस पर IPC की धारा 494 के तहत कार्रवाई हो सकती है।
हाईकोर्ट का फैसला (इस विशिष्ट मामले पर):
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें और केस के तथ्यों पर विचार किया। कोर्ट ने अपने 18 पन्नों के फैसले में नोट किया कि इस खास मामले में, जैसा कि दूसरी पत्नी के बयान से स्पष्ट होता है, याचिकाकर्ता फुरकान ने उससे दूसरी शादी की है। चूंकि दोनों ही महिलाएं मुस्लिम हैं, इसलिए कोर्ट ने कहा कि पहली नज़र में (prima facie) यह दूसरी शादी वैध प्रतीत होती है।
कोर्ट ने यह भी पाया कि इस मामले में दायर FIR और चार्जशीट के आधार पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ IPC की धारा 376 (बलात्कार), 495 (पिछली शादी छिपाकर शादी) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत अपराध बनता नहीं दिखता। इसलिए, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ इन धाराओं के तहत निचली अदालत में चल रही ‘उत्पीड़नात्मक कार्यवाही’ (Oppressive Proceedings) पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है।
हालांकि, कोर्ट ने पूरी याचिका खारिज नहीं की है और इस मामले में विपक्षी संख्या 2 (दूसरी पत्नी) को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 26 मई 2025 से शुरू होने वाले हफ्ते में होगी। इस सुनवाई में दूसरे पक्ष की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट अंतिम फैसला देगा।
समान नागरिक संहिता (UCC) पर भी दिया जोर
इस सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) की ज़रूरत पर भी बल दिया। कोर्ट का मानना है कि जब तक पर्सनल लॉ अलग-अलग रहेंगे, इस तरह के विवाद सामने आते रहेंगे। UCC लागू होने से सभी नागरिकों के लिए शादी, तलाक, उत्तराधिकार जैसे मामलों में एक समान कानून होगा।
संक्षेप में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह की इजाज़त बिना शर्त नहीं है। यह तभी मान्य है जब सभी पत्नियों के साथ पूर्ण समानता बरती जाए, और कोर्ट ने इस अनुमति के दुरुपयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की है।