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Join NowUP: उत्तर प्रदेश सरकार ने भले ही राज्य के 22 जिलों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर मक्का की खरीद के आदेश जारी कर दिए हों, लेकिन शाहजहांपुर जिले के किसानों के लिए यह आदेश किसी छलावे से कम साबित नहीं हो रहा है। जिले, खासकर पुवायां क्षेत्र में, पिछले सालों के मुकाबले इस बार मक्के का रकबा तो काफी बढ़ा है, लेकिन सरकार ने यहां एक भी सरकारी क्रय केंद्र स्थापित नहीं किया है। इसका नतीजा यह है कि किसान अपनी खून-पसीने की उपज को खुले बाजार में औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हैं, जिससे उनके हाथ सिर्फ मायूसी लग रही है।
उम्मीदों पर मौसम और सरकार, दोनों की मार
पिछले साल यानी 2023 में शाहजहांपुर के पुवायां क्षेत्र में मक्के की फसल से किसानों को बड़ा मुनाफा हुआ था, जिससे उत्साहित होकर इस साल किसानों ने मक्के की खेती का क्षेत्रफल और बढ़ा दिया। लेकिन इस बार दोहरी मार पड़ी। एक तो मौसम ने साथ नहीं दिया और दूसरा सरकार ने मुंह फेर लिया।
- फसल पर मौसम की मार: किसानों का कहना है कि मक्के की अच्छी फसल के लिए मौसम का शुष्क रहना और पछुआ हवा का चलना जरूरी है। लेकिन इस बार पुरवा हवा ज्यादा चली और बीच-बीच में हुई बारिश ने फसल को ठीक से तैयार नहीं होने दिया। इससे दानों में नमी की मात्रा बढ़ गई और गुणवत्ता भी प्रभावित हुई।
- बड़ी कंपनियों ने बनाई दूरी: फसल में अधिक नमी और खराब गुणवत्ता के कारण बड़ी खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों ने खरीद में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और अन्य जिलों का रुख कर लिया। अब केवल कुछ शराब और एथेनॉल बनाने वाली कंपनियां ही मक्का खरीद रही हैं, लेकिन वे भी बहुत कम दाम दे रही हैं।
₹2225 की MSP, पर मंडी में मिल रहे सिर्फ ₹1100
सरकार ने जिन 22 जिलों में खरीद को मंजूरी दी है, वहां मक्के का सरकारी रेट ₹2225 प्रति क्विंटल तय किया गया है, लेकिन शर्त यह है कि दानों में नमी 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। शाहजहांपुर में किसानों की मक्का में कई बार 50% तक नमी पाई जा रही है। इसका फायदा उठाकर आढ़ती (बिचौलिए) किसानों का शोषण कर रहे हैं।
डिप्टी आरएमओ राकेश मोहन पांडे ने बताया कि सरकारी खरीद के लिए मक्का का रकबा कम होने के कारण शाहजहांपुर का चयन नहीं हो सका। नतीजा यह है कि आढ़तों पर मक्का केवल ग्यारह सौ से बारह सौ रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है, जबकि पिछले साल यही मक्का 1600 से 1800 रुपये प्रति क्विंटल तक बिका था। कम दरों से किसान बुरी तरह परेशान हैं।
प्रति एकड़ ₹20,000 का सीधा घाटा
इस साल का घाटा किसानों की कमर तोड़ रहा है।
- पिछले साल प्रति एकड़ 60-65 क्विंटल मक्का निकला था और अच्छे दामों के चलते किसानों को प्रति एकड़ 90 हजार से एक लाख रुपये तक की कमाई हुई थी।
- इस साल भी पैदावार लगभग 60 से 65 क्विंटल प्रति एकड़ ही है, लेकिन रेट 1100 से 1200 रुपये प्रति क्विंटल रहने से औसत मूल्य प्रति एकड़ केवल 70 हजार रुपये ही मिल रहा है। यानी पिछले साल की तुलना में किसानों को सीधे तौर पर 20 हजार रुपये प्रति एकड़ का भारी नुकसान हो रहा है।
क्यों बढ़ा था मक्के का रकबा?
प्रशासन ने भू-जल स्तर को बचाने के लिए पुवायां तहसील में साठा धान (कम समय में पकने वाली धान की किस्म) पर प्रतिबंध लगा दिया था। जब आलू की फसल के बाद खेत खाली हुए, तो किसानों ने साठा धान के विकल्प के रूप में मक्का को अपनाना शुरू कर दिया। 2024 में अच्छे रेट मिलने से मक्के का क्षेत्रफल 4925 एकड़ और बढ़ गया। कृषि विभाग के अनुसार, इस बार जिले में लगभग 13,332 एकड़ में मक्का बोया गया है। लेकिन अब यही फैसला किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गया है।