Uttar Pradesh News : भारत में उच्च शिक्षा के कई प्रतिष्ठित संस्थान हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में एक ऐसी यूनिवर्सिटी है जिसकी पहचान सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया में है। हम बात कर रहे हैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University – BHU) की, जिसे हिंदी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी कहा जाता है। यह सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध संस्कृति, इतिहास और ज्ञान परंपरा का जीता-जागता प्रतीक है।
आपको जानकर शायद हैरानी हो, लेकिन बीएचयू पूरे एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय (Largest Residential University in Asia) है! इसकी विशालता और शैक्षिक गुणवत्ता के आगे दुनिया की कई जानी-मानी यूनिवर्सिटीज़ भी छोटी लगती हैं। इसका इतिहास भी बेहद गौरवशाली और प्रेरक है।
कैसे हुई इस विशाल ज्ञान केंद्र की स्थापना?
काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को जाता है। उन्होंने वसंत पंचमी के शुभ दिन, 4 फरवरी 1916 को इस महान संस्थान की नींव रखी थी। उनका सपना था एक ऐसा विश्वविद्यालय बनाना जहां प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय हो, और जहां छात्र एक ही कैंपस में रहकर पढ़ाई कर सकें।
बीएचयू का कैंपस कितना बड़ा है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते हैं कि यह लगभग 1300 एकड़ (करीब 5.3 वर्ग किलोमीटर) के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां की शानदार इमारतें इंडो-गॉथिक शैली की वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण हैं, जिन्हें देखकर ही भव्यता का एहसास होता है। हर साल देश-विदेश से 30 हज़ार से ज़्यादा छात्र यहाँ विभिन्न विषयों की पढ़ाई करने आते हैं और अपने सपनों को पंख देते हैं।
11 गांवों की कहानी: कैसे मिली इतनी विशाल ज़मीन?
बीएचयू के इतने बड़े परिसर के पीछे एक बहुत ही खास और दिलचस्प कहानी है, जो इसकी स्थापना से जुड़ी है। यह कहानी बनारस के तत्कालीन राजा, काशी नरेश, और महामना मदन मोहन मालवीय के बीच हुए एक अनोखे वादे की है।
कहा जाता है कि जब मालवीय जी यूनिवर्सिटी के लिए ज़मीन ढूंढ रहे थे, तो काशी नरेश ने कहा कि वे एक दिन में पैदल चलकर जितनी भी ज़मीन नाप लेंगे, वह सारी ज़मीन वे विश्वविद्यालय के लिए दान कर देंगे।
इसके बाद महामना मालवीय जी ने अगले दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक लगातार पैदल चलकर ज़मीन नापी। लोक कथाओं के अनुसार, उन्होंने इतनी विशाल ज़मीन नाप ली जिसमें लगभग 11 गांव शामिल थे! इस ज़मीन में करीब 70 हज़ार पेड़, 1 हज़ार पक्के और 20 कच्चे कुएं, 860 कच्चे घर और 40 पक्के मकान भी आए। काशी नरेश ने अपनी बात रखी और यह सारी ज़मीन विश्वविद्यालय के नाम कर दी। यही कारण है कि बीएचयू का कैंपस आज इतना बड़ा और हरा-भरा है। कहा जाता है कि काशी नरेश ने यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए एक मंदिर और एक धर्मशाला भी दान में दी थी।
बीएचयू अपने छात्रों को सिर्फ अच्छी शिक्षा ही नहीं देता, बल्कि एक बेहतरीन रहने का माहौल भी देता है। यहाँ लड़के और लड़कियों के लिए बहुत बड़े और आधुनिक सुविधाओं वाले हॉस्टल हैं, जो इसे सही मायने में एक आवासीय विश्वविद्यालय बनाते हैं।
इस तरह, काशी हिंदू विश्वविद्यालय सिर्फ ईंट-पत्थरों से बनी इमारत नहीं है, बल्कि यह समर्पण, दान और ज्ञान की एक ऐसी कहानी है जो पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। यह आज भी लाखों छात्रों के लिए ज्ञान का केंद्र बना हुआ है और भारत के शैक्षिक मानचित्र पर गौरव के साथ चमक रहा है।