Jhansi District Hospital: सोचिए, आप इलाज कराने अस्पताल जाएं और वहां आपको बीमारियों के साथ-साथ आवारा कुत्तों से निपटने के लिए भी ‘नुस्खे’ देखने को मिलें, वो भी एकदम देसी टोटके वाले! जी हाँ, उत्तर प्रदेश के झांसी में ऐसा ही एक हैरान करने वाला नज़ारा देखने को मिल रहा है।
झांसी के महिला जिला अस्पताल ने आवारा कुत्तों के आतंक से निपटने के लिए एक अनोखा और अंधविश्वास भरा तरीका अपनाया है। अस्पताल परिसर में जगह-जगह पानी और नील (Blue Ink/Dye) मिली हुई बोतलें टांग दी गई हैं! क्यों? क्योंकि अस्पताल के स्टाफ का मानना है कि इस नीले पानी को देखकर कुत्ते डरते हैं और पास नहीं फटकते।
आखिर क्यों पड़ी इस ‘टोटके’ की ज़रूरत?
दरअसल, यह अस्पताल शहर के बीचों-बीच है और यहां बड़ी संख्या में मरीज आते हैं, खासकर गर्भवती महिलाएं। मरीजों द्वारा फेंके गए खाने की तलाश में कुत्ते अस्पताल परिसर में डेरा डाल लेते हैं। ये कुत्ते न सिर्फ गंदगी फैलाते हैं, बल्कि कई बार मरीजों, खासकर चलने-फिरने में असमर्थ गर्भवती महिलाओं के लिए खतरा भी बन जाते हैं और उन पर हमला तक कर देते हैं। स्टाफ ने कई बार कुत्तों को भगाने की कोशिश की, लेकिन वो बार-बार लौट आते हैं।
क्या ‘नीली बोतल’ वाला फॉर्मूला काम कर रहा है?
परेशान होकर स्टाफ ने कुत्तों को भगाने के लिए ये ‘नीली बोतल वाला टोटका’ अपनाया। स्टाफ का दावा है कि बोतलें टांगने के बाद कुत्तों का आना कम हुआ है। लेकिन, जब मीडिया (लोकल 18) की टीम मौके पर पहुंची, तो अस्पताल परिसर में आवारा कुत्ते आराम से घूमते नज़र आए, जिससे इस टोटके के असर पर सवाल खड़ा हो गया है।
अस्पताल के बड़े अधिकारी क्या कहते हैं?
सबसे दिलचस्प बात ये है कि अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (CMS) डॉ. राजनारायण को इस ‘नीली बोतल वाले टोटके’ की कोई खास जानकारी ही नहीं है! उन्होंने कहा कि यह शायद किसी स्टाफ सदस्य ने अपने स्तर पर किया होगा। उन्होंने माना कि आवारा कुत्तों की समस्या गंभीर है और नगर निगम की टीम कई बार कुत्तों को पकड़कर ले भी जाती है, लेकिन वे फिर लौट आते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि स्टाफ मरीजों की सुरक्षा के लिए सतर्क रहता है।
यह मामला दिखाता है कि कैसे कभी-कभी परेशानी से निजात पाने के लिए लोग वैज्ञानिक तरीकों के बजाय ऐसे अनोखे और अंधविश्वास भरे रास्ते अपना लेते हैं, वह भी एक सरकारी अस्पताल जैसी जगह पर!