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Join NowHariyali Teej 2025: जब सावन की रिमझिम फुहारें धरती को भिगोती हैं और चारों ओर हरियाली की चादर बिछ जाती है, तब प्रकृति के इसी खूबसूरत उत्सव के बीच मनाया जाता है सुहाग और सौभाग्य का महापर्व – हरियाली तीज। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ने वाला यह त्योहार शिव-पार्वती के अटूट प्रेम और एक सुहागिन के अपने पति के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह वही पवित्र दिन है जब माता पार्वती ने अपनी सैकड़ों वर्षों की कठोर तपस्या से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इसलिए, इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं और पूरे विधि-विधान से शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इस वर्ष, हरियाली तीज का यह पावन पर्व 27 जुलाई 2025, रविवार के दिन धूमधाम से मनाया जाएगा।
इस दिन व्रत, पूजा और श्रृंगार के अलावा एक और बेहद खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली परंपरा निभाई जाती है, और वह है – बेटी के घर सिंधारा भेजने की परंपरा। लेकिन हर किसी के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर यह सिंधारा क्या होता है? तीज के मौके पर इसे मायके से क्यों भेजा जाता है और इसके पीछे का धार्मिक और भावनात्मक महत्व क्या है? चलिए, इस खूबसूरत परंपरा की गहराई को समझते हैं।
क्या होता है तीज का सिंधारा? (What is Teej Sindhara?)
“सिंधारा” शब्द का मूल “सिंदूर” से है, जिसे एक सुहागिन के जीवन में सौभाग्य और सुहाग की सबसे बड़ी निशानी माना जाता है। सिंधारा उन उपहारों की एक पोटली होती है, जिसे माता-पिता या भाई अपनी विवाहित बेटी के घर हरियाली तीज के पावन अवसर पर भेजते हैं। यह सिर्फ एक तोहफा नहीं, बल्कि मायके से आया ढेर सारा प्यार, आशीर्वाद और शुभकामनाएं होती हैं।
सिंधारा की पोटली में मुख्य रूप से शामिल होते हैं:
- सोलह श्रृंगार का सामान: इसमें हरी-लाल चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, आलता, मेहंदी, काजल, गजरा आदि शामिल होते हैं।
- नए वस्त्र: बेटी के लिए नई साड़ी या लहंगा।
- मिठाइयां और फल: विशेष रूप से सावन के महीने की खास मिठाई घेवर सिंधारे का एक अभिन्न अंग माना जाता है।
सिंधारे में भेजे गए ये वस्त्र और श्रृंगार बेटी के जीवन में खुशहाली, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक माने जाते हैं। यह परंपरा माता-पिता के उस गहरे भाव को दर्शाती है जिसमें वे अपनी बेटी के सुखी और समृद्ध दांपत्य जीवन की मंगल कामना करते हैं।
आखिर क्यों भेजा जाता है तीज का सिंधारा?
इस परंपरा के पीछे गहरा धार्मिक और भावनात्मक कारण छिपा है।
- माता-पिता के सौभाग्य की कामना: मान्यता है कि सावन के महीने में ही माता पार्वती की कठोर तपस्या सफल हुई थी और उन्हें भगवान शिव पति के रूप में मिले थे। इसी की याद में महिलाएं यह व्रत करती हैं। ऐसे में, मायके से भेजा गया सिंधारा माता-पिता की ओर से बेटी के अखंड सौभाग्य की कामना का प्रतीक माना जाता है। यह एक तरह का आशीर्वाद है कि जैसे पार्वती को शिव मिले, वैसे ही उनकी बेटी का सुहाग भी सलामत और खुशहाल रहे।
- मायके का स्नेह और संरक्षण: विवाह के बाद बेटी ससुराल की हो जाती है, लेकिन मायके से उसका रिश्ता कभी खत्म नहीं होता। सिंधारा इसी अटूट रिश्ते की एक डोर है। यह बेटी को यह अहसास दिलाता है कि भले ही वह दूर है, लेकिन उसके माता-पिता का स्नेह, आशीर्वाद और संरक्षण हमेशा उसके साथ है।
- नवविवाहिताओं के लिए विशेष: यह परंपरा विशेष रूप से उन बेटियों के लिए और भी खास हो जाती है जिनकी नई-नई शादी हुई होती है। उनका पहला सावन और पहली तीज यादगार बनाने के लिए मायके से सिंधारा भेजा जाता है, ताकि उन्हें किसी भी चीज की कमी महसूस न हो और वे पूरे उल्लास के साथ अपना पहला तीज का त्योहार मना सकें।
हरियाली तीज पूजन विधि (Hariyali Teej 2025 Pujan Vidhi)
इस दिन का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए सही पूजन विधि का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है:
- इस दिन महिलाओं को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए और फिर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- पूरे दिन निर्जला या फलाहार उपवास रखें और मन में शिव-पार्वती का ध्यान करें।
- इस दिन सोलह श्रृंगार अवश्य करें। श्रृंगार में मेहंदी और हरी-लाल चूड़ियों का प्रयोग जरूर करें।
- शाम के समय, प्रदोष काल में शिव मंदिर में या घर पर ही शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित कर उनकी विधिवत उपासना करें।
- माता पार्वती को सुहाग की सभी वस्तुएं (चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, चुनरी आदि) अर्पित करें।
- भगवान शिव और माता पार्वती के समक्ष घी का एक बड़ा सा दीपक जलाएं।
- पूजा के बाद हरियाली तीज की व्रत कथा अवश्य पढ़ें या सुनें।
- पूजा संपन्न होने के बाद किसी सौभाग्यवती स्त्री को सुहाग की चीजें दान करें और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें।
- ध्यान रहे कि इस दिन पूजा में काले और सफेद रंग के वस्त्रों का प्रयोग वर्जित माना गया है। हरा और लाल रंग पहनना सबसे शुभ होता है।