Fertility crisis: आज के दौर में, जब हम बेहतर जीवन की ओर बढ़ रहे हैं, एक चौंकाने वाला सच सामने आया है: लगभग दस में से चार लोग (करीब 40%) वित्तीय बाधाओं (financial limitations) के कारण वह परिवार नहीं बना पा रहे जो वे वास्तव में चाहते हैं। यह आंकड़ा अपने आप में बताता है कि परिवार नियोजन (family planning) और बच्चों को लेकर हमारे समाज में क्या बड़ी चुनौती है। लेकिन सिर्फ पैसा ही एकमात्र कारण नहीं है। नौकरी की असुरक्षा (job insecurity) 21% लोगों के लिए एक बड़ा रोड़ा है, जबकि आवास की समस्या (housing constraints) 22% और बच्चों की देखभाल के लिए विश्वसनीय सहारे (childcare) की कमी 18% लोगों के लिए माता-पिता बनने के रास्ते को और भी मुश्किल बना रही है। ये वो वास्तविक बाधाएं हैं जो कई जोड़ों के ‘प्रजनन लक्ष्यों’ (reproductive goals) को पूरा होने से रोक रही हैं।
बात करें भारत की, तो एक नई संयुक्त राष्ट्र (UN) की जनसांख्यिकी रिपोर्ट (demographic report) के अनुसार, 2025 तक भारत की जनसंख्या (India’s population) 1.46 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, जिससे यह दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश (most populous country) बना रहेगा। हालांकि, इसी रिपोर्ट में एक और महत्वपूर्ण बात उजागर हुई है: देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR) रिप्लेसमेंट स्तर (replacement level) से नीचे आ गई है। इसका मतलब है कि प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए ज़रूरी संख्या से कम हो गई है।
यह रिपोर्ट इस ओर ध्यान दिलाती है कि हमें गिरती प्रजनन दर पर घबराने के बजाय, लोगों के उन ‘अधूरे प्रजनन लक्ष्यों’ (unmet reproductive goals) पर ध्यान देना चाहिए जिन्हें वे हासिल नहीं कर पा रहे हैं। लाखों लोग अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्यों (real fertility goals) को साकार करने में असमर्थ हैं, और यही असली चिंता का विषय है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तीन में से एक वयस्क भारतीय (36%) अनचाही गर्भावस्था (unintended pregnancies) का सामना करता है, जबकि 30% लोगों की या तो अधिक या कम बच्चे पैदा करने की इच्छा अधूरी रह जाती है। यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (UNFPA) की 2025 स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन (SOWP) रिपोर्ट (UNFPA 2025 State of World Population Report) में मंगलवार को जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, 23% लोगों को इन दोनों (अनचाही गर्भावस्था और अधूरी इच्छा) का सामना करना पड़ा।
यूएनएफपीए (UNFPA) की कार्यकारी निदेशक (Executive Director) डॉ. नतालिया कनेम ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “भारी संख्या में लोग वह परिवार नहीं बना पा रहे हैं जो वे चाहते हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा, “मुद्दा इच्छा की कमी नहीं, बल्कि विकल्पों की कमी (lack of choice) है, जिसके व्यक्तियों और समाजों के लिए बड़े परिणाम हैं। यही असली प्रजनन संकट (real fertility crisis) है, और इसका जवाब इसमें निहित है कि लोग खुद क्या कहते हैं कि उन्हें क्या चाहिए: भुगतान वाली परिवार छुट्टी (paid family leave), सस्ती प्रजनन देखभाल (affordable fertility care), और सहयोगी साथी (supportive partners)।”
‘द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस: द परसूट ऑफ रिप्रोडक्टिव एजेंसी इन ए चेंजिंग वर्ल्ड’ (The real fertility crisis: The pursuit of reproductive agency in a changing world) शीर्षक वाली यह रिपोर्ट रेखांकित करती है कि लाखों व्यक्ति अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्यों (real fertility goals) को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, और यही वास्तविक संकट है – न कि कम आबादी (underpopulation) या अधिक आबादी (overpopulation)। यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि हमें व्यक्तियों की प्रजनन स्वतंत्रता (reproductive agency) और उनके मनचाहे परिवार बनाने के अधिकार (right to form desired family) पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
यह स्थिति सिर्फ भारत की नहीं है, बल्कि कई देशों में देखी जा रही है। यह दर्शाती है कि प्रजनन और परिवार नियोजन (fertility and family planning) के मुद्दे सिर्फ जन्म दर के आंकड़े नहीं हैं, बल्कि व्यक्तिगत सपने, आर्थिक स्थिरता, सामाजिक समर्थन और अधिकारों से जुड़े गहरे मानवीय मुद्दे हैं। सरकारों और समाजों को इन चुनौतियों को समझना होगा और लोगों को उनके प्रजनन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक संसाधन और समर्थन प्रदान करना होगा।