Supreme Court : लोन डिफॉल्टरों को सुप्रीम कोर्ट का ‘जोर का झटका’! संपत्ति बचाने का मौका कब तक? जानें अहम फैसला

Published On: April 22, 2025
Follow Us
Supreme Court
---Advertisement---

Supreme Court : क्या आपने लोन लिया है? क्या आप लोन चुकाने में चूक गए हैं? तो सावधान! सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जो लोन नहीं चुकाने वालों (ऋण चूककर्ताओं) के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगर आपने लोन नहीं चुकाया है और बैंक या वित्तीय संस्थान ने आपकी गिरवी रखी संपत्ति (Mortgaged Property) को नीलाम करने का नोटिस निकाल दिया है, तो आप सिर्फ बकाया चुकाने का ऑफर देकर नीलामी को रोक नहीं सकते।

क्या है पूरा मामला और कोर्ट ने क्या कहा?

अक्सर लोग सोचते हैं कि अगर उनकी संपत्ति नीलाम होने वाली है, तो वे नीलामी से ठीक पहले या किसी भी समय पूरा बकाया पैसा चुकाकर अपनी संपत्ति वापस पा सकते हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्थिति बिल्कुल स्पष्ट कर दी है।

  • अहम नियम (सरफेसी एक्ट): बैंकों और वित्तीय संस्थानों को लोन की वसूली के लिए ‘वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्संरचना और सुरक्षा हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002’ (SARFAESI Act) अधिकार देता है। इसी कानून की धारा 13(8) के तहत लोन लेने वाला व्यक्ति, नीलामी का नोटिस प्रकाशित होने से पहले तक, पूरा बकाया चुकाकर अपनी गिरवी संपत्ति छुड़ा सकता था।

  • सुप्रीम कोर्ट का स्पष्टीकरण: चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की बेंच ने अपने 111 पन्नों के फैसले में साफ कहा कि सरफेसी एक्ट की संशोधित धारा 13(8) के तहत, अगर कर्जदार नीलामी का नोटिस (Newspaper Auction Notice) प्रकाशित होने से पहले बैंक का पूरा बकाया (मूल, ब्याज, शुल्क आदि) नहीं चुकाता है, तो नोटिस प्रकाशित होने के साथ ही उसका अपनी गिरवी संपत्ति को छुड़ाने का अधिकार (Right to Redemption) समाप्त हो जाता है

  • “किसी भी समय” का मतलब नहीं: कोर्ट ने कहा कि कर्जदार को “किसी भी समय” बकाया चुकाकर नीलामी रोकने की इजाजत नहीं दी जा सकती, अगर वह नीलामी नोटिस प्रकाशित होने की डेडलाइन चूक गया है।

कोर्ट ने क्यों दिया ऐसा फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के पीछे नीलामी प्रक्रिया की शुचिता (Sanctity of Auction Process) को बनाए रखने का तर्क दिया है। कोर्ट का मानना है:

  1. नीलामी का सम्मान: अदालतों को नीलामी प्रक्रिया में बेवजह हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।

  2. जनता का भरोसा: अगर नीलामी को आखिरी समय में आसानी से रोका जा सकेगा, तो नीलामी प्रक्रिया का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा और इसमें आम जनता का भरोसा और भागीदारी कम हो जाएगी। जो लोग नीलामी में बोली लगाकर संपत्ति खरीदना चाहते हैं, उनके मन में अनिश्चितता पैदा होगी।

क्या था मामला?

यह फैसला सेलिर एलएलपी द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर आया है। हाईकोर्ट ने बाफना मोटर्स (मुंबई) प्राइवेट लिमिटेड को नीलामी नोटिस जारी होने के बाद भी बकाया चुकाकर अपनी गिरवी संपत्ति छुड़ाने की अनुमति दे दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अब पलट दिया है।

आम आदमी के लिए क्या हैं मायने?

इस फैसले का सीधा मतलब है कि अगर आपने लोन लिया है और उसे चुकाने में डिफॉल्ट कर रहे हैं, तो बेहद सावधान रहें। बैंक द्वारा सरफेसी एक्ट के तहत कार्रवाई शुरू करने और नीलामी का नोटिस अखबार में प्रकाशित करने से पहले ही बकाया चुकाने का प्रयास करें। एक बार नीलामी का नोटिस प्रकाशित हो गया, तो आपके हाथ से अपनी संपत्ति को बचाने का कानूनी अधिकार (संपत्ति छुड़ाने का अधिकार) निकल जाएगा, भले ही आप बाद में पूरी रकम चुकाने को तैयार हों। यह फैसला लोन डिफॉल्टरों के लिए एक सख्त चेतावनी है।


Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now