Supreme Court Decision

Supreme Court Decision : संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा: सुप्रीम कोर्ट ने बताया क्या है सही तरीका, आपकी सहमति है सबसे ज़रूरी

Supreme Court Decision :  सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो संयुक्त हिंदू परिवारों में संपत्ति के बंटवारे को लेकर स्थिति साफ करता है। इस फैसले के अनुसार, बंटवारे के लिए सभी हिस्सेदारों की सहमति अनिवार्य है। आइये जानते हैं इस फैसले की मुख्य बातें और आपके लिए इसके क्या मायने हैं।


अक्सर घरों में जायदाद, खासकर संयुक्त परिवार की संपत्ति (Joint Family Property) को लेकर काफी उलझन और विवाद होते हैं। नियम-कानूनों की पूरी जानकारी न होने से दिक्कतें और बढ़ जाती हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ कर दिया है कि ऐसी संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा और इसमें आपकी यानी हर हिस्सेदार की सहमति कितनी महत्वपूर्ण है।

सुप्रीम कोर्ट का दो-टूक फैसला: सबकी सहमति ज़रूरी!

शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने न्यायमूर्ति एस ए नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा तभी वैध (Valid) माना जाएगा जब उसमें सभी हिस्सेदारों (Co-parceners) की सहमति शामिल हो।

अगर बंटवारे में किसी एक भी हिस्सेदार की रज़ामंदी नहीं ली गई है, तो वह हिस्सेदार उस बंटवारे को रद्द (Voidable) करवा सकता है। यह फैसला संपत्ति विवादों को सुलझाने में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

कर्ता या मैनेजर की शक्ति सीमित

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि परिवार का कर्ता (Karta) या संपत्ति का प्रबंधक (Manager) अपनी मर्ज़ी से या मनमाने ढंग से संपत्ति का बंटवारा या निपटान नहीं कर सकता। ऐसा करने के लिए केवल तीन ही स्थितियाँ मान्य हैं:

  1. कानूनी ज़रूरत (Legal Necessity): किसी कानूनी देनदारी या ज़रूरत को पूरा करने के लिए।

  2. संपत्ति के फायदे के लिए (Benefit of the Estate): ऐसा कदम जिससे पूरी संपत्ति को लाभ हो।

  3. सभी हिस्सेदारों की सहमति (Consent of all Co-parceners): जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह सबसे महत्वपूर्ण शर्त है।

क्या ‘प्यार और स्नेह’ में दे सकते हैं पैतृक संपत्ति का गिफ्ट?

इस फैसले में एक और महत्वपूर्ण बात ‘गिफ्ट’ या ‘दान’ को लेकर सामने आई है। कोर्ट ने कहा कि:

  • हिंदू पिता या हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) का कर्ता पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) को उपहार में केवल ‘पवित्र उद्देश्यों’ (Pious Purposes) के लिए ही दे सकता है।

  • ‘पवित्र उद्देश्यों’ का मतलब है धर्मार्थ या धार्मिक काम (Charitable or Religious purposes)

  • कोर्ट ने साफ किया कि ‘प्यार और स्नेह’ (Love and Affection) में किसी रिश्तेदार या व्यक्ति को पैतृक संपत्ति का गिफ्ट देना ‘पवित्र उद्देश्य’ नहीं माना जाएगा और ऐसा गिफ्ट/दान अवैध (Invalid) होगा।

यह टिप्पणी कर्नाटक हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ अपील पर आई, जहां एक पिता ने अपने बेटे की सहमति के बिना पैतृक संपत्ति का एक हिस्सा ‘प्यार और स्नेह’ में किसी और को गिफ्ट कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस गिफ्ट विलेख (Gift Deed) को अमान्य करार दिया।

आपके लिए क्या हैं मायने?

यह फैसला संपत्ति विवादों, खासकर संयुक्त हिंदू परिवारों में बंटवारे को लेकर बहुत महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि:

  • बंटवारे में किसी एक हिस्सेदार की भी अनदेखी न हो।

  • संपत्ति का बंटवारा निष्पक्ष और सबकी सहमति से हो।

  • कर्ता या प्रबंधक अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न कर सकें।

  • पैतृक संपत्ति को मनमाने ढंग से गिफ्ट न किया जा सके।

अगर आप भी ऐसे किसी मामले से जुड़े हैं या संयुक्त परिवार की संपत्ति में हिस्सेदार हैं, तो यह जानना आपके अधिकारों के लिए बेहद ज़रूरी है कि आपकी सहमति के बिना किया गया बंटवारा कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा।