Property Rights : भारत में, पारिवारिक रिश्ते और संपत्ति का अधिकार (Property Rights) हमेशा से ही संवेदनशील मामले रहे हैं। अक्सर यह देखा जाता है कि जीवन के अंतिम पड़ाव में बुजुर्ग माता-पिता (Elderly Parents) अपने बच्चों या रिश्तेदारों द्वारा उचित देखभाल (Elderly Care) न किए जाने या दुर्व्यवहार (Mistreatment) का शिकार होते हैं। ऐसे में, माता-पिता के पास क्या अधिकार हैं, खासकर अपनी संपत्ति (Property) को लेकर? इस संबंध में, राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) ने एक बेहद महत्वपूर्ण और स्पष्ट फैसला सुनाया है, जिसने देशभर के बुजुर्गों के लिए राहत की एक बड़ी किरण जगाई है। हाई कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि यदि बच्चे अपने माता-पिता या सास-ससुर का ठीक से व्यवहार या देखभाल नहीं करते हैं, तो माता-पिता को उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल (Disinherit from Property) करने का पूरा अधिकार है।
बुजुर्गों के अधिकार: राजस्थान हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
राजस्थान हाई कोर्ट ने यह स्वीकार किया है कि यदि बुजुर्ग दंपति (Elderly Couple) अपने बच्चों (Children) या अन्य रिश्तेदारों (Relatives) के व्यवहार से संतुष्ट नहीं हैं, अगर उनका ठीक से ख्याल नहीं रखा जा रहा है और उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, तो वे अपनी मेहनत से अर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) से ऐसे बच्चों या रिश्तेदारों को दूर कर सकते हैं। यह फैसला उन तमाम बुजुर्गों के लिए एक बड़ी जीत है जो उपेक्षा या दुर्व्यवहार सह रहे हैं।
दो सदस्यीय बेंच ने दिया अधिकार: मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल की शक्ति
राजस्थान हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एजी मसीह और जस्टिस समीर जैन की दो सदस्यीय बेंच ने एक अहम आदेश पारित करते हुए यह स्पष्ट किया। यह आदेश कोर्ट की सिंगल बेंच द्वारा 12 सितंबर 2019 को “ओमप्रकाश सैन वर्सेज मनभर देवी” (Omprakash Sain vs Manbhar Devi Case) मामले में भेजे गए एक रेफरेंस (Reference) पर दिया गया। बेंच ने माना कि सब-डिविजनल ऑफिसर (SDO) कोर्ट, जो वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Senior Citizens Act 2007) के तहत मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल (Maintenance Tribunal) के रूप में कार्य करता है, के पास यह अधिकार है।
ट्रिब्यूनल, बुजुर्गों के अनुरोध पर, उनके बेटे, बहू (Daughter-in-law), या किसी अन्य रिश्तेदार को उनकी संपत्ति पर दावा करने या उस पर रहने से बेदखल (Evict from Property) करने का आदेश दे सकता है, खासकर यदि वे बुजुर्गों का ख्याल नहीं रख रहे हैं या उन्हें सता रहे हैं। यह अधिकार बुजुर्गों को उनकी संपत्ति पर पूर्ण नियंत्रण (Control over Property) बनाए रखने और उन्हें बच्चों या रिश्तेदारों द्वारा संभावित बेदखली (Potential Eviction) या उत्पीड़न से बचाने के लिए है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) समेत देश के कई हाई कोर्ट ने भी मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल की इस शक्ति को मान्यता दी है कि वे संपत्ति से जुड़ी बेदखली के मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं, खासकर जब मामला बुजुर्गों की देखभाल और सुरक्षा से जुड़ा हो।
फैसले से बुजुर्गों को मिलेगी बड़ी राहत, न्याय प्रक्रिया होगी तेज
राजस्थान हाई कोर्ट के इस फैसले से उन हजारों बुजुर्ग लोगों को वाकई में खासी राहत मिलेगी जो अपने ही बच्चों या करीबियों द्वारा बुरे व्यवहार या उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। ऐसे कई मामले थे जहां बुजुर्ग अपने बच्चों के रवैये से दुखी होकर कानूनी मदद चाहते थे, लेकिन कानूनी अस्पष्टता या प्रक्रियात्मक देरी के कारण उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा था।
हाई कोर्ट की दो-सदस्यीय बेंच के सामने रेफरेंस का मामला अटक जाने के कारण संपत्ति और भरण-पोषण (Maintenance) से जुड़े कई महत्वपूर्ण मामले पेंडिंग (Pending Cases) पड़े थे, जिससे कोर्ट फैसला सुनाने में असमर्थ था। सिंगल बेंच के पास भी ऐसी ढेरों याचिकाएं लंबित थीं। अब जब इस महत्वपूर्ण रेफरेंस पर स्पष्ट फैसला आ गया है, तो यह उम्मीद है कि इन लंबित मामलों (Pending Cases) का निपटारा जल्द से जल्द हो सकेगा। इससे न केवल न्याय प्रक्रिया (Justice Process) में तेज़ी आएगी, बल्कि बुजुर्गों से जुड़े संपत्ति विवादों (Property Disputes) और देखभाल से संबंधित मामलों में भी स्पष्टता आएगी। यह फैसला भारतीय कानून (Indian Law) के तहत बुजुर्गों के अधिकारों (Rights of Elderly) को मजबूत करता है और उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
यह फैसला उन सभी बच्चों और रिश्तेदारों के लिए एक सख्त संदेश है जो सोचते हैं कि माता-पिता की संपत्ति पर उनका निर्विवाद अधिकार है, भले ही वे उनकी देखभाल न करें। अब यह स्पष्ट है कि संपत्ति का अधिकार कर्तव्य (Duty) के साथ आता है, और यदि कर्तव्यों का पालन नहीं किया जाता है, तो अधिकार छीने भी जा सकते हैं।