Property Rights : आमतौर पर, हमारे समाज में प्रॉपर्टी और संपत्ति से जुड़े नियम और कानूनों को लेकर लोगों के बीच अक्सर जानकारी का अभाव होता है। इसी वजह से कई बार छोटे-छोटे विवाद भी बड़े कानूनी मसलों में बदल जाते हैं। खासकर, जब बात पारिवारिक प्रॉपर्टी की आती है, तो इसमें अधिकारों को लेकर उलझनें और बढ़ जाती हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अक्सर पूछे जाने वाले सवाल का जवाब देने जा रहे हैं: क्या एक पति अपनी पत्नी को उसकी मर्जी के खिलाफ प्रॉपर्टी या घर से बेदखल (Evict) कर सकता है? आइए, इस खबर में भारत में संपत्ति कानून से जुड़े इस अहम कानूनी प्रावधान को विस्तार से समझते हैं।
आपने अपने आसपास, परिवार या रिश्तेदारों में संपत्ति विवादों के बारे में ज़रूर सुना होगा। इन झगड़ों की कई वजहें होती हैं, जिनमें ज़मीन-जायदाद या घर से जुड़े मसले सबसे आम होते हैं। ये विवाद कभी-कभी इतने बढ़ जाते हैं कि रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है। भाई-भाई, बेटे-बाप, या यहाँ तक कि पति-पत्नी के बीच भी संपत्ति के अधिकार को लेकर अक्सर गंभीर झगड़े देखने को मिलते हैं।
ऐसे में, संपत्ति संबंधी कानूनी जानकारी रखना बेहद ज़रूरी है ताकि आप अपने अधिकारों को समझ सकें और ज़रूरत पड़ने पर सही कानूनी कदम उठा सकें। यह जानना महत्वपूर्ण है कि भारत में कानून संपत्ति के मालिकाना हक और उसमें परिवार के सदस्यों, विशेषकर महिलाओं के अधिकारों को लेकर क्या कहता है।
क्या पत्नी को पति या पति को पत्नी घर से बेदखल कर सकते हैं?
यह सवाल पति-पत्नी के बीच प्रॉपर्टी राइट्स से जुड़ा एक जटिल मुद्दा है। हाल ही में, मुंबई की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने घरेलू विवाद के एक मामले में इस पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। अदालत ने कहा कि पति को संयुक्त रूप से खरीदी गई प्रॉपर्टी या घर से तब तक नहीं निकाला जा सकता, जब तक उस पर उसका कानूनी अधिकार है। हालांकि, अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि एक पति का नैतिक कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी और बेटियों के साथ उसी घर में रहे, खासकर जब वे वर्तमान में अलग रह रहे हों, ताकि उनकी देखभाल कर सके। कोर्ट ने इस विशेष मामले में पति को अगस्त 2021 से ₹17,000 प्रति माह रखरखाव भत्ता (Maintenance) देने का आदेश भी दिया। यह फैसला दिखाता है कि अदालतें केवल संपत्ति के कानूनी अधिकार ही नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों को भी ध्यान में रखती हैं।
भारत में कानून क्या कहता है पत्नी के संपत्ति अधिकारों पर?
भारत में कानून के अनुसार, पत्नी का पति की प्रॉपर्टी पर कुछ विशेष अधिकार होते हैं, हालांकि यह मालिकाना हक (Ownership) से अलग हो सकता है। शादी के बाद अगर पति-पत्नी अलग होने का फैसला लेते हैं, तो महिलाएं विभिन्न कानूनी प्रावधानों के तहत अपने पति से भरण-पोषण (Maintenance) का दावा कर सकती हैं।
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हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act): इस अधिनियम की धारा 24 के तहत, पत्नी (या पति, यदि आश्रित हो) तलाक की कार्यवाही के दौरान या बाद में पति से भरण-पोषण मांग सकती है ताकि वह सम्मानजनक जीवन जी सके।
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घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act), 2005: यह अधिनियम पत्नियों को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है और इसमें महिलाओं को उनके वैवाहिक घर (Matrimonial Home) में रहने का अधिकार (Right to Reside) भी शामिल है, भले ही वह घर पति के नाम पर न हो या संयुक्त संपत्ति न हो। इस अधिनियम के तहत, पत्नी को साझा घर से बेदखल नहीं किया जा सकता।
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सीआरपीसी की धारा 125 (Section 125 CrPC): यह धारा पत्नियों, बच्चों और माता-पिता को भरण-पोषण मांगने का अधिकार देती है। इसके तहत, यदि पति अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने में सक्षम है लेकिन ऐसा करने से इनकार करता है, तो अदालत पति को पत्नी को मासिक गुजारा भत्ता (Alimony) देने का आदेश दे सकती है, यह अधिकार पत्नी को जीवन भर मिल सकता है जब तक वह पुनर्विवाह न करे।
हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (Hindu Adoptions and Maintenance Act, 1956): इस अधिनियम के तहत, एक हिंदू पत्नी को अपने ससुराल के घर (Matrimonial Home) में रहने का स्पष्ट अधिकार है, भले ही घर उसके पति के नाम पर न हो। यह अधिकार तब भी लागू होता है जब घर पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) हो, संयुक्त पारिवारिक संपत्ति (Joint Family Property) हो, पति की स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) हो, या किराये का घर (Rented House) हो। पत्नी का यह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक वह अपने पति के साथ वैवाहिक संबंध (Marital Relationship) में है। यदि वह पति से अलग रहने लगती है, तो वह भरण-पोषण (Maintenance) का दावा कर सकती है, लेकिन साझा घर में रहने का अधिकार परिस्थितियों पर निर्भर कर सकता है, खासकर यदि पति उसके लिए अलग उचित आवास प्रदान करता है।
व्यक्ति की स्वअर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) के अधिकार:
यह समझना महत्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति की अपनी कमाई या प्रयासों से अर्जित की गई संपत्ति (जैसे जमीन, मकान, फ्लैट, पैसे, गहने, शेयर या अन्य निवेश) पर पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ उसी व्यक्ति का कानूनी अधिकार होता है जिसने उसे अर्जित किया है। इसे स्वअर्जित संपत्ति कहते हैं। वह व्यक्ति अपनी इस स्वअर्जित संपत्ति को बेचने (Sell), गिरवी रखने (Mortgage), किसी को दान देने (Donate) या अपनी वसीयत (Will) के माध्यम से किसी को भी देने के लिए स्वतंत्र है। इससे जुड़े सभी कानूनी अधिकार उसके पास सुरक्षित होते हैं। हालांकि, यदि इस स्वअर्जित संपत्ति को वैवाहिक घर (Matrimonial Home) के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, तो ऊपर बताए गए कानूनों के तहत पत्नी का उसमें रहने का अधिकार बन सकता है, भले ही वह उसकी मालकिन न हो।
संक्षेप में, जबकि पति की स्वअर्जित संपत्ति पर पत्नी का सीधा मालिकाना हक शादी के आधार पर नहीं होता, भारत में कानून पत्नी को वैवाहिक घर में रहने और पति से भरण-पोषण प्राप्त करने जैसे महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है। पति आसानी से पत्नी को साझा घर (Shared Household) या वैवाहिक घर से बेदखल नहीं कर सकता, खासकर यदि ऐसा करना उसे बेघर कर दे या उसके अधिकारों का उल्लंघन करे। कानूनी सलाह हमेशा ऐसे मामलों में सबसे अच्छा विकल्प है ताकि व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर सही जानकारी और मार्गदर्शन मिल सके। प्रॉपर्टी राइट्स और महिला अधिकारों को समझना सभी के लिए ज़रूरी है।